Book Title: Aagam Manjusha 27 Painnagsuttam Mool 04 Bhattparinna
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा [२७] भत्तपरिण्णा * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मनि दीपरत्नसागर M.Com. M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहवाचि सिज्झिज्जा ॥१४२॥२७५॥ इति महापञ्चकखाणपइण्णं ३॥ 011-29- श्रीभक्तपरिज्ञाप्रकीर्णकम्-नमिऊण महाइसयं महाणुभाचं मुणिं महावीरें। भणिमो भत्तपत्र - रिणं निअसरणट्टा परट्टा य ॥१॥२७६॥ भवगहणभमणरीणा लहंति निबुइमुहं जमड़ीणा। तं कप्पदुमकाणणसुहयं जिणसासणं जयह ॥२॥ मणुअत्तं जिणवयणं च दुलहं पाविAऊण सप्पुरिसा !। सासयमुहिकरसिएहिं नाणवसिएहिं होअव्वं ॥३॥ जं अज्ज सुहं भविणो संभरणीयं तयं भवे काउं। मगति निरुवसग्गं अपवम्गमुह बुहा तेणं ॥४॥ नरविबुहेसरमुक्खं दुक्ख परमत्यओ तयं चिंति। परिणामदारुणमसासर्य च जं ता अलं तेण ॥५॥ जं सासयसुहसाणमाणाआराहणं जिर्णिदाणं । ता तीए जइअवं जिणवयणविसुद्धबुद्धीहिं॥६॥ तं नाणदसणाणं चारित्ततवाण जिणपणीआणं । जं आराहणमिणमो आणाभाराहणं चिंति ॥७॥ पवजाए अब्भुजओऽवि आराहओ अहासुत्तं । अग्भुजअमरणेणं अविगलमाराहणं लहइ॥ ८॥तं अभुज्जअमरणं अमरणधम्मेहि बनिअंतिविहं। भत्तपरित्रा इंगिणि पाओवगमै च धीरेहिं॥९॥ भत्तपरिन्नामरणं दुविहं सविआरमो य अविआरं। सपरकमस्स मु. णिणो संलिहिअतणुस्स सविआरं ॥१०॥ अपरक्कमस्स काले अप्पहुप्पतमि जं तमविआरं। तमहं भत्तपरिन्नं जहापरिन्नं भणिस्सामि ॥१॥ धिड़बलविअलाणमकालमचुकलिआणमकयकरणाणं । निरवजमज्जकालिअजईण जुम्गं निरुवसम्गं ॥२॥ परम (प्र० पसम) सुहसप्पिवासो असोअहासो सजीविअनिरासो। बिसयसुहविगयरागो धम्मुजमजायसंवेगो ॥३॥ निच्छिामरणावत्यो बाहिग्धत्थो जई गिहत्थोवा। भविओ भत्तपरिन्नाइ नायसंसारनि(म०ति)गुन्नो॥४॥ पच्छायावपरद्धो पियधम्मो दोसदसणसय(प्र०ह)हो। अरिहइ पासस्थाइंवि दोसदोसिलकलिओऽपि ॥५॥ वाहिजरमरणमयरो निरंत(प०ब)रुप्पत्तिनीरनिकुरंबो। परिणामदारुणदुहो अहो दुरंतो भवसमुहो॥६॥ इन कलिऊण सहरिसं गुरुपामूलेऽभिगम्म विणएणं। भालयलमिलियकरकमलसेहरो बंदिउं भणइ ॥७॥ आरुहियमहं सुपुरिस ! भत्तपरिमापसत्थबोहित्थं। निजामएण गुरुणा इच्छामि भवन तरिउं ॥८॥ कारून्नामयनीसंदसुंदरो सोऽवि से गुरू भणइ। आलोअणवयखामणपुरस्सरं तं पक्जेसु ॥९॥ इच्छामुत्ति भणित्ता भत्तीबहुमाणसुबसंकप्पो। गुरुणो विगयावाए पाए अभिवंदिउं विहिणा ॥२०॥ साई उद्धरिउमणो संवेगवेअतिवसद्धाओ। जं कुणइ सुद्धिहेउं सो तेणाराहओ होइ॥१॥ अह सो आलोयणदोसवन्जिय उजुयं जहाऽऽयरियं । बालुछ बालकालाउ देइ आलोयणं सम्मं ॥२॥ ९१३ भक्तपरिज्ञा.