Book Title: Aagam 37 DASHAA SHRUTSKANDH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' [३७] श्री दशाश्रुतस्कन्ध (छेद)सूत्रम् । नमो नमो निम्मलदंसणस्स। पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः । “दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं [मूलं एव] [आदय संपादकः - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.] । (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.) | 12/02/2015, गुरुवार, २०७१ महा कृष्ण ८ jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[३७], छेदसूत्र-[४] "दशा तस्कन्ध" मूलं Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) प्रत सूत्रांक [ दीप अनुक्रम [-] “दशाश्रुतस्कन्ध” - छेदसूत्र - ४ ( मूलं ) दशा[-] मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी संशोधित: संपादितश्च दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र मुद्रित पृष्ठरुपं - शत्रुंजयतीर्थे शीलोत्कीर्णः -सुरतनगरे ताम्रपत्रोत्कीर्ण “आगममंजुषा" या: उद्धृत-छेदसूत्रम् वीर संवत २४६८ दशाश्रुतस्कन्ध - छेदसूत्रस्य “टाइटल पेज" विक्रम संवत १९९८ ~1~ सन् १९४२ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाका २+. +५७ (+५६) मूलांक: ००१ ००५ ०३१ ०३७-०५७ दशा ०१- असमाधिस्थानानि ०४- गणिसंपत्ति ०७- भिक्षुप्रतिमा १०- निदान आदि पृष्ठांक: ००४ ००५ ००८ ०११ 'दशाश्रुतस्कन्ध' छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम पृष्ठांक ००४ मूलांक: ००३ ०१६ ०३६ दशा ०२- शबला ०५- चित्त असमाधिस्थानानि 008 ०८. पर्युषण ०१० मूलांक: ००४ ०१८ ०३७ ~2~ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..... .. आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं दीप-अनुक्रमाः ११४ दशा ०३- आशातना ०६ उवासगप्रतिमा ०९- मोहनीयस्थानानि पृष्ठांकः ००४ ००६ ०१० Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ['दक्षाभुतस्कन्ध' मूल] इस प्रकाशन की विकास- गाथा पूज्यपाद आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी ) के संशोधन एवं संपादन से सन १९४२ (विक्रम संवत १९९८) में ४५ आगम+वैकल्पिक दो आगम+ पांच निर्युक्तिओ एवं कल्पसूत्र को मिलाकर “आगममंजुषा" नाम से करीब १३०० पृष्ठ छपे, जिसकी साइज़ 20x30 इंच थी | इस संपादनमें ६+१ छेदसूत्र भी पूज्यश्रीने मुद्रित करवाए | यहीं “आगममंजुषा" पूज्यश्री की प्रेरणा से श्री शत्रुंजयतीर्थ की तलेटीमें आगममंदिरमें आरस के पट्ट पर भी उत्कीर्ण हुई और सुरतनगरमे ताम्रपत्र पर भी अंकित हुई । हमने उसी ६+१ छेदसूत्रो को फोटो-स्केन करवाया, फोटो-स्केन कोपी को पहले ' A-4' साइज़ में अलग-अलग ६ + १ किताबो के रुपमे रखा, फिर उसी को इन्टरनेट पर भी अपलोड करवाया और हमारे प्रकाशनो कि DVD मे भी उनको स्थान दे दिया | * हमारा ये प्रयास क्यों? *आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५ आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा आदर देखकर हमने इसी ६+१ छेदसूत्रो को प्रत स्वरुपमें यहां सम्मिलित कर दिया, ताँकी भविष्यमे को यह न कहे कि इस संपुटमें ३९ आगम हि है, और ६ आगम कम है । एक स्पेशियल फोरमेट बनवा कर हमने बीचमे पूज्यश्री संपादित पृष्ठो को ज्यों के त्यों रख दिए, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन या उद्देशक तथा मूलसूत्र या गाथाजो जहां प्राप्त है उसके क्रमांक लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन या उद्देशक तथा सूत्र या गाथा चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके । हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस [-] दिए है और जहां गाथा है वहाँ || || ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है । हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है | अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे ख़ास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन -भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है | अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ...मुनि दीपरत्नसागर....... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... ------ .. आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं ~3~ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) प्रत सुत्राक “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [१] --------- ---------- मूलं [१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं नमो अरिहंताण नमो सिदार्ण नमो आयरियाणं नमो उवज्झायार्ण नमो लोए सब्बसाहणे (२०५०) एसो पंचनमुकारी, सापायप्पणासगो। मंगलाण जापाशुपतासूनच सवेसिं, पदम हर मंगल (०॥१॥) सुर्य मे आउसतेणं भगवया एवमस्वाय शह खल घरेहि भगवतेहि पीसं असमाहिठाणा पचत्ता.कयरे श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्रम्-मास सल ते थेरेहि भगवतेहिं वीस असमाहिलाणा पं०१, इमे खलु ने धेरेहिं भगवतेहिं पीसं असमाहिठाणा पं० त० दवदवचारी यापि भवति, अप्पमजियचारी यावि०, दुप्पमजियचारी यावि०, अतिरिनसेजासणिए, रायणियपरिभासी, घेरोवपाइए. भूतोवधानिए. संजलणे, कोहणे. पिदिठमंसिए यावि० १० अभिक्रवणं अभिकलणं ओधारिता, पचाई अधिकरणाई अणुप्पण्णाई उप्पाच्या पावि०, पुराणाई अधिकरणाई खामितविउसचिताई उदीरिना, अकाले सज्झायकारी यावि०, ससरक्सपाणिपादे, सहकरे, झंझकरे, कलहकरे, मुरपमाणभोई.एसणार असमिए यावि भवति २०, एते परेहि भगतिहि वीस असमाहिहाणा पनत्तत्ति बेमि । २॥ जसमाधिस्थानाध्ययनं १॥ सुर्य मे आउसने भगाया एपमस्वाय-इह खल थेरेहिं भगवतेहि एकतीस सबला पं०, कबरे खन०१.इमे खलु त-हत्यकम्मं करेमाणे सचन्ते, मेहुणं पडिसेवेमाणे, राइभोयण मुंजमाणे, आहाकम्मं मुंजमाणे, रायपिंड भुंजमाणे, उदेसियं कीर्य पामिर्च अग्छिन अणिसिद्ध आहद विजमाणे मुंजमाणे, अभिस्वर्ण २ पडियाइक्खिना मुंजमाणे, अंतो मासस्स तओदगलेवे करेमाणे, अंतो उहं मासार्ण गणाओं गणं संक्रममाणे, अंतो मासस्स तो माइठाणे करमाणे १. सागारिय पिंड भुंजमाणे, आउहियाए पाणाइचायं करेमाणे, आउहियाए मुसाचार्य करमाणे, आउहियाए अरिणादाण मिहमाणे, आउहियाए अणंतरहियाए पढ़वीए ठाणे पा सेज वा निसीहियं वा घेतेमाणे, एवं ससिगिराए पुढवीए एवं ससरस्खाए, आउहियाए चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलए कोलाबाससि बादारुए जीवपद्दहिए सजडे सपाणे सबीए सहरिए सउस्से सउत्र्तिगपणगदगमट्टियमकासंताणए तहप्पगारं ठाणं वा सिर्ज वा निसीहियं वा चेतेमागे, आउहियाए मूलभोवर्ण वा कंदभोयर्ण बा (खंचा) तया० वा पवालभोषणं वा पृष्फभोयर्ण वा कारभोयणे वा बीयभोवर्ण वा हरियभोयणं वा मुंजमाणे, अंतो संवच्छरस दस दमलेले कोमाणे, अंतो संवच्छरस्स दस माइठाणाई करेमाणे, आउहियाए सीतोदगस्य उम्पाइएण हत्येण वा मतेण वा दबीए वा भायणेण वा असणं वा० पडिगाहेना मुंजमाणे २१, एते खलु धेरेहि भगवंतेहिं एकवीस सबला पाननि बेमि । ३ ॥ शताध्ययनं २॥ सुर्य मे आउसंतणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु धेरेहिं भगतेहि नेत्तीसं जासायणाओ पं०, कयरा खलु परेहि.स.माओ खलु ताओ बेरोहिं भगतहि नेनीस आसायणाओ पं.न.