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________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [७] --------- --------- मूलं [३४] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं तर, एका हात वर का मावि, भावर पडणारी प्रत सत्राका [३४] मते अपाणएक पहिया गामस्स बाजार सयहाणीए वा उत्ताननस वा पासोड़मरस बा नेसनियरस वा तागं ठाएनए, तत्य दिशमाणसतिरिक्सजोणिया उक्सग्गा समपजिना. ने उचसम्मा. पयलिन वा पहिन वा नो से कन्या पवित्तए वा पपडितए वा, तत्त्व से उबारपासवणे उन्माना नो से कणा उभारपासवगं ओगित्तए, कापड से पुषपहि लेशियसि यहि मि उचारणासवर्ण परिद्वपित्तए, हापिधिमेष ताणं लाइतए, एसा रखाल पदमा सत्तराईरिया भिक्सुपडिमा हासुन जाच आगाए अपारिता भवति, एवं दरोगा सनराईदियापि. नवरं दंडातिपस्सपालगंदसाइस्सपा उकायस्सवातर्ण ठाइनए.सेसनवजार अणुपारिता भवति, एवं तथा सत्तराईदिपारिभवति, नवरं गोदहियाएवा बीरासणियसमा अंग्रामसपा ठाणं ठाइनए, एका जाप अणुपालिता भवति। ३४ा एवं अहोरातियाकि, नारं उद्रेण मतेणे अपाणएणं पहिया गामस्स बाजार राहाणियसमा सिरोचिपाए माहट नपारियपाणिस ठाणं ठाइनए, सेस ने चेक जाच अणुपारिता भवति, एगराई पं निफ्सुपडिम पडिपमस्स अणगारस्त नि बोसिहकाए जाप अभियासेति. कापड से अहमेण भनेणं अपाणएर्ण पहिया गामस्स वा जाप गयहावीए का ईमिषम्भारगएवं काएवं एमपोमालहिताए विहीए अणिमिसनपणे अहापणिहितहि गोहि सजिपिएरि गुले दोविमाए साइटर पग्पारिवाणिस ठाणं ठाइनाए, नाथ से दिनमाणुसविरिष्ठजोणिया आप अहाविधिमेव ठाणं टाइलए, एगराई मिसुरहिम अणपालेमाणस जणगारस इमे तो ठाला अहियाए जसुभाए असमाए अणिस्सेसाए अमानुगामियनाए भवति, तं०- उम्मार्य पालभेजा दीइकालियं वा रोगायक पाउनेजा केवलिपाताओ धम्माओ IN वा भरोजा, एगराइभिक्षुपडिम सम्म अणुपालेमागस अणगाररस इमे नयी ठाणा हिपाए जाच आगामियनाए भवंति,to-ओहिणाणे पा से समुपलेला ममपनमाणे वा से समुपजेजा केवलनाणे पा से असमुपगपुत्र समुणगेजा, एवं स्खल एला एमरालया भिक्खुपडिमा हात्त अहाकार्ष अदाममं अहातचं सम्म कारण कासिता पालिता सोदिता नीरिता किविता बाराहिता आलाए अणुपारिता पापि भवति. एताओं सलु ताजो बेरहिं भगवतेहिं पारस मिस्सुपतिमाओ पललाओलिनेमि । ३५॥ निशुपतिमाध्ययन जाने कालेणं न समएवं समणे भगर्ष महावीर पचहत्युत्तरे होत्या तक हत्युत्तराहिं चुए पहला गर्भ शकते, हत्थुसराहि गम्भाजी ग साहरिए, हत्ता जाए रत्युत्तराहि मुरे भविता आगाराओ अणमारियं पादर, हत्युत्तराहि अर्णते अयुत्तरे निवापाए निराकरणे कसिणे परिपुमो केवलपरनाणदसणे समुप्पो, सारणा परिनिाए भय, जाप मुनो २13 उपरमदनि बेमि । ३६॥ पर्युषणाकल्याध्ययनंदा तेर्ग कालेगा यानाम नगरी होत्या वाणोपुण्णाभदे चेहए. कोगिए राया, धारिणी देवी, सामी समोस. परिसा निरगया. धम्मो कहियो, परिता पहिगया, अनोति समणे भगवं महावीरे बहले निर्माचा य निमांधीओ व आमतेता एवं पदासी-एवं खलु अमो! तीस मोहणीयद्वाणा मार हत्तीचा परिसी पा अभिक्स २ आवरमाणे वा समापरमाणे वा मोहणिजनाए कर्म परेति, नं० जे केषितसे पाणे, मास्मिनो विवाहिया । उपएमसम्ममारेति, महामोह पर.१८॥सीसायोग जे केई, आपटे अभिषतर्ण लिमासुमसमाचारे, महामोह ॥१९॥ पाणिणा संपिहितार्ण, सोयमावरि पाणिणे अंतो नईत माह ॥२०॥जायते समासमा मह ओसेभिया जम्।। अंती धमेण मारे-४२१॥सीसमिजे पदनि, उनमेगामि पेपत्ता। विभज मत्वर्याले ॥२२॥ पुणो २ पणिधीए. इणिता (चाले) उपहसे जणं । फलेन अनुचा दंडे-२३॥ गदापारी निगहिना मात्र मापाए जायए। भावनाई निहाइः॥२४॥ सिह जो अभए, अकर्म अनकम्ममा अनुवा तुममकामिति ॥२५॥ जागमागी पुरिसओ, सबमोलाइ भासति । अक्लीणो पुरिले ॥२६४ जणायगरस नवर, बार तोर बलिया विडाले पिपरसोभागाणं, किचाणं पविवाहिर ॥२७॥ उ पि अपिता, पहिलोमाहि काहि । बोगमागे पियारेवि०॥२८॥अकुमारभूए ने केश कुमारभूएनिह पए। इस्थीविसायगेहीए. ॥२९॥ अभयारी जे जेई भयारी तिज गए। गदमेव ग मो, विस्तर नदती गई ॥ ३० ॥ अपणो अहिए बाले, मायामोल बई मसे। इल्वीसियनिदाए ॥३१॥ जंनिम्सिए उबहती, समाभिममेग या तस मुम्बा वितमिः ॥१२॥ सरेण अनुषा गामेग, अनीसरे सरीकए।तसा संपारिवाहिल(यहीण)स.सिरी मताप्रमाणया ॥३॥ईसादासेगाइडे, कटुसाउसचेयसे । जे अंतराय एड० ॥३४ासणी जहाअंहपुर्ड, मत्तार जो विहिसडा सेमाचति पसरचार ॥३५॥ जे नाव परहस्स, मेयार निगमस्स पासिद्धि पर हंता ॥३६७पजमस्त नेता, की तार्थ च पागि एवारिस बरं हता० ॥३॥ सदिय परिपिरय, संजय मुसमाहिय। विउवम्म धम्माओ भंसेनि ॥३८॥ तहेवाणंतनागीण, जिया वासिगं । सेसि अपण चाले० ॥३९॥ मेवाउपस मग हे अपहर (मरती पहन लियतो नाति ॥ ॥जापरिवारमाया, सूर्य विषयं च माहिए।ने चेक खिसती बाले IV आपरिसमापारी, सम्म पविलाई अपरिपूपए पड़े। Ni|अपरस्सएपि(क) जेई, सएन पक्किया। सजावचा परतिः ॥ अस्सी पजे केई. तोर्ण परिकत्थई । सानोगपरे नेणे.viaहात्मा ने कई, मिलामि I दशाभूतस्कंधच्छेनमूत्र मुनि दीवाना कारक करपाकककर दीप अनुक्रम [५१] अत्र दशा- ९ आरभ्यते ~10~
SR No.004137
Book TitleAagam 37 DASHAA SHRUTSKANDH Moolam ev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages17
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size5 MB
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