-11-1-12 मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठविए पायच्छित्ते गणिणा गणिसंपयासमोणं । सम्ममणुमनिय तयं अपावभावो पुणो भणइ ॥३॥ दारुणदुहजलयरनियरभीमभवजलहितारणसमत्ये। निप्पचवायपोएमहत्यए अम्ह उरिखवसु ॥४॥ जइऽवि स खंडियचंडो अक्खंडमहबओ जई जइवि। पव्वजवउट्ठावणमुट्ठावणमरिहह तहावि ॥५॥ पहुणो सुकयाणत्तिं भिच्चा पञ्चप्पिणंति जह विहिणा। जावजी. वपहण्णाणत्ति गुरुणो तहा सोऽवि ॥ ६॥ जो साइआरचरणी आउहियदंडसंडियवओ वा। वह तस्सवि सम्ममुवडियस्स उट्ठावणा भणिया ॥७॥ तत्तो तस्स महब्बयपब्वयभारोनमं. तसीसस्स। सीसस्स समारोवइ सुगुरूवि महब्बए विहिणा ॥८॥ अह हुज देसविरओ सम्मत्तरओ रओ अ जिणधम्मे (प्र० वयणे)। तस्सवि अणुव्ययाई आरोविजंति सुद्धाई ॥९॥ अनियाणोदारमणो हरिसवसविसट्टकंचु(पट)यकरालो। पूएइ गुरुं संघ साहम्मियमाइ भत्तीए ॥३०॥ नियदवमपुवजिणिंदभवणजिणविवरपइट्ठासु। विअरइ पसत्यपुत्थयसुतित्थ. तित्थयरपूयासु ॥१॥ जइ सोऽवि सव्वविरईकयाणुराओ विसुद्धमइकाओ। छिन्नसयणाणुराओ विसयविसाओ विरत्तो अ॥२॥ संथारयपव्वज पव्यजइ सोऽपि निअम निवज । सव्वविरइप्पहाणं सामाइअचरित्तमारहइ ॥३॥ अह सो सामाइअधरो पडिवन्नमहव्वओ अजो साहू। देसविरओ अ चरिमे पञ्चक्खामित्ति निच्छाओ॥४॥ गुरुगुणगुरुणो गुरुणो पयर्प. कय नमिअमत्यओ भणइ। भयवं ! भत्तपरिन्नं तुम्हाणुमयं पवजामि ॥५॥ आराहणाइ खेमं तस्सेव य अप्पणो अ गणिवसहो। दिव्वेण निमित्तेणं पडिलेहइ इहरहा दोसा ॥६॥ तत्तो भवचरिमे सो पञ्चकखाइत्ति तिविहमाहारं। उकोसिआणि दव्याणि तस्स सव्वाणि दंसिज्जा ॥७॥ पासित्तु ताई कोई तीरं पत्तस्सिमेहिं किं मज्म ?। देसं च कोइ भुचा संवेगगओ विचिंतेह ॥८॥-किं चत्तं(चेत्य) नोवभुत्तं मे, परिणामासुई सुई। दिवसारो सुहं साइ, चोअणेसाऽवसीअओ॥९॥ उअरमलसोहणट्ठा समाहिपाणं मणुन्नमेसोऽवि। महुरं पजेअब्बो मंद च विरेयणं खमओ ॥४०॥ एलतयनागकेसरतमालपत्तं ससकर दुखें। पाऊण कढिअसीअलसमाहिपाणं तओ पच्छा ॥१॥ महुरविरेअणमेसो कायव्यो फोफलाइदव्वेहिं । निव्वाविओ अ अग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ ॥२॥ जावजीवं तिविहं आहारं वोसिरह इह खवगो। निजवगो आयरिओ संघस्स निवेअणं कुणइ ॥३॥ आराहणपचाइ खमगस्स य निरुवसग्गपचइज। तो उस्सम्गो संघेण होइ सवेण कायद्यो॥४॥ पचक्खाविति तओ तं ते खमयं चउबिहाहारं । संघसमुदायमझे चिइवंदणपुवयं विहिणा ॥५॥ अहवा समाहिहेउं सागारं चयह तिविमाहारं। तो पाणयंपि पच्छा वोसिरिअवं जहाकालं ॥६॥ तो सोनमंतसिरसंघडतकरकमलसेहरो विहिणा । खामेइ सवसंघ संवेगं संजणेमाणो ॥७॥ आयरिस उबझाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य। जे मे केइ कसाया सवे तिविहेण खामेमि ॥