-सेहे रायणिस्स पुरओ गंता भवति आसायणा सहस्स, सेहे रायणियस्स सपक्वं (पक्सओ) गंता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे रायणियस्स आसणं गंना भवति आसायणा सेहस्स, एवं एएणे अभिलावेण, सेहे राइणियस पुरओ चिहिना भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स सरक्स चिद्विना भवति आसायगा सेहस्स, मेहे रायणिवस्स आसणं चिद्विना भवनि आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स पुरओ निसीहता भवति आसायणा सेहस्स, सेहेरायणियस्स सपक्रस निसीहत्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स आसन निसीहता भवनि आसायणा सेहस्स, सेहे राइगिएण सदि बहिया बियारभूमि निक्वते समाणे तत्य पुवामेव सेहतराए आयामतिपच्छा रायणिए आसायणा मेहस्स१० सेहेराइगिएणं सदि बहिया बिहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खने समागे तत्व पुशमेव सेहतराए आलोएतिपच्छा राइगिए आसायणा सेहस्स, केहराइणियस्स पुत्र. सलनए सियानं पुबामेप सेहनराए जान्लबद्ध पच्छा राइणिए आसायणा सेहस्स, सेहे रायणियस्स राओ वा पियाले वा बाहरमाणस जजो के सुनेके जागरे तत्व सेहे जागरमाणे राइणियस्स अपडिमुणिना भवनि आसायणा सेहम्स, मेहे असणं वा० पडिग्गाहिजा पुषामेव सेहतरागस्स आलोएति पच्छा सइणियस्स आसायणा सेहस्स, सेहे असणं वा. परिमाहिना पुपामेव सेहतराग पडिसनि आसायणा सेहस्स, सेहे असणं वा० पडिग्गाहिता पुधामेव सेहतरागं उपणिमंतेति पच्छा राइगिए आसाथणा सेहस्स, सेहे रााणिएणं सदि असणं वा पडिगाहिला नराणियं अणापुच्छित्ता जस्स२इच्छनि नस्स २ख २दलयति आसायणा सेहस्स, सेहेराइणिएण सहि असणं वा. आहारेमागे नत्य सेहे खई २डार्य २ रसियं २ ऊसद २ मष्ण २ मणामं२ निलम्स २ आहारित्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स बाहरमाणस्स अपडिसुणित्ता भवनि आसायणा सेहस्स, सेहे राइणि. यस बाहरमाणस नत्थगने चेव पडिसुणिना भवति आसायणा सहस्स२० सेहे राइणियं किंति बत्ता भवति भासावणा सेहस्स, सेहेराइणियं तुमंतिपत्ता भवनि प्रासायणा (२४५) ९८. दशावतस्कघच्छेदसूत्र, मनदस-३ मुनि दीपाजसागर दीप अनुक्रम [१] अत्र दशा-१ आरभ्यते ~4 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) प्रत सूत्रांक [४] दीप अनुक्रम [V] अत्र दशा- ४ आरभ्यते “दशाश्रुतस्कन्ध" दशा [३] मूलं [४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... ... आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं www....... - छेदसूत्र-४ (मूलं ) ~5~ सेस्स से राइयिं २ बत्ता भवति वासाणा तेहस्स, सेहे राजयं एवायं परिभाषिता भवति आसायना सेहस्स, सेहे राइणियस्स कई कयाणस्स इति एवं यत्ता भवति आसाणा सेस्स से राइणियस्स कहूं कमाणस्स यो सुमरसिति यत्ता भवति आसातमा सेस्स, सेहे राइजियन्स कहूं कमाणस्स नो सुमणा भवति आसाणा सेस्स से राइगियरस कहूं मानस परिस नेता भवति आसाणा सेहस्स से राइजियरस कई कद्देमाणस कच्छिंदता भवति सहस्राणिपत्सक माणस तीसे परिसाए अणुताए अनिभाए अनि अयोगाए दुर्वपि तमेव कई कहेता महति सादा सेस्स ३० से राइगियन्स सेवा संचार पाए संपत्ति हत्ये अण सेहत सेहे राइगियरस संचारए चिट्टिता वा निसीहता वा तुपहिता वा भवति असादना सेहत सेहे राइणियस्स उच्चासना समासस वा चित्ता वासिला या पहिला वा भवति सा सेस्स एताओ नाओ रेहिं भगवते ती सायणाओं पणता ओलि बेमि४॥ आशासनाध्ययनं २ ॥ सूर्य मे आउ भगवया एवमादरेहि भगवंत अवहा गणसंपदा १० करा खरेद्दि भगवं अविद्या गणिसंपदा पं० १. इमाखयेरेहिं भगवते वा गणिसंपदा ० सरीर व वाया मति पयोग संग्रहपरिया नाम अमा ५ से किं तं यासंपा. २ चा संजोग पामिति पहिलए अभियता वित्ती दसीले यानि भवति से आपदा से किं तं संपदा २ चा या भवति विनिगुते परिचित घोि कारए०, से तं सुयसंपदा ७ से किं तं सरीरसंपदा १ २ पापं० [सं० परिसंपन्न यावि नवति गोप्पसरीरे विरसंघयचे बहुपतिपुण्दिए यावि भवति से तं सरीरसंपदा II से संपदा १ २ चा पं० [सं० आदिश्यणे यादि भवति महुवय अधिस्सियवयणे फुटकपणे तं वयणसंपदा से किं तं वायणासंपदा १, २ विहा ० ० विजयं उदिति विजयं जाति परिनिया बाएत अन्य पापि भवति से से वाणासंपदा १० से किं तं मतिसंपदा १ २ चडिहा पं० [सं० उम्मतिसंपदा हा अवाय धारणा से कि उ०१२० सं०] विप्यं ओहित] बहुहुहं अमिस्सिय असंदिनं से से उमाहमनी एवं ईहामनीषि एवं वायतीष से कंपारणामती २ हा पं० [सं० परति बहुवियं पुराणं दुद्धरं अणिसि० असंदिदं परेति से संधारणावती से से मतिसंपदा ११ से किं तं पोगसंपदा १. २०० विदाय बाई जित्ता भवति परिसं विदाय बाद पजित्ता लेनं विदायवादं वत्युं से तंगमतिसंपदा १२ से किं तं संगपरिणासंपदा १, २ वि० [सं० जणाउयान्ताए वासायासासु खितं पहिलेहिता भवति बहुजणपाओगत्ताए पारिहारियापार ओगिव्हित्ता भवति काले काले समात्ता भवति गुरु संता भवति से तं संपरिष्णा १३ जायरियतो अंतेवासी इमाए उडाए विजयपडिवत्तीए विनता णिरिणतं गच्छति सं०- आयारविणएवं सुयनिर्ण रावणणंदोलन से कि आधारविगाए २ ० ० संजमामापारी पावि भवति तवसामायारी गणसामाचारी एगलाविहारसामायारी०, सेनं जायारविणए से किए १२ वि पं० [सं०] सुर्य वाति अत्यं०] हियं निस्सेर्स से सुनिए से किं तं विश्लेषणादिए २ च ० अदि बात दिपुगाए विनता भवति दिपु साहमियत्ताए० दिवस धम्माज धम्मे ठावित्ता भवति, तस्सेच धम्मस्स हियाए तुहाए समाए निस्सेयसाए आनुगामियत्ताए अम्मुक्ता भवति से से विक्रमावि से कि दोसनिधायमावि २ ० ० कुस कोई विपत्ता भवति, इस्स दोस मिनिहिता भवति, कलियरस कं चिदिता भवति जाया सुप्पविधितो यावि भवनि से तं दोसनिग्पायनाविषए। १४। तस्वजातीयस् अवारिस हमारा निर्णयपहिती भवति तं उपरणउपायणता साहिता जलता भारबोरहणता से किसे उपगरणउपापचया २ चडिहा १०० अप्पा उगरणाई उप्पाला मवनि, पोराणाई उपगरणाई सारखा भवति संगोचिता परितं जाणता परिता भवति, आहानिहिं सिबत्ता भवति से उपरणा से कि साहितया २ वि पै अलमलहिते याचित अणुलोकायकिरिया पढिरुचकायपासणया सहत्येमु अप्पढिलोमा से तं साहितया से कि १२ ० ० चा वणवा भवति अथ चाई परिणिता वणवा अहिता यावी यानि से लगया से कि भारत २०० असंगहियपरिजगं संगिन्हित्ता भवति, से आपारगोयर गाहिता भवति, साम्मियम्स गिलायमाणस्स आहायाम पापचे अहिता भवति साम्यिया अधिकरणसि उपसि तत्थ अणिसितोपरितो संतो अपएमालेसम्म बहरमाणे तस्स अधिकरणस्स लामगाविसमणवाद सपा समियं जन्महिला नवति कई (तु) साहम्बिया अप्पसा अप्पा अप्पकला १८च्छेद, दसा-४ मुनि दीपसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) दशा [४] - ----------- मूलं [१५] + गाथा:||१-१७|| --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत [१५] गाथा: ||१-१७|| अपकसाया अपतसंतुमा संयमपहला सैवरवसा समाहिबहुला अप्पमता संजमेण तवसा अप्पार्ण भाषेमागा एवं चर्ग विहरेजा, सेत भारपचोखणता, एला ललु बेहि ममता ए हि मगिसंपदा पामरति मि । १५॥ मणिसंपरध्ययन सुर्य में आउतिर्ण भगवचा एवमक्साय-इह खलु धेरोहि भगतहिं उस चित्तसमाविठणा ..कयो खालू से बेरोहि०, इमे खाल ते. दस चितसमाहिताणा ० ० तेणं कालेण पाणियगाम नाम नयरे होत्या एस्थ र्ण नगरपाणी माणियहो, तरसा गं वाणियगामनगरस्म पहिया उत्तरपुरथिामे दिसिमाए दृइपलासे मामं चहए होत्या वेदपवण्णजो भाणियको, जियसनू राया, तस्स पारिणी देवी, एवं सर्व समोसरणं माणिपर्व जाव युद्धपीसिखापहए, सामी समोसदे, परिता निमाया, चम्मो कहिओ, परिसा परिगया । १६ जोति सामगे भगई महावीरे समणे निगये निम्गंधीओ य आमंतिता एवं वयासी-बह खलु अजो! निवाण वा निर्माचीण वा रियास-IA मियाणे भासासमिया एसणासमियाणं आयाणमंदमत्तनिक्षमासमिधाणं उबारपासणखेलजाडसिंघाणपारिद्वारणियासमिपानं मणसवणस कायमणगुत्ताणं वयगुत्ताचं कायनाणं गुनिदियान गुमचारी आपट्टीनं आपहियाणं आवजोई आयपरकमाणं पक्खियपोसहीए सुसमाहीपत्ताणं रियायमाणाणं इमाई इस चित्तसमाहिठाणा असमप्पणपुजाई समुष्पनिला, त०-धम्मचिता वा से असमूणष्णपुवा समुपजेगा सा चम्म जाणेचए, सणिणाणे वा से असमुपमपुत्रे समुपजेजा बाई सरामित्ति अपणो पोरामिय जाई सुमारितए, सुमिणदलमा से असमुप्पणपुबे समुष्पोजा आहाराचं सुमिर्ग पासितए, देवदसणे वा से असमुन्पष्णपुरे समुपमेगा दिकं देविहिद दिवं देवजुई बिदेवाणुमा पासिलए, ओहिनाणे वा से असमुप्पणपुत्रे समुष्पनिमा ओहिना लोयं जागित्तए, ओहिवंसगे पा से असमुत्पन्न समुष्पनेजा ओहिना तोयं पासित्तए, मनपजनाणे वासे असमुणगर समुपजा अंतो मनुस्मलेनेषु जरदारजेस दीवसमुरेस सलीम पचिदिया पजनमागं मनोगए भाये जाणेत्तए, केवलनाणे बासे असमुणग्यपूर्व समुप्पोमा - केवलकी लोपालोब जागेलए, केवलदेसणे चासे असमुपग्णपुर्व समुपजेजा केवलकणं सोयालोयं पासित्तए, केवलपरणे वा से असमुप्पणपुरे समुपजेना समक्सपहीगाए १७ आय चितं समादाय, सार्ण समपासति। धम्मे ठियो अक्मिणो, निजाममभिगच्छति ॥