Book Title: Adinath Vinti Pooja
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 63 श्री आदिनाथ वीनती पूजा सं. डो. रसीला कडीआ प्रस्तुत कृतिनी नकल ला.द.भा.विद्यामन्दिर, अमदावादना त्रूटक पुस्तक परथी करी छे, अने श्री लक्ष्मणभाई भोजके आ कृतिने उकेलवामां मार्गदर्शन आप्युं छे ते बदल तेमनी तथा संस्थानी हुँ ऋणी छु. एक ज पत्रनी आ प्रत छे. आ प्रतमां लेखन संवत आपवामां आवी नथी पण लेखनरीति उपरथी १९मो शतक अनुमानी शकाय तेम छे. कृतिने अन्ते 'पं. सुधाभूषणशिष्येणालेखि०' जणाव्युं छे. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिना श्रीजिनमाणिक्य अने तेमना शिष्य अनन्तहंसे आ वीनती रची होवा, २२मी कडीमा उल्लेखायुं छे. गच्छपति रत्नशेखरसूरिना शासनमां आ रचेल छे. कृतिमां लखाण घणुं ज छेकछाकवाळु छे. केटलेक स्थळे वर्णव्यत्यय थयो छे, अनुस्वारोनो उपयोग घणो छे. २१मी कडीने अन्ते 'इति श्री आदिनाथ वीनती पूजा' लख्या बाद अने ए ज हस्ताक्षरमां नीचे तथा हांसियामा २२मी अने २९मी कडीओ आपेली छे जेने लिप्यन्तरमां में सळंग लीधी छे. प्रस्तुत कृतिमां कविओ शत्रुजय यात्रा करीने श्री आदिनाथ भगवानने भेटवानी कविनी तीव्र उत्कंठा प्रगट करी छे. प्रभुप्रतिमा वर्णन कर्यु छे तेमां आ भाव सुपेरे प्रगट थाय छे. अहीं कविओ सिद्धाचल पर सिद्धिने वरेलां सौने याद कर्या छे. पछी पोते पण प्रभु विरहमां केवा झूरे छे अने 'भवे भवे तेमने भेटवा आतुर छे ते तेना भाव सदृष्टान्त वर्णनमां प्रगट थाय छे. 'क्यु न भये हम मोर, विमलगिरि' ए जाणीती स्तवनपंक्तिनी पेठे कवि अहीं पण विमलगिरि पर वसतां अने नित्य सुप्रभाते प्रभुपदे नमतां पंखीओनां जीवननी कृतार्थता-धन्यताने स्मरे छे. पोते पण वादळने जोईने नृत्य करतां मोरनी पेठे, चंद्र अने चकोरनी पेठे शेर्बुज शिखरने जोईने हैये हरखे छे. 'श्रीआदिनाथ वीनती' नामक कृतिओ अनेक उपलब्ध छे. तेमां आ कृति उमेरारूप छे अने अभ्यासीओने रस पडे तेवी छे. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 अनुसंधान-२७ आदिनाथ वीनती पूजा सुणी सेत्रुजा सिहरि श्रृंगार हार, घणा दिवसर्नु अलं(ल)जउ हुँ अपार. व्यु(यु)गादीस हुं वंदिसु सीस नामी, करुं वीनती आपणुं साम पामी. १ धन ललत सरोवर तणी पालि, करइ कलिवर (कलरव) कोईला अंब डालि धन सरल सोहामणी साद चंग, सुणि श्रवणि जे उपजइ मनह रंग, २ चडिउ पावडी जेतलइ भवण केरी, तव प्रभु तणी भेटि लाधी भलेरी, दोइ लेप आरा(र)स मूरति निहाली, इस्युं तीरथ नथी सेठेज टाली. ३ हीई हरखनी वेलडी आज ऊगी, मुझ मांडली आज आसीस पूगी. धन नयणले जे युगादीस दीसइ, धन वयणलां जे प्रभु वीनवीसइ. ४ भलइ पामीउ माणसु मे जम्म सारु, भलई लेटिओ श्रावक-ओज मारु. भलइ जइ आविउ सेत्रुज सिहरि राज, भलइ भेटिओ आपणुं सामी आज.