८॥ सधे अवराहपए खामेमि अहं खमेउ मे भयर्व! । अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंपायस्स संघस्स ॥९॥ इज बंदणखमणगरिहणाहिं भवसयसमजिअं कम्मं । उवणे खणेण खयं मिआवई रायपत्तिय ॥५०॥ अह तस्स महायसुद्विअस्स जिणवयणभाविजमइस्स। पञ्चकूखायाहारस्स तिवसंवेगसुहयस्स ॥१॥ आराहणलाभाओ कयत्वमप्पाणयं मुणंतस्स । कलुसंकलतरणलढि अणुसद्धिं देइ गणिवसहो ॥२॥ कुमाहपरूढमूलं मूला उच्छिद पच्छ ! मिच्छत्तं । भावेसु परमतत्तं सम्मत्तं सुत्तनीईए ॥३॥ भत्तिं च कुणसु तिव्वं गुणाणुराएण वीयरायाणं । तह पंचनमुकारे पक्ष्यणसारे रई कुणसु ॥४॥ सुविहियहियनिझाए सज्झाए उजुओ सया होसु। निचं पंचमहब्बयरक्सं कुण आयपथक्वं ॥५॥ उज्झसु नियाणसाई मोहमहडं सुकम्मनिस्सल । दमसु य मुर्णिदसंदोहनिदिए इंदियमयंदे ॥६॥ निव्याणसुहावाए विइन्ननिरयाइदारुणावाए। हणमु कसायपिसाए विसयतिसाए सइसहाए ॥७॥ काले अपहप्पते सामने साक्सेसिए इण्हि। मोहमहारिउदारणअसिलहिँ सुणसु अणुसहि ॥८॥ संसारमूलषीयं मिच्छर्त सम्बहा विवजेहि। सम्मत्तं ददचित्तो होसु नमुकारकुसलो य ॥९॥ मगतिण्यिाहिं तोयं मन्नति नरा जहा सतण्हाए। सुक्खाई कुहम्माओ तहेव मिच्छत्तमूढमणो ॥६०॥ नवितं करेइ अम्गी नेव विस नेव किण्हसप्पो य। जं कुणइ महादोसं तिव्यं जीवस्स मिच्छत्तं ॥१॥ पावह इहेव वसणं तुरमणिदत्तुब दारुणं पुरिसो। मिच्छत्तमोहिअमणो साहुपओसाउ पावाओ॥२॥ पमाय सम्मने सव्यदुक्खनासणए। ज सम्मनपइट्ठाई नाणतवचिरिअचरणाई॥३॥ भावाणुरायपेमाणुरायसुगणाणरायरत्तो अ। धम्माणरायरत्तो अहोस जिणसासणे 14 निचं ॥४॥दसणभट्ठी भट्ठो नहु भट्ठो होइ चरणपन्भट्ठो। दसणमणुपत्तस्स हु परिअडणं नस्थि संसारे ॥५॥ दंसणभट्ठो भट्ठो दसणभट्ठस्स नस्थि निव्वाणं। सिझति चरणरहिआ दसणरहिआ न सिझति ॥६॥ मुद्दे सम्मत्ते अविरओऽवि अज्जेइ तित्थयरनाम। जह आगमेसिभदा हरिकुलपहुसेणिआईया ॥७॥ कहाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता। सम्महंसणरयणं नऽग्घई ससुरासुरे लोए॥८॥ तेलुकस्स पहुनं लगुणवि परिखडंति कालेणी सम्मत्तं पुण लढं अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं ॥९॥ अरिहंतसिदचेयपवयणआयरिअसम्बसाहूमुं। तिव्यं करेसु भत्ति तिगरणसुद्धेण भावेणं ॥ ७० ॥ एगाविसा समत्था जिणभत्ती दुग्गई निवारेउ। दुलहाई लहावेउं आसिद्धिं परंपरसुहाई ॥१॥ विजाचि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य। किं पुण निबुइविजा सिज्झिहिद अमत्तिमंतस्स? ॥२॥ तेसिं आराहणनायगाण न करिज जो नरो भत्ति। धणिअंपि उजमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ ॥