१॥ण इस चिरी समादाय, मुजो लोयसि जायति अपणो उत्तमं ठाणं, सन्नी माणेग जागति ॥२॥ महातचं तु सुरिण, सिपं पासति संनुडे । स चा जोहं तरति, दुक्लादा व निमुञ्चति ॥ ३॥ नाई भयमाणस, विचित सयमासणं । अप्पाहारसा तसा देशासनिवारणी ॥४॥साकामचिरतरस, समतो भयमेवं । नओ से जोही भवति, संजयस्स तपस्सिणो ॥५॥ तवसाऽमहालेसस्त, ईस परिसुवाति । उहई के पतिरिय च सो समगुपस्सति ॥ ६॥ सुसमाहबलेस्सस्स, अक्तिकारस मिक्सुणो। सानो चिप्पमुकरस, आया जागति कमाये ॥ ७॥ जया से नागाचरणं, सर होति सर्य गर्थ । तया सेगमलोग | जिलों जाति केली .८जया से दसणाचरणं, सर होति सर्व गये। नमो लोगमलोन च, जियो पास केवली ॥९॥ पतिमाए सिदार, मोहनिले सर्व गए। असे लोगकमलोग च, पासति सुसमाहिए ॥१०॥जहा य मत्ययमूई हपाए हम्मते सले। एवं कम्माणि हम्मति, मोहणिजे वयं गाए ॥ ११॥ सेनापतिमि मिहते, जहा सेणा पमस्सति । एवं कम्मा गणसंति, मोहागिने सथं गए।१२॥ महीनो जहा अम्मी, सिजने से निश्चिणे। एवं कम्माणिलीयते, मोहणिजेल गए ॥१३॥ सुचमूले जहा से, सिञ्चमाणे रोहनि । एवं कम्मा गरोहंति, मोहणिजे खये गए॥१४ जहा दइयाण बीमार्ण, बजायति पुर्णकुरा । कम्मवीए नहा बड्डे (प.सुबहडेस), म रोइति भनेकुरा ॥ १५॥चिच्या ओरालिय बॉदि. नाममोनंच केकली जाउयं वेयणिच, छित्ता भवति नीरए ॥१६॥एवं अभिसमागम्म,चित्तमादाय आउसो सेणिसोधिमुपागम्म, आया सोहीमुकागए।१आ. तिमि ॥ पित्तसमाविस्थानाध्ययन ५॥ सुर्य मे आउसने भगवया एपमकरवाय-बह खलु बेहि भगतहि इकारस उवासमपडिमाओ०, कयराओ लल ताजो यहि भागतेहि इकारस उपासमपडिमाओ प...इमा खलतानो रोहिं भगतहि कारस उपासमपहिमामो पं.-अकिरियावादी यानि भवनिनादियवा नाडियएम नाहियनिटी नो सम्मा. पारी नो मितियापारी नोर्मतिपल्लोगवादी परिच हलोए पत्थि परोए भत्यि माया गरिष पिया परिप अरिहंता नयि पकाची परिव परदेशा गरिय वासरेवा गरिय नश्या - पत्यि नेवया पवि सुकडकडाण फरवित्तिपिसेसे णो सुचिमा कम्मा सुचित्रफला भवंति यो दुश्चिण्णा कम्मा दुश्चिष्णका भवंति अमले कहाणपाचए नो पञ्चायति जीचा परिच निरया णस्थि सिदी से एवंवादी से एपणे एवंविट्ठी एवंउंदरामनिणिबिहे आपि भवति, से व भवति माहिच महारंभ महापरिमाहे अहम्मिए अहम्मानुए जहम्मसेवी ग. बिड़े अधम्मवलाई अधम्मचकोई अचम्बजीची अधम्मपलसणे अपम्मसीलसमुदायारे अपम्मेण चेष वितिकमाणे विहरवहन चिद मिव विकत्तए अंतके लोहितपाणी बंडा वा गुरा साहस्तिया उचषणमायाणियविकूडकवासातिसंपओगबहुला दुस्सीला दुष्परिचया दुरमुनेया दुश्या दुष्पडियाणदा निस्सीला निगुणा थिम्मेरा निप्पण्यासागपांसदोषपासी ९८२ दशाबुतस्कंधच्छेदसूर्य मुनि दीपरतसागर एककककककककककककर व दीप अनुक्रम [१५] अत्र दशा-६ आरभ्यते ~6~ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध” - छेदसूत्र-४ (मूलं) ---------- दशा [६] --------- मूलं [१८] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं श प्रत PATRAMATTERESPEAK सूत्राक [१८] दीप अनुक्रम असार सानो पाणावाचाओ अप्पडिविस्था जापजीपाए एवं जाच साओ कोहामओ सवालो माणाओ सबाओ मायाओ साओ लोमानो सञ्चाओ पेजाओ दोसाओ करडाओAN अनक्साचाओ पेचाओ परपरिवाराओ अरतिरतीओ समाओ मायामोसाओ बिच्छालणसालो बप्पडिवित्या जावजीवाए समाज कसायदंग(1) कहानगम्भंगणवणयम-18 क्लेिषणसरिसरसकवर्गवमाछालंकाराओ अन्यडिविया जावजीचाए सबानो सगढरहजामजुम्मागिलिपिसिसीयासंदमानियासपगासमयागाइसमोपणपवित्परविधीतो अप-14 दिविया जावजीचाए असमिक्खियकारी सधामो मासहत्यिगोपहिसगवेलपदासीदासकम्मरपुरिसाजी अप्पटिपिरया जारजीचाए साली कमरिकामासदमासकरसंचाराओं अपडिपिश्या जावजीचाए सत्राओ हिरणपनवनधण्णमणिमुत्तियसलसिटप्पचासओ अपरिचिरवा जावजीचाए समाओकलतलनमानाओ अपरिविश्या समाओ आरंभामा माओ अपडिपिस्या समाओं पयणपयापणाओं अपरिचिरया समात्र करणकारावणाओ अपडिविरवा समाजो कुलपिहातजणनाइयपरिकिटेसानो अप्पडिविरया जाय-14 जीचाए जे वाचण्णे बणगारा साक्ना अबोहिया कम्मवा परमाणपारिवाषणकदा कति तोवि अप्पडिविस्था जायजीवाए से जहानामए के रिसे कलमसूरनिलमुम्गमासनिष्पाप कुलत्यादिसंरगजपएपमादीहि अपते कूरे मिच्छादं पठेजा एवामेच सहप्पगारे परिसजाए तितिरबगलागकपोतकपिंजलमिगमहिसवाहगोगोहरुमसरीसिपाइएहि अपने पूरे 15 सामिषा पांजति, जाऽपिय से पाहिरिया परिसा भवति तक दाति वा पेसेति ना मतएतिया भाति वा कम्मरएतिया भोगपुरिनिवासिपियर्ष अगायरससि जहालसर्यसि अपराहसि सपमेष गमय बह निपतित-इम डेह इम मुंह इम कजेह इस सालेह इम तुसंवर्ग कोह इमं नियलसंघर्ष म हरिचर्ण इम चारगर्मपर्ण इमं नियलजुयलसंकनियमोडितयं हम इत्याच्छिनइम पारमियम कण्णाच्किइम नरिक्ष इर्म ओयिक सीसभासदमे मुखभिणयं हम पड्यभटीयं दम हिवउपादिय एवं नवण-2 | बसणायग इमं जिम्भुपादियं करेह इस ओलविषयं इस सिषयं इमं पोलितयं इमं मूलाइयं इन मूलाभिष्ण इमं सारवत्तिय इमं दम्भपत्तिय इम सीरपुष्टिय इम पसमथिायी इम कड(बन)गिवड्दर्य इम काफणिमंसलातिय इम भत्तपागनिरुवर्य करेह जायजीपवर्ण कोहर्म असतीण असुमेण कुमारेण मारेह, जाऽविष से अभिनरिया परिव मति [सं०- मातानिया पिताति वा भाचाइ वा महणीति वा भजाति वा पूवानिया सुपाति वा लेसिपिय जायरंसि अहालसर्गसि अपराईसि सयमेव गस्य दई निातेति ०-सीतोदग-18 PI पिईसि काय बोलिला भवति उसिणोदगवियोण कार्य जोसिंचिता भतिजमणिकाएणकार्य उपहिया भवति जोनेणावेण वा नेण कसेगा शिवाडीए चाललाएगा पासाई उरालेता मनति टेण वाजहीणवा मुहीम चालेलणाचा कालेग वा कार्य आडहिला भवति, तहपगारे पुरिसनार सनसमाणे दुम्मणे भवति, तहषगारे पुरिमजाले विग्यपसमागे सुमणा भवति, वहपगारे दंडपासी (सई) दंडगुगए दंदपुरमाडे अहिए अस्ति लोयंसि अहिए परसि लोगसि ते बुक्सति सोयति एवं जरति तिप्पति पिहति परितपति, एस. मसोवजूरणविणणपित्रणपरितप्पणववर्षपपरिकिलेसाजी अप्पतिक्रिया मति, एपमेन इरिथकामेहि मुठिया गदिया गिदा अमोषणा जाप वासाई पापंचमाई उसमाणि वा अन्यतरंबा मुजतरंबा काल भुजित्ता भोगमोगाई पसाविता रायतमाई सचिणिता बहुगाई पाबाई कम्बाई ओसगं संभारकडेण कम्मुगा से जहानामए अपनोलेनिया सेलगोलेति वा उदयसि परिखते समाणे उदगालमइयत्ता आहेचरणितलपतिहाणे भवति एवामेव बहणगारे पुरिसजाए बमबहुले पुण्य पंकन दभ० नियडिजासायणक (असाय०) अपस अप्पनिय ओस सपाचपाती कालमासे फार्म किया धरणितलमातिपतित्ता अहेनरगतलपतिद्वाणे भवति, ते नरमा अंतो वहा बाहिं पठसा अहे सुपारतामसहिया नियंगारतमसा वायगहासूरनक्वत्तजोइसणहा मेदवसामंसकहिलूपपडलविवालित्तानेवणकला असुई बीसा परमम्भिधा काउपनगगिवन्नाभा कक्षाफासा दुरहियासा भरणा असमा भरणा असभा नरगेम वेदना नो पे नरएस नेहया निहायति वा पयलायति वा सुति वा रति वा धिति वा मति वा उपलमंति, ते तस्य उमा विजल पगार कास कार्य रोई एक्लबह नित्र तिवं लिय रहिवास नगएम नेखया नायवेवर्ण पवणुमयमाणा विरति, से जहानामए काले सिया पचनमो जाए मूलचिलो अमोगाए जतो नि जतो दा जतो रिसमं नो पानि एवामेषहप्पगारे परिसजाए माओार्म जम्मानो जम्ममरणाओं मरण शुक्लाजो एक्सं दाहिणमामिए नेहए कहपक्लिए 13 आगमिक्सान रामबोधिते पानि भवति, सेतं अकिरियाचाची १८ मे कित किरियाचादी १.२ मवति त-आहियवादी आहियपग्गे आहियविही सम्माचाई नियाचाई संतिपरलो. यषादी अस्थि इहलोए अस्थि परलोए अस्थि पिया अस्थि माता अस्थि अरिहंता अस्थि चकवही अस्थि पळदेवा अस्थि वासुदेवा अस्थि सुकादुकढाणं कम्माचं फलवितिषिसेसे सुषिमा शाकमा सुचिमाला मति चिच्या कम्मा दुविधापता मति सफले तागपाचए पञ्चायति जीचा अत्यि मेराया अस्थि देना अस्थि सिडी से एवंवावी एवंपरी एकविही एक रा. ९८ दशातस्कंधयोदमूर्ष वसा-5 मुनिपरलसागर [३५]] ~7~ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध” - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [६]-------- मूलं [१९] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत सूत्राक [१९] दीप अनुक्रम [३६]] गनिनिषिद्ध आपि भवति, से मनति महिछे जाच उत्तरगामिए नेसए मुरूपक्लिए आगमेसाग सलमनोडिए वापि भवति, से न किश्विवादी। १९साधम्म पारि माति. तसAI पहा सीलमपणपयरमणपवारसाणपोहोपयसाईनो सम्म पढवितपुवाई मति, एवं दसमसायो पदमा उवासगपडिमा ।