५ हिव हेल दे बाल जिम नमिसु आज, मन रुलीअ हुं मागिसुं मुगति राज, गुण गाईसिउं प्रभु तणा मधुर सादि किवारीइ वली वंदिसु श्री युगादि. ६ जाउं आंखि ऊआरणइ रिसहनाह, तोरी भमुहडी भामणह गुणसंणाह. तोरी बाहुडी हुं ले लाहर जीऊं(?) गुण ताहारा अंगना रंगि गाऊं. ७ इणि रवि तलि रूअडउं सहू अछइ, पिणि प्रभु तणा निरपम रूप पछइ धन ते जण जात्रइ तुम्हारी जाई चडइ चैत्र वदि जनम आठमि जाणी. ८ धन चेत्र पूनिम नमुं सीस नीमी, जिहां पंचकोडि पुंडरीक सिद्धिगामी. ने(न)मि-विनमि दोइ कोडिसुं सिद्धिगामी, सदा सेविवउ सेत्रुज सिंहरी सामी.९ इहां अहूठ क्रोडि जादवकुमर सीधी सही, सेत्रुज सिहरि पुहवी प्रसिद्ध. दस कोडिसिउ द्रविडनइ वाइ(रि)खिल्ल इहां उपन्चं नाण एकलमल्ल. १० इहां पांच पांडव वली वीस कोडि, गया सिद्धिं वंदउ करकमल जोर्डि इहां सिद्धि संख्या लहुं नहि अपार, करुं तेहनइ सविहुनु जुहार. ११ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 इहां राइणि रुंख रूडउं निहालु, तिहां आपणां पापी (प) ना ताप टालुं समोसरण हूआं जिहां जिण अनंत, धन ते प्रभु वंदिअ विजयवंत. १२ सुणिसु रूअडा रूअडा रयण सार, तारी अंखडी दिइ मझ अकवार. जिम वंदिइ वली वली मनह रंगि प्रभु आपणु सेतुंज सिहरि श्रृंगि. १३ भोरु मन रहिउ ताहीरइ चलणि लागी, तव तुम्ह कन्हइ आज नइ सुगति म (मु) गति मागी. एह तीरथ सासतुं सिद्धखेत्र, युगादीस जाणे जिहां जगहनेत्र. १४ वसई विमलगिरि उपरि पंखजाति, धन प्रभु पय नितु नमंइ सुप्रभाति छहरी पालतां जे जण करई जात्र, तेह नितु नितु निरमल हुँइ गात्र. १५ अरे विषय वयरी तुझ न हीअ लाग, तुज परि उपनु मुज विराग अरे मोह मतंग तु हारी नासि, हवइ आपणुं ठाम ते करीसुं विमासी. १६ 65 जगि जेहनी कहनइ नही पाडि, तेहू भुजबलि भागीअ कर्म धाडि मिलिवड ठाकुर आपणु तु आज हेव, सोई समरथ सेत्रुज धणीअ देव. १७ अह दरसणि दुर्गति दोइ नासिहं, एह दरसण छूटि गर्भवासइ अछइ एतलुं एह संसार सर करई, त्रिभुवन तीरथ जे जे हार. १८ जिम मनस सरोवरे रायहंस, तिम तुज गुणि मोरडउ रमइ हंस जिम मधुर करमालती रमइ रंगि, मन माहरु सेत्रुज सिहरि श्रृंगि १९. जिम जलधर पेखि, नाचंति मोरा, हीइ हरखीइ जीम चं [द] चकोरा. तिम सेज सिहरि हुं रंगि लीण उ करुं वनती केतली बुद्धिहीणुं. २०. धन घडीअ वेला, दिन, वरिस, करइ सेत्रुज नर जे सिहरि वास धणी वनंती एह ज वात सारी ली, भवि भवि भेटि देज्यो तुम्हारी. २१ सिरि लच्छिसायर जगदिवायर सीस जिनमाणिक गुरो. तस सीसलेसइ अनंतहंसइ थुणिओ सेतुंज गिरिवरो. २२. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 अनुसंधान-२७ सिरि रयणसेहरसूरिसेहर पट्ट गयण दिवाकरो. रिसह जिणवर अमृत विर बोधि बीज सुहंकरो. २३ इति श्री आदिनाथ वीनती पूजा पं. सुधाभूषणशिष्येणालेखि. अघरा शब्दोनी यादी आदिनाथ युगादीस अलजउ हेल आतुर धक्को क्यारेक भ्रमर किवारीइ भमुहडी उआरण ओवारj सासतु भामणह. अहूठ सिहर शाश्वतु भामणां-ओवारणां लेवा साडा त्रण शिखर सामीप्य कळरव वर्तुळ/मंडळ ताहरा/तारा साम कळिवर मांडली ताहीरइ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 67 'प्रमाणसार' विषे अनुसन्धान-२५ (सप्टे.२००३)मां प्रकाशित, मुनीश्वरसूरिरचित 'प्रमाणसार' नामे लघुग्रन्थ परत्वे स्पष्टता करवानी के ए ग्रन्थ १९७३मां L.D.Series (no. 41)अमदावादमां डो. नगीन जे. शाह द्वारा सम्पादित 'जैन दार्शनिक प्रकरण सङ्ग्रह' नामे ग्रन्थमां सम्पादन-प्रकाशन पामेलो छे, ए बाबत हजी हमणां ज, फेब्रुआरीमां ज ध्यान पर आवेल छे. जो के सम्पादन माटे उपयोगमा लेवायेली हस्तप्रति, अमारा द्वारा उपयुक्त प्रतिओ करतां साव भिन्न छे, अने तेने कारणे वाचनामां पण क्यांक थोडोक तफावत जोवा मळे छे. 'अनुसन्धान' माटे आ ग्रन्थ, सम्पादन हाथ धरतां अगाउ, आनी वधु प्रतिओ मेळववाना तथा वधु जाणकारी मेळववाना हेतुथी L.D.I.I. पर बेएक पत्र पाठवेला. परंतु कोई पण कारणसर तेना जवाब मने मळेल नथी. हमणां में आ बन्ने सम्पादनो मेळव्यां छे, बन्नेनी तुलना करतां 'अनुसन्धान'नी वाचनामां जे पाठ खूटे छे के जे पाठमा क्षति रही छे के ज्यां पाठभेद जणाया छे, तेनी नोंध नगीनभाई-सम्पादित वाचनामांथी लईने अत्रे आपवामां आवे छे. बन्ने वाचनाओमां तथा सम्पादनमा कांईक ने कांईक क्षति तो नीकळवानी ज. अहीं आपेल आ नोंधथी एक वाचना वधु शुद्ध अन वधु पूर्ण थशे तेनो आनन्द छे. अनु. २५नुं सम्पादन भावनगरनी तथा लींबडीनी मळीने कुल बे प्रतिओना आधारे थयुं छे, ज्यारे नगीन शाहना सम्पादननो आधार L.D. ना श्रीपुण्यविजयजी-सङ्ग्रहगत प्रति रही छे. ग्रन्थनी प्रस्तावनामां श्रीनगीनभाईए नोंध करी छे ते प्रमाणे, 'प्रमाणसार'ना रचयिता श्रीमुनीश्वरसूरि वृद्धगच्छना आचार्य हता, तथा तेमनो सत्तासमय विक्रमना १५मा शतकनो उत्तरार्ध हतो. तेमनी गुरुपरम्परामां श्रीदेवाचार्य, जिनरत्नसूरि, तिलकसूरि, भद्रेश्वरसूरि वगेरे हता. नगीनभाईना सम्पादननी विशेषता ए छे के तेमणे ग्रन्थमा आवतां उद्धरणोनां शक्य एटलां मूळ स्थानो शोधीने नोंध्यां छे. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 १. अनु. पृ.