३॥ ९१४ भक्तपरिज्ञा -२५-५ मुनि दीपरत्नसागर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीएण विणा सस्सं इच्छ सो वासमम्भरण विणा आराहणमिच्छंतो आराह्यभत्तिमकरंतो ॥ ४ ॥ उत्तमकुलसंपत्तिं सुहनिप्फसिं च कुणइ जिणमती मणियारसिट्टिजीवस्स ददु रस्सेव रायगिहे ||५|| आराहणापुरस्सरमणमहियओ विसुद्धलेसाओ। संसारक्खयकरणं तं मा मुंची नमुकारं ॥ ६॥ अरिहंतनमुकारो इकोऽवि हविज जो मरणकाले। सो जिणवरेहिं दिट्टो संसारुच्छेअणसमत्थो ॥ ७ ॥ मिठो किलिकम्मो नमो जिणाणंतिसुकयपणिहाणो। कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरुति सूलिहओ ॥ ८ ॥ भावनमुकारविवजिआई जीवेण अकयकरणाई गहियाणि अ मुकाणि अ अनंतसो दद्दलिंगाई ॥ ९ ॥ आराहणापडागागहणे हत्यो भवे नमोकारो तह सुगइमम्गगमणे रहुड जीवस्स अप्पडिहो ॥ ८० ॥ अन्नाणीऽवि अ गोवो आराहित्ता मओ नमुकारं चंपाए सिडिओ सुदंसणो विस्सुओ जाओ ॥ १ ॥ विजा जहा पिसायं सुदुउवत्ता करेइ पुरिसवसं नाणं हिअयपिसायं सुदवडतं तह करेइ ॥ २ ॥ उवसमइ किण्हसप्पो जह मंतेण विहिणा पडत्तेणं । तह हिययकिण्हसप्पो मुट्ठवउत्तेण नाणेणं ॥ ३ ॥ जह मफडओ खणमवि मज्झत्थो अच्छिउं न सफेद तह खणमचि मज्झत्यो विसएहिं विणा न होइ मणो ॥ ४ ॥ तम्हा स उडिउमणो मणमकडओ जिणोवएसेणं। काउं सुत्तनिवदो रामेजयो सुहज्झाणे ॥ ५ ॥ सूई जहा ससुता न नस्सई कयवरंमि पडिआदि । जीवोऽवि तह ससुतो न नस्सह गओषि संसारे ॥ ६ ॥ खंडसिलोगेहि जवो जइ ता मरणाउ रक्खिओ राया। पत्तो अ सुसामन्नं किं पुण जिणउत्तमुत्तेनं १ ॥ ७ ॥ अहवा चिलाइपुत्तो पत्तो नाणं तहाऽमरतं च। उवसमविवेगसंवरपयसुमरणमित्तसुअनाणो ॥ ८ ॥ परिहर छज्जीववहं सम्मं मणवयणकायजोगेहिं जीवविसेसं नाउं जावज्जीवं पयत्तेणं ॥ ९ ॥ जह ते न पिअं दुक्खं जाणिज एमेव सजीवाणं सङ्घायरमुवउत्तो अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ॥ ९० ॥ तुंगं न मंदराओ आगासाओ विसालयं नत्थि जह तह जयंमि जाणसु धम्ममहिंसासमं नत्यि ॥ १ ॥ सज्ञेविय संबंधा पत्ता जीवेण सङ्घजीवेहिं तो मारंतो जीवे मारइ संबंधिणो सङ्के ॥ २ ॥ जीववहो अप्पवहो जीवदया अप्पणो दया होइ। ता सङ्घजीवहिंसा परिचत्ता अत्तकामेहिं ॥ ३ ॥ जावइआई दुक्खाई हुंति चउग्गहगयस्स जीयस्स सबाई ताई हिंसाफलाई निउणं विआणाहि ॥ ४ ॥ जंकिंचि सुहमुआरं पहुत्तणं पयइसुंदरं जं च आरुगं सोहम्मां तं तमहिंसाफलं सव्वं ॥ ५ ॥ पाणोऽवि पाडिहेरं पत्तो छूढोऽवि सुंसुमारदहे। एगेणवि एगदिणऽजिएणऽहिंसावयगुणेणं ॥ ६ ॥ परिहर असमवयणं सर्वपि चउविहं पयत्तेणं संजमवंतावि जज भासादोसेण लिप्यंति ॥ ७॥ हासेण व लोहेण व कोहेण भएण वावि तमसचं मा भणसु २ सचं जीवहि अत्यं पसत्यमिणं ॥ ८ ॥ विस्ससणिजो माया व होइ पुज्जो गुरुब्व लोअस्स । सयणुब्ब सबवाई पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ ॥ ९ ॥ होउ व जडी सिहंडी मुंडी वा वक्कली व नग्गो वा लोए असच्चवाई भन्नइ पाखंडचंडालो ॥ १०० ॥ अलिअं सईपि भणिअं विहणइ बहुआई सच्चवयणाई पडिओ नरयंमि वसू इक्केण असच्चवयणेणं ॥ १ ॥ मा कुणसु धीरः बुद्धि अप्पं व बहुं व परघणं चित्तुं । दंतंतरसोहणयं किलिंषमित्तंपि अविदिनं ॥ २ ॥ जो पुण अर्थ अवहर तस्स सो जीविअंपि अवहइ जं सो अत्थकएणं उज्झइ जीअं न उण अत्यं ॥ ३ ॥ तो जीवदयापरमं धम्मं गहिऊण गिव्ह माऽदिनं जिणगणहरपडिसिद्धं लोगविरुद्धं अहम्मं च ॥ ४ ॥ चोरो परलो मिऽवि नारयतिरिए लहइ दुक्खाई। मणुअत्तणेवि दीणो दारिद्दोबदुओ होइ ॥ ५ ॥ चोरिक्कनिवित्तीए सावयपुत्तो जहा सुहं लहई। किढि मोरपिच्छचित्तिअगुट्टी चोराण चलणेसु ॥ ६ ॥ रक्खाहि वंभचेरं वंभगुत्तीहिं नवहिं परिमुद्धं निचं जिणाहि कामं दोसपकामं वियाणित्ता ॥ ७॥ जावइया किर दोसा इहपरलोए दुहावहा हुति आवहई ते सच्चे मेहुणसन्ना मणूसस्स ॥ ८ ॥ रइअरइतरलजीहाजुएण संकप्पउम्भडपणेणं विसयबिलवासिणा भ (म ) यमेहुणबिम्बो अरोसेणं ॥ ९ ॥ कामभुअंगेण दट्ठा लज्जानिमोयदप्पदादेणं नासंति नरा अवसा दुस्सहदुक्खावविसेणं ॥ ११०॥ लडकनिरयवियणाओ घोरसंसारसायरुव्वहणं। संगच्छइ न य पिच्छइ तुच्छत्तं कामियसुहस्स ॥ १॥ वम्महसरसयत्रिदो गिदो वणिउब्व रायपत्तीए पाउखालयगेहे दुग्गंधेऽणेगसो वसिओ ॥ २ ॥ कामासत्तो न मुणइ गम्मागम्मंपि वेसियाणुव्व सिद्धी कुवेरदत्तो निअयमुआसुरयरइरत्तो ॥ ३ ॥ पडिपिडिय कामकलिं कामग्धत्थासु मुयसु अणुबंधं महिलासु दोसविसवारीसु पयहं नियच्छंती ॥ ४ ॥ महिला कुलं सुवंसं पियं सुयं मायरं च पियरं च विसयंधा अगणंती दुक्खसमुदम्मि पाडेइ ॥ ५ ॥ नी अंगमाहिं सुपओहराहि उप्पिच्छमंथरगईहिं महिलाहिं निनयाहि व गिरिवरगुरुआवि भिजंति ॥ ६ ॥ सुषि जियासु सुदवि पियासु सुठुवि परूढपेमासु । महिला भुजंगी व पीसंभं नाम को कुणइ ? ॥ ७ ॥ वीसंभनिन्भरंपिडु उक्यारपरं परूद्धपणयपि कयचिप्पियं पियं झत्ति निंति निणं यासाओ ॥ ८ ॥ रमणीयदंसणाओ सोमालंगीड गुणनिबद्धाओ। नवमालमालाउन हरंति हिययं महिलियाओ ॥९॥ किं तु महिलाण तासिं दंसणसुंदरजणियमोहाणं। आलिंगणमइरा देह वज्झमालाणव विणासं ॥ १२० ॥ रमणीण दंसणं चैव सुंदर होउ संगमसुहेणं। गंधुच्चिय सुरहो मालईइ मलणं पुण विणासो ॥ १ ॥ साकेअपुराहिवई देवरई रज्जसुक्लप भट्ठो पंगुलहेतुं छूढो बूढी अ नईइ देवीए ॥ २ ॥ सोअसरी दुरिअ दरी कवडकुड़ी महिलिआ किलेसगरी वइरविरोअणअरणी दुक्खखणी सुक्लपडिवक्ला ॥ ३ ॥ अमुणिअमणपरि ( प्र० घर ) कम्मो सम्म को नाम नासिउं तरह। वम्महसरपसरोहे दिट्ठि९१५ मतपरिज्ञा, आहा- १४- १२४ 1 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | बलोहे मयच्छीणं ॥४॥षणमालाओव दुरुन्नमंतसुपओहराउ बढ्दति / मोहविसं महिलाओ आलएकविसंव पुरिसस्स // 5 // परिहरसु तओ तासिं दिदि विट्ठीविसस्स व अहिस्स। जं रमणिनयणबाणा चरित्तपाणे विणासंति // 6 // महिलासंसग्गीए अग्गीइव जं च अप्पसारस्स। मयणंव मणो मुणिणोऽवि हंत खणेणं चिअ विलाइ // 7 // जइबि परिचत्तसंगो तवत. राणअंगो तहावि परिवडइ / महिलासंसम्गीए कोसाभवणूसिया रिसी // 8 // सिंगारतरंगाए विलासवेलाइ जवणजलाए। पहसिअफेणाइ मुणी (प्र. के के जयंमि परिसा) नारिनईए न बुइडंति ? // 9 // विसयजलं मोहकलं बिलासवियोअजलयराइन्न / मयमयर उत्तिमा तारुण्णमहन्नव धीरा॥१३०॥ अम्भितरवाहिरए सो संगे (म० गंथे) तुमं विवजेहि। कयकारिअणुमईहिं | किलेससयकरए निचं // 1 // संगनिमित्तं मारइ भणइ अलीअं करे चोरिक। सेवइ मेहुण मुच्छं अप्परिमाणं कुणइ जीवो ॥शा संगो (प्र० गंथो) महाभयं जं विहेडिओ सावएण संतेणं / पुत्तेण हिए अत्थंमि मणिवई कुंचिएण जहा // 3 // सवगंधविमुक्को सीईभूओ पसंतचित्तो या जं पावइ मुत्तिसुहं न चक्कवट्टीवि तं लहइ // 4 // निस्साहस्सेह महत्वयाई अक्खंडनिवणगुणाई। उबहम्मति य ताई नियाणसाडेण मुणिणोऽवि // 5 // अह रागदोसगम्भं मोहम्गम्भं च तं भवे विविहं / धम्मत्थं हीणकुलाइपत्थणं मोहगभं तं // 6 // रागेण गंगदत्तो दोसेणं विस्सभूइमाईआ। मोहेण चंडपिंगलमाईआहुति दिवता // 7 // अगणिअ जो मुक्खसुहं कुणइ निआर्ण असारसहहे। सो कायमणिकएर्ण वेरुलिअमणिं पणासेह ॥८॥दकरखकखय कम्म कुखय समाहिमरणं च बोहिलाभो अ। एअं पत्थेअव्वं न पत्थणिज्ज तओ अन्नं // 9 // उज्झिअनिआणसल्लो निसिभत्तनिअत्तिसमिइगुत्तीहिं। पंचमहायरक्खं कयसिवसुक्खं पसाहेइ // 14 // इंदिअविसयपसत्ता पति संसारसायरे जीवा। पक्खिव छिनपक्खा मुसीलगुणपेहुणविहूणा // 1 // न लहइ जहा लिहतो मुहितिअं अडिअं रसं सुणओ।सोसइ(य)तालुअरसिर्ज बिलिहतो मन्नए सुक्खं // 2 // महिलापसंगसेवी न लहइ किंचिवि मुहं तहा पुरिसो। सो मन्मए बराओ सयकायपरिस्समं सुक्खं // 3 // सुठुबि मम्गिजतो कत्थवि केलीइ नत्थि जह सारो। इंदिअविसएसु तहा नस्थि सुहं सुदृढ़वि गविट्ठ // 4 // सोएणं पवसिअपिआ चकखूराएण माहुरो वणिओ। घाणेण रायपुत्तो निहओ जीहाइ सोदासो // 5 // फासिदिएण दुट्ठो नहो सोमालिआमहीपालो। इकिकेणवि निहया किं पुण जे पंचसु पसत्ता ? // 6 // विसयाविकखो निवडइ निरविकसी तरह दुत्तरभवोहं / देवीदेवसमागयभाउयजुअलं व भणिअंच (प० जिणवीरविणिहिट्ठो दिटुंतो बंधुजुयलेण) // 7 // छलिआ अवयकखंता निरावयाला गया अविग्घेणं / तम्हा पवयणसारं निरावयकखेण होअ॥