२०। बहावरा दोबा चासमपतिमा-धम्मर धादि । भवति, तस्स गं पहुई सीलवयगुणवयवेरमणपबक्खागपोसडोक्यासाई सम्मं पक्विाई सबंति, सेणं सामाइयदेसावगासिय नो सम्म अणुपादिता भवति, दोचा उपासमपडिमा ।२१॥ अहावरा तथा उवासमापडिमा सवयम्मद याषि भवति, तस्स गंबरई सीलवयमुगायरमणपवारवाणपोसहोषधासाई सम् पट्टक्सिाई मर्वति, से सामाइयदेसानगासिय सम्म अणुपाहिला नपति, से गं पाउदसनामीउरिद्वपुज्यमासिनीस पडिपुण्य पोसह नो सम्म अणुपालेता भति, तथा उपासगपटिमा । २२। जहावा चउरथा उपासमपडिया-सा । धम्मन यानि भवति, तस्स हाई सीलपय जाच सम्मं पट्टपिताई भवनि, से सामान्यदेसावमासिब सम्म अणुपादेना भवइसे चाउडसमहभिारिपुष्णमासिणीस पतिपुज्य पोलह सम्म अनुपालेता भवति, से गं एमराय उपासागपादिम नो सम्म अणुपालेता भवति, चउल्या उपासमपडिमा ।२३। अहापरा पंचमा उवासमपडिमा सायम पा1ि8 भवति, सस महई सीपय जाप सम्म अनुपालेता (पडिलेशियाई) भवति, से गं सामान्य नहर से णं चाउमि तहेव एगराइयं सम्म अणुपालेता भवति से अभिणाणए पियडमोई मलियकटे दिया बमवारी रति परिमाणको, से एयारूपेण बिहारेण विहरमाणे जहएगाई वा दुयाहं पा लियाई गाउकोसेग पंच मासे विहरिमा. पंपमा सासगपटिमा ।२४ा अहापरा छटा उचासमपडिमा समयमा बावि भवति जाब से मे एमाइव उपासगपडिम अपालिता भवति, से में असिमामए पियडभोई माउलीयकडे दिया था रामो वा भयारी, सचित्ताहारे य से परिणाए न भवति, सेज एयाको चिहारेण विहरमाणे जहएगाई वा वाह ना जाब उकी उम्मासा चिहरिभा. पहा उपासमपडिया का ।२५। जहावरा सत्तमा उचासगपडिमा साधम्मरई याचि मपति जाव राजोवा मयारी सपित्ताहारे से परिमाए भवति, आरंभे से अपरिणाए भपति, से एपारू विहारेज पिहरमाणे जह० एमाह या पाहं ना जाच उकीमत्त मासे निहरिमा, सतमा उपासनपडिमाजिहालस अहमा उचासमपटिमा-सायम्म वापि भवति जावराओ वा बभयारी पित्ताहारे से परिमाए भवति आरंभे से परिमाए भवति, सारंभ य से अपरिष्माए भवति, में एयारुणं विहारण बिहरमाणे जार एमाह बाबाई पाजार को अह माशा हिरिमा से जहमा उपासगपडिमा ।२७ महापरा नवमा उचासगाडिमा सश्यम्मस्वी यावि भवति जाव राजो (राजोपराय) बनयारी सविताहारे से परिणाए मगति आभ से परिणाए मगति पेसारने से परिमाए भवति, उरिडभत्ते से अपरिग्याए भवति, से गं एपारूपेण विहारेण विहरमाणे जह- एमाह पा पार पा जाप उकोसेन ना मासा हित रिजा, सेनामा उचालमपतिमा ।२८ाबहाया दसमा उवासगपडिमा साधम्म यानि भवति जाब उदिडमले से परिमाए मपति, सुरसंबए पाहिसिधारए पा. बाम(इ)दस पासमानहस पाकापनि दुवे मासाओ भासित्तए नं-जाणं वा जाणे अज्ञार्ग का नो जाणं, से गं एषालोणं पिछारे विसरमागे जहएमाह पापाई का को- दस मासा रिहरिना, उसमा उवासमपडिमा। २९। बहावरा एकारसमा उपासमपटिमा-सापाई जाप उरिमने से परिक्साए मचति से सुरमुंडएबा मुत्तसिरए वा गडिया15 बारमंहगनेवाये जारिस समचा निर्णयार्थ पम्मे कसम्म भएप कालेमाणे पालेमाने पुरमओ जुगमावाए पेहमागे पटवण तसे पाणे उबर पाए एजा साबद्ध पाए एमा रितिरिष्ठ पापा कल गएजा, सति परकरी संजतामेव परिकमेना, नो अनुयं गच्छेजा, केवल से नायए पेजधणे अयोधिो भवति, एक से कपति नाथपिदि एलए, तत्म से पत्राममण पुमाउसे चाडलोरणे पठाउने मिनिमसूबे कप्पति से चाउलोदणे पडियाहितए नो से कपद मिलिंगसूचे पडियाहिलाए, सत्य से पुधाममा युवाउने मिलिंगसूके पकाउने पाउलोरणे गप्पति निलिंगसूचे पविगाहिलए नो से कप्पति पाउलोदणे पदिमाहिला नस्य से पुवागमणे दोषि पाउलाई कति से दोषि पहियारिलए, तत्पसे । पुवागमण दोषि पच्छाउलाई नो से कपंनि बोचि पहिगाहितए, नत्य जे से माममागे पुवाउने से रुपति पटिगाहिलए, जे से तस्य पवागमण पाउसे नो से कमा पडिमा.. जिगए,त्य गाडापकर्म पिंडवायपडियाए अपपपिस्स कप्पा एक्सनए समगोवासमस्त परिमापरियामरस मिक्स बनमह, एचारु निहारेण निहरमाणे व पासिता पदेजा- आइसो ! तुम बत्ता सिया, समगोपासए पतिम पडिजिते असीति पत्नई सिया से गं एवारूपेण निहारे विहरमाणे जाएगाई वा दुपाई पा लियाई मा उको. एकारस मासे विहरेगा, एगारसमा उगासगपतिमा, एताजो खलु तानो परेहि भगवतेहिं एगारस उपारामचडिमाओ प्रमत्ताओति अनि ।३.४ ममोपासपतिमाध्ययनं ६० सुर्य में आउतिग भगण्या एमपसार्च-इह खलु यहि भगवंतहिं पारस मिक्सुपडिमाओ पं. कयराओ खलु लामो जार 4. खलु एवाओ. मासिया मिक्युपडिमा दोमालिया निश्शुपतिमा निमालिया भिक्युपडिमा बमालिया पंचमासिया सम्मालिया सत्तमालिया पढमा सत्तराईदिया एचा सत्तराईदिया गया सत्तराईविया अहोराई- (२) ९८४ दशाभूतस्कंधचोडमूत्र, दस-09 मुनिपरळसागर अत्र दशा-७ आरभ्यते ~8~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) प्रत सूत्रांक [३१] दीप अनुक्रम [9] Acc “दशाश्रुतस्कन्ध” छेदसूत्र-४ (मूलं ) दशा [७] मूलं [३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं - - दिया एगराइदिया मिक्सुपडिमा ३१ माशियं भिक्खुपडिमं परिचचत अगगारस्स निळं बोसकाए सिदेउपा उपमंत दिवा वा माणुसा या तिरिषल जोगिया का उप सम्म सहति समति तितिक्खति अहियासेति मासियं णं निस्सुपडिमं पडिवण्णस्स अमगारस्सा कप्पर एगा दत्ती मोपणस पडिवाहिलए एगा पानगरस जो निहिता बढ्ने दुप्पच उपयसमणमा अतिहिकिविगनिमगा, कप्प से एगस्स भुजमाचस्स परिगाहिए, मो हुन् मोति जो बिपीए यो बालबछाए जो दरार मानीए नो तो एयरस दोषि पाए साह लमाणीए नो चाहि एयस्त दोषि पाए साइड दलाची एवं पाए तो किया एवं पायें बाह किया एवं विस्मता एवं यति एवं से कम्पति पडिवाहिए एवं से नो दलपति एवं से नो कम्प पडिवालिए, मासियं णं भिक्खुपडिमं परिवारस अणगारस गोरा आदिमे मज्झिमे परिमे, आदि परेजा को मझे परिमाणो परिपरिमा म परेला नो आइ परेला नो चरिमे परेशा, परिमं परेशानो आदिम चरेजा नो मज्झे चरेला, मासियं गं भिक्खुपडिमं पडियष्णस्स जगगारस्साि गोयरचरिया पं०० पेला पेला गोतिया पर्वका काना पचागया मासि भिक्खुपडिमं पडिवणस्स अनगाररस जत्य में केइ जाणति कप्पड़ से तत्थ एगराइयं वसित्ताए, जन्म में केंद्र न जागड़ से कम्पति तत्व एगरा या दुरावा लिए नो कम्प गाव दुरावा या पत्राचाओ वा दुरावाओ वा परं वसति से संतरा छेडे या परिहारे वा मासिय भिक्खुपडिमं पडिवष्णस्स कम्पति चत्तारि माताज मासिए - जावणी पुच्छनी अपनी इस बागणी मासियां भिक्खुपडिमं पडिवस कप्पति तो उपस्सना पडिलेहिल आहे आरामनिहंसिया अहे पिय इसि वा आहे मूलगेसिया, मालियं गं भिक् कम्पन्ति तत्र उपस्सा अनुमति आहे आरामहिं आहे विवगिह आहे स्वमूलगि मासियां कप्पहतको उपस्सया उपायणाविलाए तं चैव मासियं गं० कप्प तो संधारणा पहिलेहित्तए - पुढची सिलं वा कसिलं वा आहासंघडमेव मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवष्णरस कप्प तो संधारा अणु तंत्र, मासिकपतितजो संधारा ओवायणावित्तए तं क्षेत्र मासियं इत्यी उपस्वयं उपागच्छा से इस्वी एवं पुरिसे जो से कप्पइतं पच निक्लमित्त वा परिसि तर या मासि० जान पडिवण्णस्स केंद्र उपस्वयं अगणिकाए शामेशा नो से कप्प तं पट्ट निक्लमिन्त वा पविसित्ताए वा तत्य के बधाय असि महाय आगच्छेजा जा से जो कप्पड़ से पहुच अवितएव एवा. कप्पड़ से आहारियं रीइत्तए, मासियं में मिक्सुपडि जान पासा वा कंटए वा हरिए वा सकता वा अनुपान कप्पड़ से नीहरिलए वा चिसोहितए वा कप्प से आहारिय रीत्तए, मासि जायजसि वा पाणाणि वा बीयाणि वा रए वा परियाजनानो से कम्पनीहरिसाए या विसो हिनए वा. कप्प से आहारीय रोइनए, मालियं गंजत्येव रिए अत्यमेतत् स वापस या दुसया निवासिना सिमस वा गड्ढाएका दरीएका कप्पड़ से तं स्यणि तत्येष उपायमातिए नो से कप पदमवि गमिता कप से कहां पाउप्पमायाए स्वणीए जाय जलते पाईनाभिमुहम्स या दाहिणामिमुहस्स वा पडीणाममुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा आहारीय