क्र. २. अनु. मां ' श्रीमुनीश्वरसूरीन्द्रैः' ए पांचमो क्रमाङ्क धरावतो श्लोक छे, ते न. प्रमाणे, 'प्रमाणसार' नो अन्तिम श्लोक छे अने ए ज उचित लागे छे. (पृ. २१, पं. ५ ) ३. हवेना पाठशोधन वगेरेनी तालिका आ प्रमाणे : (२५) or or or a av a z २१ २१ २१ २१ 2 2 2 हवे पाठभेदादि नोंधीए : ग्रन्थारम्भे ४ मङ्गलश्लोको छे, ते पछी एक आखो गद्यखण्ड आ प्रमाणे न मां मळे छे, जे अनु. मां उमेरवो जोईए २२ २२ "ननु सम्बन्धाभिधेयप्रयोजनवत् प्रकरणकरणं स्यात् । इह ज्वरप्रसरादिशेषशिरोरत्नोपदेशवदशक्यानुष्ठानाभिधेयं 'दश दाडिमानि षडपूपाः कुण्डमनाजिनं' इति सम्बन्धवन्ध्यं च जनन्याः पाणिपीडनोपदेशवदनभिमतप्रयोजनं स्यात् । तत्र प्रेक्षाचक्षुषः क्षोदिष्टामपि प्रवृत्ति न प्रारभन्ते । तदिह प्रमाणसारावबोधे निखिलं सिद्धम् तदिद० । (अनु. पृ. २१ पं. ३) पंक्ति क्र. ७ २१ १६ २१ २२ ४ २२ १० न तद्विप्रमिणोतीति १० आत्मा वा प्रमाणम् । न, प्रमेयं वा प्रमाणम् । न, कर्मविलक्षणत्वाद् ११ २३ २५ २५ पाठ ननु प्रमाणिकानां आदितोऽत्र तर्जन्या० ( ऽसत्तावादिन् ? ) कथा० नाम | अद्वैतं - न. पाठ अनुसंधान- २७ तेषां प्रामाणिकानां आदितः । अत्र प्रमिणोतीति आत्मा वा प्रमाणं न, प्रमेयं वा, प्रमाणं न, कर्मविलक्षणं तद् कृततर्जन्या० अयोग्यमिदं संशोधनम् । [च] कथा० नाम अद्वैत, Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 * ☹ m m x z z २३ २३ २३ २३ २४ २५ २५ २५ २५ २६ Z Z Z w w w w w 2 2 2 2 2 2 2 2 X 2 w 2 m 2 2 2 2 2 २७ १७ २५ २५ २६ २८ २८ २९ २ १६ २२ २९ 67 २९ ८ २७ १० १७ १९ २५ ७ १८ २२ १० असिद्धमसिद्धेन किं सिद्धयै चैत्यमानं स्वव्यवस्थाया अ० निर्नीतार्था: ०क्षणे । अप्रा० गुणः । यथा इह प्रत्ययो ० नर्थक्रियाकारि सम्बन्धाभावो गुणः । क्रमभावी पर्यायः । गुणः । पर्यायः यथा कथम् ? यथा यथा - इहप्रत्ययो ० नर्थक्रियाकारी सम्बन्धभावो स्ववाचकत्व० घटशब्दोच्चारणेति (ऽपि ) शब्दार्थानुपलभ्येते ? | त० मुधामद्वि (?) युक्तं तस्वीकृतं तीर्थे: अत्यन्त व्या० गोत्वगोत्व ० विशेषार्पका: असिद्धम् । असिद्धेन किं सिद्धयेद् चेत्यमानं सरलस्वरन्ध्र० वृषस्यन्ती प्रतिवादिषिङ्ग० प्रतीक्षते 'सदेव स' ० मसत्त्वं च वि० स्वव्यवस्थयाऽव० निर्णीतार्था: ०क्षणे अप्रा० गुणः । क्रमभावी पर्यायः । गुणः कथम् ? यथा स्वस्ववाचकत्व ० घटशब्दोच्चारणे सति शब्दार्थावुपलभ्येते त सुधा (धी) मद्भि० युक्त्यन्तरेण स्वीकृतं तीयैः अत्यन्तव्या० गोत्वं गोत्व० विशेषात्मका: सरल: स्वरन्ध्र० वृषस्यन्तीं प्रति षिङ्ग० प्रतीक्ष्यते 'सदेव सत्' • मसत्त्वं च न वि 69 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 생생심 २९ ३० ३० ३० ३१ ३१ ३१ ३२ ३२ ३२ ३२ ३२ ३२ ३३ ३३ ३३ ३३ ३३ ३३ ३४ ३४ ३५ ३५ २५ २७ २८ २८ १२ १८ १९ ४ ६ १० १८ १९ २५ ७ x 2 x = 2 १४ १७ २२ २३ २७ १५ २३ कुलालादि, कुलालादि [ घटे), ० पराकाराश्रय० ० पराकारोदय० धारश्चैक इति धारश्चैतदिति त्रयमिति न्यायावलीढं वचः त्रयमयं तत्त्वं तथाप्रत्ययात् बोधच्युता बाधच्युता सङ्ख्याप्रति ० सङ्ख्याविप्रति० ० पतिमुसन्ति ० पत्तिमुस ( मुदस्य) न्ति भाना सर्वजातौ सिद्धमेव चक्षुरादि० ननु अक्षशब्द० श्रोत्राण्येन्द्रिय० तर्कतज्ञ: ०देव | मनसो ०ऽर्थावग्रहः । क्रमा० ० माशूत्पादात् । ज्ञानो ० क्षेत्रावधिरूपिद्रव्यगोचरं । भागा सर्व गता जाता ऽ सिद्धमेव चक्षुरादेः अनुसंधान- २७ न तु अक्षिशब्द० श्रोत्राण्यन्ये ( श्रोत्रान्येन्द्रिय०) तर्कतज्ज्ञ: ०देव मनसो ०ऽर्थावग्रहः क्रमा० ० माशूत्पादात् ज्ञानो० क्षेत्रावधि रूपिद्रव्यगोचरं भव० भव० पछी १ श्लोक उमेरो : तस्मादनुष्ठानगतं ज्ञानमस्य विचार्यताम् । प्रमाणं दूरदर्शी चेदेते गृध्रानुपास्महे || • ररूपम् । ●रभूतम् । • मुत्पादयतः । ० मस्तीति चेत् । ० ब्रजितादि० • मुत्पादयतः • मस्तीति च । ०व्रजितार्यादि० Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 71 ३५ ३७ ३७ ३७ ३८ ४ कृतकत्व ३८ १४ पदार्थस्य । तत्त० पदार्थस्य तत्त० प्रतिषेधाश्च प्रतिषेधाच्च इत्याप्त इति । आप्त० गोत्र १ गोत्व १ भवद्भिरहरहः ०र्भवद्भिर्वाचोयुक्तीनां धुरि भवद्भिरहरहः कुर्महे हेच्छाः कुर्महे महेच्छाः १६ युक्त्या जातः युक्त्याऽऽयातः १८ उभयम् । उभयं समस्ति । कृतकत्वात् कृतकृत्यत्वात् १० लालग्यात् । अतो० लालग्यात् । अशरीरश्चेत् किं पिशाचादिवददृश्य इति ? तद्वत् चेत् तॉकिञ्चित्कर एव। अतो० १४ निमित्ति० निमित्त मोक्षं विभ० मोक्षेऽभिव्य० २३ ०वयवाः । पञ्चावयवं ०वयवाः पञ्चावयव= पदार्थानां तत्त्वानां सम्बन्धसम्बद्धसन्नि सम्बन्धसन्नि नैयायिकाः सिद्धम् । नैयायिकाः । योगाः माने माने (मणि) जपन्त्यङ्गं जपन्त्यन्नं महदहंकार० महदहंकारः पञ्चतन्मात्राणि पछी उमेरण- [एकादशेन्द्रियाणि पञ्च भूतानि चेति] कारणभावाभावा० यौगाः कारणाभावा० Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-२७ 14 कारणस्य रूप० कारणस्वरूप 18 वैशेषिकैस्तु द्रव्य० अथ वैशेषिकाः / द्रव्य० 22 ब्रह्म विवर्त० ब्रह्मविवर्त० 22-23 ये(यै?) रेवाद्दितया . गेहेनर्दितया 42 5 . जलं [तथा]तेजो जलं तेजो 42 10 अभू(भि?)भूय प्रभूभूय 'प्रमाणसार'ना त्रण परिच्छेदोनो सरस परिचय तथा उद्धरणोनां मूल स्रोतो विषे जाणवा इच्छनारे नगीन जी. शाह द्वारा सम्पादित ग्रन्थनी भूमिका जोवा भलामण छे. शी.