८॥ विसए अवयक्खता पडंति संसारसायरे घोरे। विसएसु निराविक्खा तरंति संसारकतारं // 9 // ता धीर ! धीवलेणं दुदंते दममु इंदियमईदे। तेणुक्खयपडिवक्रवो हराहि आराहणपडागं // 150 // कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गणे। निग्गिण्ह तेण सुपरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं // 1 // अतिक्खं वक्खं जं जं च सह उत्तम कोहेण नंदमाई निया माणेण फरसुरामाई। मायाइ पंडरज्जा लोहेणं लोहनंदाई // 3 // इय उवएसामयपाणएण पल्हाइअम्मि चित्तंमि। जाओ सुनित्रुओ सो पाऊण व पाणियं तिसिओ॥४॥ इच्छामो अणुसढि भंते ! भवपंकतरणदढलडिं। जं जह उत्तं तं तह करेमि विणओणओ भणइ // 5 // जइ कहवि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा / अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिजा // 6 // निदं महुरं पल्हायणिजहिअयंगमं अणलियं च। तो सेहावेजो सो खवओ पार्वतेणं // 7 // संभरसु सुअण! जंतं मजसंमि चउविहस्स संघस्स। बुढा महापइना अयं आराहइस्सामि // 8 // अरिहंतसिद्धकेवलिपश्चर्ख सवसंघसक्खिस्स। पचक्खाणस्स कयस्स भंजणं नाम को कुणइ ? // 9 // भालुकीए करुण खजंतो घोरवियणत्तोPasवि। आराहणं पवनो झाणेण अवंतिसुकुमालो // 160 // मुग्गिालगिरिमि सुकोसलोऽवि सिद्धत्थदइअओ भयचं। वग्धीए खज्जतो पडिवो उत्तम अहूँ // 1 // गुढे पाओवगओ सुबंधुणा 1 गोमए पलिविअम्मि। हुज्झतो चाणको पडिवत्रो उत्तम अटुं // 2 // अवलंबिऊण सत्तं तुमंपि ता धीर! धीरयं कुणम् / भावेसु य नेगुन संसारमहासमुदस्स ॥३॥जम्मजरामरणजलो अणाइम बसणसावयाइन्नो। जीवाण दुक्खहेऊ कर्ट रुदो भवसमुहो॥४॥ धनोऽहं जेण मए अणोरपारंमि भवसमुहम्मि। भवसयसहस्सदुलह लद्धं सम्मजाणमिणं // 5 // एअस्स H पभावेणं पालिजंतस्स सह पवनेणं / जम्मतरेऽपि जीवा पावंति न दुक्खदोगचं // 6 // चिंतामणी अउचो एअमपुछो य कप्परुक्खुत्ति। एवं परमो मंतो एयं परमामयसरिच्छ॥७॥ अह मणिमंदिरमुंदरफुरतजिणगुणनिरंजणुजोओ। पंचनमुकारसमे पाणे पणओ विसजेइ // 8 // परिणामविसुद्धीए सोहम्मे सुरवरी महिड्ढीओ। आराहिऊण जायइ भत्तपरिनं जहन सो॥९॥ उक्कोसेण गित्यो अचुअकप्पंमि जायए अमरो। निधाणसुहं पावइ साहू सबट्टसिद्धिं वा॥१७०॥ इअजोईसरजिणवीरभद्दमणिआणुसारिणीमिणमो। भत्तपरिन्नं धन्ना पति निसुणंति भावेति // 1 // सत्तरिसयं जिणाण व गाहाणं समयखित्तपन्नतं। आराहतो विहिणासासयसुक्खं लहइ मुक्खं // 172 // (1-447) इति भत्तपरिन्नापइण्णं समत्तं 4 // 016-10