रीइत्तए, मासियं पं० नो कप्पड़ अनंतरहियाए पुढची निहाइएका पाइए वा केवली वृथा आदाणमेचं से तत्य नियमाणे वा पयायमाणे वा हत्येहि भूमिं परामसेजा महाविधमेष ठाणं ठाइए निक्लमिलाए वा उबारपासर उम्बाहिजेजा नो से कप्पर ओगिव्हिए, कप से पुष्यपडिले डिले उबारपासत्र परिचितए, तमेव उपायं आगम्म अहाविधि ठाणं ठाइए, मासिय० नो कप्पइ ससरक्रोहि पाएहि (काएहि प०) साहायकुलं भगाए वा पाणाए वा नि० पवि० अपुर्ण एवं सरकले सेवा वा लाए वा पकाए वा विद्वत्वे (परिणा कप्प हाइकु मत्ताए वा पाणाए वा निक्ल पनि मासिनो कम्प सीओणवा उसणोद्गविपण वाहत्या पापापानि वाताणिवा अच्छी वा मुहं या उच्छोडिलए वा पोक्तिए या जन्यत्वा वा मासियांनो कम्प हा गोवा महिसर या कोरस या सागस्स वा (कोलमुणगस्स वा दुइरस वा वाटमाणस्स पदमवि पचोसकिए, अस्स माणस पति जुगमित्तं पञ्चोकितए, मासियं णं नो कप्प छायाज सीर्यति उन्हें इत्तए उन्हाओ उन्हति नो जाये एनए, जन्म जया लिया तं तत्व अहियासए एवं खलु एसा मासिया मिक्सुपडिमा अहा अहा अहा अहान सम्म काए अमिता पालिता सोहिता तीरिता विहिता जाराहिना आणाए अनुपालिता भवति । ३२ । दोमासि मिडिमं नि बोकाए तं चैव जाय दो दतीतिमासि तिष्णि दत्तीओ भाउमासि चन्नारि दत्तीओ पंचमासि च दसीओ उमालिर्य छ सीओ सत्तमातियं सत्त दनीओ, जत्थ जलिया मासा तत्थ तत्तिया दत्तीओ। ३३ पढमं सतराइदियं भिक्खुपडिमं पविणस्स अणगारस्स निचं बोसिकाए जाय अहिया, कप्प से चत्ये ८५दशा दशा - 3 मुति दीपरत्रसागर ~9~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [७] --------- --------- मूलं [३४] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं तर, एका हात वर का मावि, भावर पडणारी प्रत सत्राका [३४] मते अपाणएक पहिया गामस्स बाजार सयहाणीए वा उत्ताननस वा पासोड़मरस बा नेसनियरस वा तागं ठाएनए, तत्य दिशमाणसतिरिक्सजोणिया उक्सग्गा समपजिना. ने उचसम्मा. पयलिन वा पहिन वा नो से कन्या पवित्तए वा पपडितए वा, तत्त्व से उबारपासवणे उन्माना नो से कणा उभारपासवगं ओगित्तए, कापड से पुषपहि लेशियसि यहि मि उचारणासवर्ण परिद्वपित्तए, हापिधिमेष ताणं लाइतए, एसा रखाल पदमा सत्तराईरिया भिक्सुपडिमा हासुन जाच आगाए अपारिता भवति, एवं दरोगा सनराईदियापि. नवरं दंडातिपस्सपालगंदसाइस्सपा उकायस्सवातर्ण ठाइनए.सेसनवजार अणुपारिता भवति, एवं तथा सत्तराईदिपारिभवति, नवरं गोदहियाएवा बीरासणियसमा अंग्रामसपा ठाणं ठाइनए, एका जाप अणुपालिता भवति। ३४ा एवं अहोरातियाकि, नारं उद्रेण मतेणे अपाणएणं पहिया गामस्स बाजार राहाणियसमा सिरोचिपाए माहट नपारियपाणिस ठाणं ठाइनए, सेस ने चेक जाच अणुपारिता भवति, एगराई पं निफ्सुपडिम पडिपमस्स अणगारस्त नि बोसिहकाए जाप अभियासेति. कापड से अहमेण भनेणं अपाणएर्ण पहिया गामस्स वा जाप गयहावीए का ईमिषम्भारगएवं काएवं एमपोमालहिताए विहीए अणिमिसनपणे अहापणिहितहि गोहि सजिपिएरि गुले दोविमाए साइटर पग्पारिवाणिस ठाणं ठाइनाए, नाथ से दिनमाणुसविरिष्ठजोणिया आप अहाविधिमेव ठाणं टाइलए, एगराई मिसुरहिम अणपालेमाणस जणगारस इमे तो ठाला अहियाए जसुभाए असमाए अणिस्सेसाए अमानुगामियनाए भवति, तं०- उम्मार्य पालभेजा दीइकालियं वा रोगायक पाउनेजा केवलिपाताओ धम्माओ IN वा भरोजा, एगराइभिक्षुपडिम सम्म अणुपालेमागस अणगाररस इमे नयी ठाणा हिपाए जाच आगामियनाए भवंति,to-ओहिणाणे पा से समुपलेला ममपनमाणे वा से समुपजेजा केवलनाणे पा से असमुपगपुत्र समुणगेजा, एवं स्खल एला एमरालया भिक्खुपडिमा हात्त अहाकार्ष अदाममं अहातचं सम्म कारण कासिता पालिता सोदिता नीरिता किविता बाराहिता आलाए अणुपारिता पापि भवति. एताओं सलु ताजो बेरहिं भगवतेहिं पारस मिस्सुपतिमाओ पललाओलिनेमि । ३५॥ निशुपतिमाध्ययन जाने कालेणं न समएवं समणे भगर्ष महावीर पचहत्युत्तरे होत्या तक हत्युत्तराहिं चुए पहला गर्भ शकते, हत्थुसराहि गम्भाजी ग साहरिए, हत्ता जाए रत्युत्तराहि मुरे भविता आगाराओ अणमारियं पादर, हत्युत्तराहि अर्णते अयुत्तरे निवापाए निराकरणे कसिणे परिपुमो केवलपरनाणदसणे समुप्पो, सारणा परिनिाए भय, जाप मुनो २13 उपरमदनि बेमि । ३६॥ पर्युषणाकल्याध्ययनंदा तेर्ग कालेगा यानाम नगरी होत्या वाणोपुण्णाभदे चेहए. कोगिए राया, धारिणी देवी, सामी समोस. परिसा निरगया. धम्मो कहियो, परिता पहिगया, अनोति समणे भगवं महावीरे बहले निर्माचा य निमांधीओ व आमतेता एवं पदासी-एवं खलु अमो! तीस मोहणीयद्वाणा मार हत्तीचा परिसी पा अभिक्स २ आवरमाणे वा समापरमाणे वा मोहणिजनाए कर्म परेति, नं० जे केषितसे पाणे, मास्मिनो विवाहिया । उपएमसम्ममारेति, महामोह पर.१८॥सीसायोग जे केई, आपटे अभिषतर्ण लिमासुमसमाचारे, महामोह ॥१९॥ पाणिणा संपिहितार्ण, सोयमावरि पाणिणे अंतो नईत माह ॥२०॥जायते समासमा मह ओसेभिया जम्।। अंती धमेण मारे-४२१॥सीसमिजे पदनि, उनमेगामि पेपत्ता। विभज मत्वर्याले ॥२२॥ पुणो २ पणिधीए. इणिता (चाले) उपहसे जणं । फलेन अनुचा दंडे-२३॥ गदापारी निगहिना मात्र मापाए जायए। भावनाई निहाइः॥२४॥ सिह जो अभए, अकर्म अनकम्ममा अनुवा तुममकामिति ॥२५॥ जागमागी पुरिसओ, सबमोलाइ भासति । अक्लीणो पुरिले ॥२६४ जणायगरस नवर, बार तोर बलिया विडाले पिपरसोभागाणं, किचाणं पविवाहिर ॥२७॥ उ पि अपिता, पहिलोमाहि काहि । बोगमागे पियारेवि०॥२८॥अकुमारभूए ने केश कुमारभूएनिह पए। इस्थीविसायगेहीए. ॥२९॥ अभयारी जे जेई भयारी तिज गए। गदमेव ग मो, विस्तर नदती गई ॥ ३० ॥ अपणो अहिए बाले, मायामोल बई मसे। इल्वीसियनिदाए ॥३१॥ जंनिम्सिए उबहती, समाभिममेग या तस मुम्बा वितमिः ॥१२॥ सरेण अनुषा गामेग, अनीसरे सरीकए।तसा संपारिवाहिल(यहीण)स.सिरी मताप्रमाणया ॥३॥ईसादासेगाइडे, कटुसाउसचेयसे । जे अंतराय एड० ॥३४ासणी जहाअंहपुर्ड, मत्तार जो विहिसडा सेमाचति पसरचार ॥३५॥ जे नाव परहस्स, मेयार निगमस्स पासिद्धि पर हंता ॥३६७पजमस्त नेता, की तार्थ च पागि एवारिस बरं हता० ॥३॥ सदिय परिपिरय, संजय मुसमाहिय। विउवम्म धम्माओ भंसेनि ॥३८॥ तहेवाणंतनागीण, जिया वासिगं । सेसि अपण चाले० ॥३९॥ मेवाउपस मग हे अपहर (मरती पहन लियतो नाति ॥ ॥जापरिवारमाया, सूर्य विषयं च माहिए।ने चेक खिसती बाले IV आपरिसमापारी, सम्म पविलाई अपरिपूपए पड़े। Ni|अपरस्सएपि(क) जेई, सएन पक्किया। सजावचा परतिः ॥ अस्सी पजे केई. तोर्ण परिकत्थई । सानोगपरे नेणे.viaहात्मा ने कई, मिलामि I दशाभूतस्कंधच्छेनमूत्र मुनि दीवाना कारक करपाकककर दीप अनुक्रम [५१] अत्र दशा- ९ आरभ्यते ~10~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध” - छेदसूत्र-४ (मूल) ---- दशा [९] --------- ---------- मूलं [३७] + गाथा: ||१८-५६|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं ना किचं, मजापि से न कुवति भएमा पुगो । सहाईट सहीहंडं. १४८जेथ मानाने । अन्नाणो जियपूचडी० ॥५.१० मिय प्रत सत्राक [४५]] कसम्मलकर गाथा: ॥१८-५६|| का महिए।पम नकर्म किच, मजापिसे पति से निपरिपग्णाणे, कलसाउलवेयसे । अपनी यमोहीए जे पहाअधिकरणार. संपर्डले पणी पणो साति- 1 का त्याग भेयाए ॥ जेच आहम्मिए जोए, संपळजे पुणो पुणो। सहाइर्ड सही ॥४८॥ य माणुस्सए मोर, अधुना पारलोडए । तेऽतिप्पयतो आसपतिः ॥४ाटी11 जुनी जसो पम्यो, देवाणं बलबीरियं । तेसि अपम्मा चाले. ॥५०॥ अम्पसमाणो पस्सामि, देवे जाते य गुज्मगे। अन्माणो जिमपूयही ॥५१॥ एते मोहगुणा कुत्ता, कम्मत्ता पिसावणा। जे उनि पिपनेजा, चरित(ज)लगसए ॥५२॥ जैपि जाणेह जो पुर्व, विचाकिच गई जद । त बन्ता ताणि सेविजा, जेहिं बाधारवं सिया ॥५३॥ आयारगुते या प्रामुख्या, पम्मे ठिच्चा अगुतरे। तत्तो बने सए दोसे, पिसमासीविसो जहा ॥४॥ सुन्तबोसे सुरप्या, धम्मडी विदितापरे । इहर लमते किसि, पेच्चा य सुगति परे ॥५५॥ एवं अभिसमागम, सूरा वापरकमा सामोहविणिमुका, जातिमरणमतिणियति बेमि ॥ मोहनीयस्थानाध्ययनं ९॥ तेणं काले राबगिहे नाम नबी होत्या पणतो, गुण-13 सिलए पाए, रायगिहे नगरे सेगिए नाम राया होत्या राबवण्याओ, एवं जहा ओपाइए जाप चहणाए सदि विहस । ३७१ लए ण से सेणिए राया अग्णया कयाई पाए कच-31 पलिकम्म कयकोडर्मगारपायचिडले सिरसाहाने तेमालबडे आचिवमणिमुषण्णे कपिपहास्वहारे तिसरयपापलबमागकडिमुत्तयमुकयसोहे पिणदोषिले अंगुलजम जारी कप्पास्सए र अकिपविभूलिए नरिद सकोरंदमत्तवामेणं उत्तेणे धरिजमार्ण जाच सतिश पियवसणे नरव जेगेप बाहिरिया उबढाणसाला जेणेव सीहासो तेणेव उपागच्छन ला सीहासणवासि पुरष्काभिमुहे नितीवर ना कोईवियरिसे सदाड ता एवं वदासी-गाह तुको देवाणुप्पिया! जाई इमाई रायगिहस्स नगरस पहिया सं०-आरामाणिय उजापाणि वासपाणि य आयतमाणिय देवकरयाणियसभाजीप पराजी व पणिवमिहाणिय पनिषसालामोय छहाकम्मताणियामियकम्तानिय एवं कड़कम्मंताणियब गालकमंताणि या वणकम्मनाणि पदमकम्मंतागि बजे तत्वेव महत्तरमा आणता चिति ते एवं बह-एवं खल देवाषिचा ! सेपिएराचा भंभासारे बागवेनि-जया समणे मग महावीरे आइगरे नित्यमरे जाव संपाविउकामे पुवायुपुरि घरमाणे गामागुगाम इतिजमाणे सुईसणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अपार्ण भाषमाणे बदमागोजा तया में देवाणुपिया! तुमे भगवओ महावीरस्त महापदिका उम्गहं अगुजागहला सेमियस्स रुगो भनासारस्स एवम पियं निवेएड. तए मंते कोवियरिसा सेमिएवं राणा भभासारेण एवं कुत्ता समाणा हातहा जान हियथा जान एवं सामिति आपाए विणएवं पर्ण पडियुर्णनिता सेभियरस रच्यो अंनियाओ पटिनिक्लमंतिता राबगिहनगरस्त मनमोर्ग निग्माणानि नाजाई इमाई भनि रापनिहस्स बहिया आरामाणि या जाच जे जस्थ महयस्मा आण(अण्णा)गा चितिने एवं पईनिजाब सेणियस्स रच्यो एवमट्टं पियं निवेदिजा में पियं भवतु, दोमपि एवं पर्दनिता जामेव दिस पाउम्भूया तामेव विसं पढिगया। ३८ तेणं काले० समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव गामाणुगाम लमाणे जाव अप्पा भारेमाणे विहरति, तले में रायगिहे नगरे सिंघाडगतिगचाउचचर जाव परिक्षा पडिगया जाच पनुवासति, ततेचे महत्तरगा जेणेव समणे मग महावीरे देणेच उचामच्छतिता समर्ण भग महावीर बदनि नसनित्तानामगोयं पुनाति ता नामगोतं पधारेनिला एगवओ मिलनिशा एगतमक्कमति सा एवं वदासी-जस्स क देवाणुप्पिया ! सेणिए राया देत करखा जस्सणं देवाणुपिया ! सेगिए राया दसर्ण पोहेति जस्स में देवासुप्पिया सेपिए राया सर्ग पत्येति जस्म देवासुप्पिया सोचिए राया सणं अभिलसति जसा में देवाणुपिया! सेणिए राया नामगोत्तस्सविसरणयाए हहह जाच भवति से ग सभने भगवं महावीरे आदिगरे तित्वगरे जाव साम्सास्सिी पुत्राणुपुरि घरमाणे मामाणुगाम पूजामाणे सहमहेण हिरमाणे दहमागपाने इह संपन्न हह समोसदे जाप अपार्ण भाषेमागे रिहरति, न गच्छामो मं देवाणुणिया! सेगियस्स रनों एवमई पियं नितमो पियं में भय त्तिकटु एवमई अपमण्यस पडिसुगंतिना जेणेच राबगिहे नगरे नेणेव उवागच्छति ना रायनिह नगर मनमोणे जेणेब सेनियसारख्यो गिहे जेणेच सेपिए राधा नेणेष उपागच्छन्ति त्ता सेणिवरायं करतलपरिग्गहियं जाप जाएगे विजएर्ण पदावति ना एवं पपासी-जस्स गं सामी ! दसर्ण करखनि जाप से गं समणे भगवं महावीरे गुणसिलए पाए जाब पिहरा, नणं देवाणुपिया पियं निदामो पिर्थ मे भन्नु।३९। ततेसे सेणिए राया तेसि पुरिमाणं अंतिएएयमई सोचा निसम्म हडतुजाहियए सिंहासनाओ अप्डेतिता जहा कोपिओ जारदवि नर्मसतिसाले पुरिसे सकारेति संबाणेवित्ता विउलं जीषियारिहं पीलिदाणं इत्यति त्ता पडिविसमेहता नगरसुत्तिए सहायता एवं वदासी-खिप्पामेष भो देवाणुपिया रायगिह नगरं सम्भितरवाहिरिवं आसियसंमबिनोपलितं जाच पञ्चप्पिणति ।४। तए से सेगिए राया बमबाउयं सहाति ला एवं पयासी-लिण्यामेरमो देवा. प्पिया! हयगयरहजोहकलियं चाउरमिमि से समाहेह जाप सेऽपि पचविणति, सतेज से सेभिए राया जाणसालियं सदावेनिला एवं बवासी-लिपामेव भो देवाणिया! घन्मियं ९८७ दशाभूतस्कंवच्छेदमूसा -१० मुनि दीवानसागर दीप अनुक्रम [५४-९३] हायपरकम्प अत्र दशा-१० आरभ्यते ~ 11~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूलं) ---------- दशा [१०] --------- ---------- मूलं [४१] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत सुत्रांक [४१] दीप माणपरं जुलायेष उपहापेहता मम एपमाणतिर्य पचप्पिणाहि. तो गं से जाणसालिए सेणिए रण्णा एवं पुसे समागे हाजापहियये जेणेव जाणसाला वेगेव उपागण्टा ला जाणमा अनुपस्सिा ला जाणं पधुक्ला सा पचोरुमति ला जाणगं संपमना ना जाणगं जीणेति ला जाणर्ग संचाला सं पपीति ला जाणाई समलकर ला जाणार मंहमडिया करता जेणेष वाहणसाला नेणेष उपागमछाना वाहणसालं अगुपचिसतिला पाहणाई पविक्सतिला पाहणाई संपमा शा पाहणाई अकाला ना पाहणाई णीति मला तूसे परिणति ला पाहणाई अलंकारेति ला बाहणाई पराभरणबंडियाई करेति ना जाणर्म जोएनि ना बहिमोगाहेति ना पाओगलहि पोगधरए य समं आरोहा शा जेणेव सेगिए राया नेणेव उपागमाइला करयल जाप एवं बवासी-जुने ते सामी! चम्मिए जाणापपरे, आइहा मदत ! वागाही ४१ लए लेगिए राया मासा जामसालियरस अंतिए एयमई सोचा निसम्म हडतहजाच मजणधरं अणुपविसह जायकप्पणखए चेव असंकिपविभूलिए नरिंदे जाव मजणपराओ पहिनिक्समतित्ता जेणेच चोडणा देवी नेगेच उचागच्छा ना चिा देवा पदासी एवं खल देवाणुप्पिए । समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्वगरे शार पाणुपुरि चरमाणे जाप संजमेणं नक्सा अण्णा भाषेमाणे विहरति, महाग खल देवापिए। महाकवाचं अरईताण जाच तं गच्छामो देवाणुप्पिए। समर्ण भगवं महावीर बदामो नमसामो सकारेमो संमागेमो कसाणं मंगल देवयं पायं पचासेमो एतं वं हमवे व परमचे व हियाए सहाए खमाए निस्साए आणुगामियनाए मविस्मति ।४२॥ ततेसा चिरणा देवी सेणियल लो अतिए एपमई सोचा निसम्म हातहजार पहिः । सुणेति ला जेगेप मजगधरे तेगेव उपागच्छा सा काया कवचलिकम्मा कयकोउयमंगलपायपिछत्ता, किं ते !, बरपायपत्तनेउरमणिमेहलाहाररहवउविहिपकागलइएगाचलितमुरजतिसरपतवाचलयमसुत्तमकुडकुजोविधाममा रमणभूसियंगी चीगुवचत्यपचरपरिहिया गुप्तस्कमासकतस्मणिशउत्सरिमा सयोग्यसुरभिकुसमरस्तावपलबसोहततथि- 1 संतचित्तमाला वादगपणिया पराभरणभूलियेगी कालागुरुभूपविया सिरीसमाणवेसा बहहिं खुजाहि चिलानियाहिं जार महत्तरमादिपरिस्सित्ता जेणेष पाहिरिया उपहाणसाला जेध सेगिए राया तेच उचामन काल से सेगिए राया चित्रणाए देवीए सदि पम्मियं जागणारं दुरुइति सकोस्टिमालयामेज उतेज धरिजमाण उसवाइयगमेणं जाय पशुपासा, एक बलमाचि जाच महत्तस्मादिपरिक्सित्ता जेणेव समगे मगर्व महावीरे तेनेव उपागमाति ना समर्ण मग महावीर पंदसिनसनित्ता सेणिय राय पुरओ का ठिलिया । पनुपासति, तो समणे भगवं महावीरे सेणियस रखो मंभासारसा शिगाए य देखीए वीसे मतिमहालियाए परिसाए जहपरिसाए इसिक मणि देव मणमा देसी. अगसयाए जाच धम्मो कहिओ, परिसा परिगया, सेणिो राया पडिगोसावरगातियाणं निम्नवाण व निगवीण व सेणिय राबवित देवी पासिताल मेवाको अका| थिए जाच सफापे समुपजित्या अहो न सेगिए राया महाधिकए जाच महासोक्से जेहाए कपलिकम्मे कपकोउपम सापपिछले सालंकारविभूसिते चिठाणाए देवीए सदि जालाई भोगभीमाई भुजमाणे विहरति, न मे दिडे देवे देवलोगमि, सकसं खलु अयं देवे, जड इमस्स सानियममारवासास कतवित्तिविससे अस्थि तथा यमविभागमेससाए मा आहा एपाकलाई मासुस्सगाई मोमभोगाई मुंजमामा विहरामो सेनं माह, अहो मं चिडणा देवी महिदिया जाय महासोक्सा जा माया कपमालिकम्मा जाप सबालंकारविभूतिया सेगिएणं रखा सदि उसालाई माणुस्सगाई भोगनोगाई मुंजमाची विहस, म मे दिवाओ देवीओ देवलोए, सरल खरा देवी,जह मस्त सुपरिवरस तपनियमभचेरयासमस कसागफलपित्तिपिससे अल्लि वयमपि जागमिस्सा इमाई एवारूवाई उरालाई जार विहरामो, सो साहुणी II अनोति समणे मान महावीरे बहरे निमांचा य निमा. पीओ य आमंतिता एवं ग्यासी अभियं रायं चित्त देवी पासित्ता इमे एथारूने अमथिए जाच समुप्पनिया-अहो गं मेणिए गया महिडिवए जाप से सह. होणे चिणा देवी महडिडया संपरा जावसेनेसाहनी.से पूर्ण अजी! जत्थे समहे .हंसा अस्थि, एवं सड़ समकाउसो।पए कामे पश्यते इनमेष निर्माचे वाक्यणे सचे अणुसरे परिपुग्ने नलिए संसदे आए सागत सिबिमम्गे मुत्तिमम्मे निजाणमो निचाणमये अग्निहमचिसंधि सम्वदुक्सपहीणमोल्प लिया जीया शिजति माति मुचंति परिनिष्याइति सम्बएक्सागमन कोनि, जस्म मं धमास्त निर्णय सिकरवाए उपदिए बिहरमाणे पुरा दिगिछाए पुरा विधागाए पुरा भातातहिं पुडि विरुषकोहि परिसहोपसम्गेहि उदिणामजाए पानि विहरेना.से पपरकमेना सेप परकममाणे पासेजा जे उमापुना महामाउया भोग्दुला महामाउया लेसि अण्णतरसा अतिजापमाणसवा निशायमाणस वा पुरओ मह वासीदासकिरकम्मरपुरितपदापपरिक्सिन उत्तभिमारे गहाय निवाति तदर्णत नणं पुरत्रो महामासा आसपा उमओ तेसि नागा नागरा पिहो स्था स्वपरा स्थसंगिाडी सेवं उदरियसेयच्यासे अम्भुमयभिंगारे पगहियतालविटे पवियमासेयधामरवालपीयजीए अमिक्स २ अतिजाति व निजाति यसपमा, समारंप नाए कपलिकम्मे जाप साकारविभूलिए महनिमहालियाए डागारसालाए मइतिमहालयसि सिंहासणंसि जाब सारातिए जोषणा शिपायमाने इत्विगुग्मपरिसडे (२५७) । ९८८ दशाभूता कंपच्छेदमूर्भ बस-10 मुनिटीपरजसागर कककककककककककका अनुक्रम [९८]] ~12~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [१०] --------- ---------- मूलं [४६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत सुत्रांक [४६] दीप अनुक्रम [१०३] महवाहपनानीमचायतीतलतानतुतियषणमुचंगमहलपहुप्पचाइयरवेणं उरालाई माणसागाई मोगमोमाई मुंजमाणे विहस, वरस एगमवि भापमाणस जाब पसारिपच अपुला पेष अमुहाति-मणहरेवाणुपिया कि रेमो बिआइरेमो कि उपमो ? कि आचिट्ठामो ? कि मे हिपश्चिार्य किते आसगस्त सतिज पासिता निमांचे निरा करेति जाइ इमस्ल नवनियमबचेरवासास जाप साह, एवं खलु सममाउसो ! निर्माचे निदाणं किचा तसा ठाणस अणालोइयनपडिक कालमासे कालं किचा बकतरेषु देकलोमेनु देवताए उपयत्तारो मवति महिदिवएसु जाव चिरहियएस,सेक वस्य देवे मवति महिदिए जाव चिराद्विवए, तो देषलोगाओ आउक्खएणं अवर चर्य चाचा ने इसे उम्मपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउचा सिनअन्यतरंसि कुलसि पुत्वत्ताए पचायाति, से गंतव्य दारए मपति सूकमालपाणिपाए जाच सुरुो,तो से बारए उम्मुखमालमा विना-IA बायपरिणयमिते जोपनगमगुपत्ते सयमेव पेइयं दावं पढिवजाति, तस्स गं अइजायमाचस्स पा निजायमाणस वा पुरजो मई जान दासीदास.लिले आसगस्त सदति । तस्स । वहाणगारस पुरिसजायरा वहाको समणे चा माहने वा उभयकालं केवलिपपत्तं धम्म आइलेजा १.हता बाइक्लेवासे पहिणेलामो इलाहे समडे, अमचिएको तसा धम्मस्स सवणयाए, से य भवति महिला महारंभे महापरिग्गाहे बम्मिए जावागमेसाचं दुखमबोदिए बावि भवति, तएवं खलु समकाउसो! वस निदानस्स इमेवाको पावफलपिचागे जंगो संचाएति केवलिपपतं धर्म पडिसमेत्तए । एवं खलु समगाउसो ! मए पम्मे 40- इनमेष निगचे पाक्यले सो जाच साबुक्याणमंत करेति जस्स में धम्मरस निर्माची सिक्साए उहिया विहरमाणी पुरा दिनिकाए. उरिन्यकामजाया विरेना, सा च परकमेला, सा प परकममाची चालेना से जा इमा इस्थिया भवति एगा | एगजाया एगाभरणपिहाणा नेलपेक्षाच सुसंगोचिया बेलपेलाइव सुसंपरिणहिया स्वणकरंडगममाणातील अतिजायमाणीए वा निजायमानीए या पुरवो मई वासीदास जापE कि आसगरस सदति ,पासित्ता नियंची निवार्ण करेति-जति इमस्त तवनियममचेर जाप मुंजमाणी विरामि, सेल साहनी, एवं खलु समकाउसो ! निमांची निवाण किया तस्स हागस जगालोयनपदिकता कालमासे कालं किया जमकरसु देवलोएम देवताए उवचारो भवति महडिएस जाप सा तत्व देखें भवति जाव मुंजमाणे पिहरड, सा शताओ ऐकलोगाओ आउसएन. अता पात्ता जे इमे मति उम्गापुत्ता महामाया मोगपत्ता महामाउया एतेसि में अण्णतासि कुर्ससि पारिपत्ताए पचायाति, सातत्य दारिया भवति सुकुमाल जाप सुरुवा, क्ते में तं वारिय अम्मापियरो उम्मुकचालमा विग्णयपरिणयमित जोपनगमगुपन पहिलो किन पतिकारा भत्तारस मारिवत्ताए | दति, सा गं तस्स मारिया भवति एगा एगजाया बडा जाव रयणकरंडगलमाणी, सीसे जाय अतिजापमाणीए वा निजायमाणीए पा पुरसओ मई दासीदास जाब किं ते जासगस्सा सदनि, तीसे गतहप्पगाराए वियाए वहाको समणे वा माहणे वा उमनोकाल केवलिपण धम्म आइक्सेना ता आइपसेजा.सा अंते । पडिसुजा, गोमडे समडे. | अभविषा सा तसा धम्मस सणवाए, साब भवति महेचा महारंमा महापरिम्हा जाप वाहिनयामिए नेहए नागमिस्साए मनोहियत्ताए मपति, एवं खलु समकाउसो 2 तस्स निदागस इमेवाकये पाचपलवियागे जंगो संचाएति केवलिपपम्म पडिसुणिलए आएवं खलु समणाउसो ! मए पम्मे पागले इणमेव निर्माचे पाश्यणे वाष जस्स धम्मस निगये सिक्लाए उचहिए पिहरमाणे पुरादिमिछाए जाच सेव परकममाणे पासेजा-इमा इथिका मपनि एमा एमजाचा जाब रिते सगस्स सदति . ज पासित्ता निर्माचे निरा करेति दुक्रर्ष स्थान पुमत्तणए, जे इसे उमापुत्वा महामाउया भोगपुरता महामाजया एवेसि अण्णतरेसु उचावएस महासमरसंगामेस उचावयाई सस्थाई उरसि र पहिर्सपतित दुखलल पुमतगए, इत्थीतर्ण साहु, जतिइमस्सनवनियममचेरचासत्सकसवित्तिविसेसे अस्थियमविभागमेस्साणं जाचामेकलाई उरालाई स्वीभोगाई भुनिस्सामी, सेतं साह, एवं खलु समजाउसो! निर्माचे निदाणं किया तस्स ठाणस्त अण्णाोदनपटिकने जाव अपडिपजिन्ना कालमासेकालं किंवा अन्यतरेतु जाच सेक सत्य देवेभवति माहि. दिवए जाच विहरति, सेताओ देवसोगाओ आउत्सएणं जाच अतरं चइता अन्यतरंसि एलीसिवारियशाए पचायाविजाब वेणं से वारियं जाव मारिपत्ताएक्लयंति, सामं वस्त मारिया भवति एगा एमजाया जाच तहेर सर्व माणिय, तीसे गं अतिजायमाणीचा जाब कि वे आसमा सदति', तीसे में तहपगाराए इस्विकार वहाको समये यामाहणे पा धम्म आइसेना,हंता आइक्सेना, जाय कि पदिसूणेजाणो विणहे समाहे.अमविया णं सा तस्स पम्मस्स पडिसपणयाए,साय भवति महिण्ठा जाप वाहिषयामिए नेरइए, आगमिस्सा लभमोशिए पावि मपति, एवं खलु समणाउसो! तस्स निवाणस इमेयाको चापकताविमागे मवति जणो संचाएति ललिपप धम्म पटिसणेत्तए ।४८ा एवं सा समणाउसो ! मए धम्मे पचते इमामेव निम्मेवे जाप अंतं करेति जस्सा पम्मरस निगंधी सिक्साए उपहिया विहरमाची पुराविनिशाए जाब दिल्यकामजाचा विहरेजा, साय ९८९ शतकंपच्छेवमूर्यवसान मनिटीपरजसागर ~13~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध” - छेदसूत्र-४ (मूलं) ----------दशा [१०] -------- ----------- मूलं [४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत [४९] at v दीप परकममाणी पासेना से इसे भवति उन्मपुत्ता महामाया भोगपुत्ता महामाउया जाय कि ते आसगस्स सबति !, जे पासित्ताण निग्गंधी निया कोलि-इस साल स्थितगए. इसंचारा मार्गतराई जाच सविसंतराई, से जहानामए अपेसियाति या अंबाङपेसीयाति वा मानलंगपेसियातिषा मंसपेसियाति वा उनलंडियाति वा संवनिकालियाति बारा जणस भासासनिजा पायगिजा वि(पी)वाणिमा अभिलसणिमा एषामेव इस्विचावि बहुजणस्त आमासगिना जाप अमिलमणिमा, गुरुवं खलु स्थितणए, पुसत्तणए साहा जाइमरस तपनियम जाप अवि अहमपिजागमिस्साणं इमाई एवारुबाई पुरिसमोमभोगाई भुजियामि, से ते साहुनी, एवं खलु समगाउसो ! निर्माची निदाणं किसानस तामसी अगालोरयापतिकता जाच अपहिबनिता कालमासे मल किया अण्णतरेसु देवलोएसु बेपत्ताए उपवतारो मति से तत्व दे माति महिडियर जार पाता गराए मपति जाप कितासगरस सदनि, तरस तहपगारसा पुरिसजावस जाप जमविए णं से नरस धम्मस्त सक्णयाए, से व मवति महियो जार वाहिणमामिए मेराए जा - बोदिए पापि मपनि, एवं खलु जाप बडिसुमित्तए । ४९ एवं खलु सममाउसो ! मए धम्मे पागले इनमेष निर्माचे पाक्यणे जाप कोच, जसा से धमाल निर्णये ना निर्मची वा सिसाए उपाहिए पिहरमाणे पुरादिमिकाए जाच उदिमकामभोगे निहरिजा, से व परकमेना, से य परिकममा माशुसेहिं कामभोगेहि नियं गमोजा, मागुस्समा खलु कामभोगा 4 अषा अणितिया जसासचा सहपहपरिवंसमधम्मा उचारपासपणखेलसिंचागतपित्तनुकसोनियसमुन्थमा दुरूपउस्सासनिस्सासा दुरुषमुचपुरिसपुग्णा तासचा पिचासमा खेता-18 सबा पच्छा पुरचणं अवस्व विष्णजइपिजा, सति उद देवा देवलोए वेणं सत्य अण्णेसि देवाणं देवीजी अभिजिय२ परियारेनि अग्गा र अपागं वित्तिा परिवारैति अपणिशियानो देवीसो अभिजियर परियारंनि, जति मसातनियम जानतंर समाणिय जाप यमविभागमेसाणं इमाई एचाकमाईदिशा भोगभोमाई मंजमाणा बिहरामो, सेल साह एवं खलु समणाउसो ! निर्माचे वा निर्माधी चा निचाणं रिचा तक्ता ठाणमा अणालोपपष्टिकते कालमासे का किया अन्यतरेस देवस देवताए उपपतारो भवति | ०-महिडिबएसुजान पभालमागे,सेक देवे अर्ण देव अण्णं देवी वेषजाय पपियारेति. से गं साजो देवतोगाओ आउक्खएणं ते पजाब पुमत्ताए पचावाति जाप कितेआसमस्त सबति?, तस्स सहप्पमारस्स परिसजायस्सरहाकोसमणेवामाणे पाजारपहियुजाता पहिराणेना.सेणं सजापसिएजारोशनाबोडेसमडे. समविय से सम्म धम्मस्स सरहणताए,से भवति माहिच्छ जार दाहिनमामिए नेसाए भागमेस्साए ग्रामचाहिए पाविमचति, एवं खलुसममाउसो ! तस्स पियाणस्स इमेवारवे पावफलविवागे लागो संचाएनि केलिपग्मतं धन सरहेत्तए वा पतितत्तए वा रोहतए वा।५०एवं खलु समकाउसो ! मए पम्मे पन्यते न प से च परकममाणे माणसएस कामभोगेस निशेयं गजा.मागरसमा सलकाममोगा अपना अगिनिया सडेन जापति नरेगा ऐकतोगसिनेसत्यमोज देवं गोवजयाजोदेवीओ अभिजियपरिचारैतिअप्पणा अपाणं विसरिता परियारेति ना जाइमा नवनियम त चेव साजाप से वे सहेजा पतिएजा रोएजा', जो इण्डे समझे, अण्णत्वाई समायाए से भवति से जे इसे सारणिया आचसहिया गामणितिया किन्तुरहस्सिया को बहुसंजया बो बहुपतिविरया सापामभूयजीपसलेम अपणा सबामोसार पर्जता बईमतको अन्न इतना अहम अजायचो अण्णे सजाया जईम परियायो अग्ने परिवारमा जनपरिचत्तको अन्ले परिपत्तमा अईन उगनेयत्रो अनी उपपत्रा, एषामेव इस्विकामेहि मुखिया गाडिया गिदा अमोषषष्णा जाच कालमासे का किया अण्णानराई बासुराई किम्पिसियाई ठागाई उपपचारो भवंति, ततो मुबमाणा मुजो २ एलमूलमत्ताए पचापति, त ललू समजाउलो! नमा निदानास जावणो संचाएति केमिपम पम्म सरहितए पा.५शएसनसमजाउसो गए पम्मे परमाते जान माणुस्समा स्खलुकाममोगा अपना नडेच संति जाई मावा रेक्लोथति अन्य अनदेखी अभिजुजिय र परिवारनि को अपना र अणाचं विउधिय २ परियारेनि, जति इमरस नवनियम तर जाप एवं सह समपाउसो । हा निधी वा निम्नची चा निदाणं किंचा जगालोवाप्पटियत जाप विहरति, से गं तत्व जम्ने देखें अम्माजो देवीओ अभिजिय २ परिवारेति, जो अपणा अपार्ण विलियम २परियारेति, सेणं साओ देवलोमाओआउक्लएर्ण नहेब बन गनर हंता सदाहिजा पत्तिएना रोएगा, सेसीलवयागायचेरमनपचनसाणपोसहोचासाई पडिक्सेना?.नो इणद्वे सम.सेक सणसापए भवति अभिमयजीवाजीवे जाव अडिभिजपेमापुरागरते जाप एस अद्वे सेसे अगड़े, से गं एयारूपेण विहारेण चिहरमाणे बहई चासाई समगोचासगपंरिया पाउणा सा कालमासे कालं किया अम्मतरेसु देवलोगेषु देवेसु देवत्ताए उत्तारो भवति, एवं खलु समगाउसो! तस्स निदाणस्स इमेयारूये पावफलविषागे जे गो संचाएइ सीलनयगुणषयरमणपचासागपोहोचवालाई पडिजित्तए ।५२एवं खलु समणाउसो ! मए पम्मे पात र सा जाब से य परकममाणे देवमाणुस्सएहिं कामभोगेहि ९९० दशावुनस्कपच्छेदमूर्थ वसा-10 मनिटीपरमसागर अनुक्रम [१०६] troyra ~14~ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ----------दशा[१०] --------- मूलं [१३] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत सूत्राक [५३] दीप अनुक्रम [११०] निवेदं गच्छेजा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा जाब विष्पजहणिज्जा, विश्वावि खलु कामभोगा अधुवा अणिनिया असासया बला बयणधम्मा पुणरागमणिजा पच्छा पुर्व व गं अवस्सविष्पजहणिज्जा, जति इमस्स तवनियम जाच आगमिस्साणं जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया जाच पुमत्ताए पचायंति, तत्व णं समणोवासए भविस्सामि अभिगतजीवाजीचे उचलहपृष्णपाचे जाव फामुएसणिजेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिल्लाभेमाणे विहरिस्सामि, से तं साहू, एवं खलु समणाउसो ! निगंथो वा निम्मंथी वा निदाणं किया तस्स ठाणम्स अणालोइय जाच देवलोएम देवत्ताए उपवत्तारो भवंति, से णं ताओ देवलोगाओ आउपखएणं जाव आसमस्स सदति ?, तस्स ण तहपगारस्स पुरिसजातस्स जाच हला सहहिजा, सेणं सीलवयजावपोसहोचवासाई पडिक्जेजा, हता पडिकजेजा, से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारिप पाइजा, णो इणट्टे समझे, से णं समणोचासए भवति अभिगयजीवाजीचे जाच पडिलाभेमाणे विहरति, से गं एयारूवेणं विहारेण विहरमाणे बहूणि चासाई समणोचासगपरियागं पाउणन ना आवासि उप्पणति वा अणुप्पञ्चसि वा बहूई भनाई पञ्जस्खाइ ना बहूई भनाई अणसणाए ठेदेनि ना आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा आण्णयरेसु देवलोएमु देवत्ताए उवक्त्तारो भवति, एवं खलु समणाउसो! नम्स निदाणम्स जमेयारूचे पात्रफरविवागे जं णो संचाएति सबओ मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पञ्चइत्तए ।५३। एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णने जाब से य परकममाणे दिवमाणम्साएहि कामभोगेहिं निश्चयं गच्छेजा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा जाच विप्पजहणिज्जा, दिवावि खलु कामभोगा अधुवा जाब पुणरागमणिजा, जइ इमस्स तय नियम जाच वयमपि आगमेसाणं जाई इमाई कुलाई भवंति नं०-अंतकुलाणि वा पंतकुलपणि वा तुच्छकुलाणि चा दरिदकुलाणि वा किविणकुत्लाणि चा भिक्खागकुलाणि या एएसि अण्णनरंसि कुलंसि पुमनाए पचायति, एस मे आयापरिवाए गुणीहडे भविस्सति, से तं साहू, एवं खलु समणाउसो ! निगांधो वा निगांधी वा नियाणं किंचा तस्स ठाणस्स अगालोइयत्रपतिकले सानं चेव से मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पत्रइना!.हंता पाइजा. से णं नेणेष भवरगहणेणं सिझेला जाव सादुक्साणमंत करेजा ?, णो निणद्वे समझे, से गं भवनि जेमे अणगारा भगवंता इरिषासमिया जार भयारिए तेणं विहारेणं विहरमाणा बरं वासाई सामग्णपरियागं पाउणति त्ता आपाहंसि उप्पण्णंसि वा जाच भत्ताईन पचक्खाइनि?, हंना पञ्चसाईति, बहुई भत्ताई अणसणाए छेदेति ?. हंता छेदेति, छेदिता आलोइयपडिकने समाहिपने कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेस देवलोएमु देवत्ताए उबबनारो भवंति, एवं समणाउसो ! नस्स नियाणम्स इमे एयारो पावफलविवागे जं गो संचाएति नेणेव भवग्गणेणं सिझेजा जाब सबदुस्खाणं अंत करेजा।५४ा एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव निग्गंथे पावयणे जाव से परक्कमेजा सबकामविरते सचरागविरते सबसगातीते सबसिणेहातिवंते सव्वचारित्तपरिवडे, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेण । नाणेणं अणुनरेणं दसणेणं जाव परिनिवागमम्गेणं अप्पाणं भावमाणम्स जणते अणुत्तरे निवाघाए निराचरणे कसिणे परिपुष्णे केवलवरनाणदंसणे समुपजेजा, नने णं से भगवं अरहा भवति जिणे केवाली सबष्णू समदरिसी सदेवमणुासुराए जाव बहुइ वासाई केबलिपरियागं पाउणति ना अप्पगो आउसेसं आभाएनि ता भत्तं पञ्चक्खाइ ना बहूई भन्नाई अगसणाए छेदेइ ना नओ पच्छा परमेहिं उसासनिस्सासेहि सिज्मति जाय सादुक्खाणमंत करेति, नएवं समणाउसो ! नस्स अगिदाणस्स इमेयारू कालाणे कलविचागे जं नेणेच भवम्गहणेणं सिजाति जाव सवदुक्खाणमंतं करेनि।५५। तते ण ते बहरे निग्गंधा य निग्मांधीओ य समणम्स भगवो महावीरम्स अंतिए एपमई सोचा निसम्म समणं भगवं महावीर बंदनि नमसंति ना तम्स ठाणस्स आलोएनि पडिकमंनि जाव अहारिहं पायच्छितं तचोकम्मं परिवति । ५६ । नेणं कालेणं कसमणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेदए बहणं समगाणं बहूर्ण समणीर्ण बटूर्ण सायगाणं चरणं सावियाणं बरणं देवाणं वहणं देवीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए मझगए एवं आइक्वड एवं भासह एवं पण्णवेश एवं परूवेद आयाति. ठाणनाम अज्झयसअट्ठ महउयं सकारणं समुनसत्वं सतभयं स्वागरण जाप भजो मजो उवदनिनिवेमि॥५॥आयानिस्थानाध्ययनं १०॥आयारनसाओ दशाश्रुनस्कंधच्छेदसूत्रान मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" परिसमाप्त: । ~150 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः [ 37 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च / “दशाश्रुतस्कन्ध-छेदसूत्र” |मूलं एव] (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: “दशाश्रुतस्कन्ध” मूलं” नामेण परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of jain_e_library's' ~16~