Book Title: Aagam 09 ANUTTAROPAPATIK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' [०९] श्री अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रम् नमो नमो निम्मलदसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः। "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं वृत्ति: [मूलं एवं अभयदेवसूरि रचित वृत्तिः ] [आदय संपादकः - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ] | (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.) 29/09/2014, सोमवार, २०७० आसो शुक्ल ५ jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[०९], अंग सूत्र-[०९] “अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि रचित वृत्तिः ~0~ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [-] “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र - ९ (मूलं + वृत्तिः) वर्ग: [-], अध्ययनं [-] मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ०९], अंग सूत्र - [ ०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः Education Internation अर्हम् । श्रीमच्चन्द्रकलीन श्रीमद्भयदेवाचार्य विहित विवरणयुतं अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग सूत्रम् प्रकाशयित्री साना बाना श्रेष्ट कपाल हीराचंद श्रेष्ठ गुलाबचन्द्र हर्षचन्द्रपत्नी उमीया कोर विहितसाहाय्येन श्रेष्ठि वेणिचन्द्र सुरचन्द्रद्वारा आगमोदय समितिः ॥ इत्रं पुस्तकं पुणामध्ये आर्यभूषण यन्त्रालये म्यानेजर अनंत विनायक पटवर्धन द्वारा मुद्रापितम् ॥ बीरसंवत् २४४६. विक्रमसंवत् १९७६. क्राइस्ट सन् १९२० पण्यं०-१०० दशकमाणकानाम् । अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रस्य मूल “टाइटल पेज" For Personal Prat Use Only ~1~ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाका: ६+४ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग सूत्रस्य विषयानुक्रम दीप-अनुक्रमा: १३ मूलांक: ___ वर्ग: पृष्ठांक: मूलांक: | पृष्ठांक: मूलांक: पृष्ठांक: | ००४ ____००७ ००१ वर्ग: १,जालि, मयाली ____ उवयालि आदि दश अध्ययनानि _ | वर्ग: २, दीर्घसेन, महासेन, । ००६ लष्टदन्त आदि अष्ट अध्ययनानि | | वर्ग: ३,धन्य, सनक्षत्र आदि ऋषिदास, पेल्लक आदि त्रयोदश अध्ययनानि मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ~ 2~ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ['अनुत्तरोपपातिकदशा' - मूलं एवं वृत्ति:] इस प्रकाशन की विकास-गाथा यह प्रत सबसे पहले “अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग" के नामसे सन १९२० (विक्रम संवत १९७६) में आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | इसी प्रत को फिर से दुसरे पूज्यश्रीओने अपने-अपने नामसे भी छपवाई, जिसमे उन्होंने खुदने तो कुछ नहीं किया, मगर इसी प्रत को ऑफसेट करवा के, अपना एवं अपनी प्रकाशन संस्था का नाम छाप दिया. जिसमे किसीने पूज्यपाद् सागरानंदसूरिजी के नाम को आगे रखा, और अपनी वफादारी दिखाई, तो किसीने स्वयं को ही इस पुरे कार्य का कर्ता बता दिया और श्रीमसागरानंदसूरिजी तथा प्रकाशक का नाम ही मिटा दिया | हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर वर्ग, अध्ययन और मूलसूत्र के क्रमांक लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा वर्ग एवं अध्ययन चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके | हमारे अनक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है। हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते वर्ग, अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है | अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जिसमे उस पृष्ठ पर चल रहे खास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ......मुनि दीपरत्नसागर. ~3~ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्तिः ) वर्ग: [१], ---------------------- अध्ययनं [१] ---------------------- मूलं [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक चन्द्रगच्छीयश्रीमदभयदेवाचार्यदृब्धविवरणयुताः अनुत्तरोपपातिकदशाः दीप अनुक्रम तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे अजसुहम्मस्स समोसरणं परिसा णिग्गया जाव जंबू पजुवासति । एवं व-जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमढे पपणत्ते नवमस्सणं लाभते ! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं जाव संपत्तेणं के अद्वे पपणते?, तेणं० से सुधम्मे अणगारे जंबुं अण-| गारं एवं वयासी-एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोबवाइयदसाणं तिपिण १ अथानुत्तरोपपातिकदशासु किश्चिद्वयाख्यायते--तत्रानुत्तरेषु सर्वोत्तमेषु विमानविशेषेधूपपातो-जन्म अनुत्तरोपपातः स विद्यते येषां | तेऽनुत्तरोपपातिकास्तत्प्रतिपादिका दशाः-दशाध्ययन प्रतिबद्धप्रथमवर्गयोगादशाः-अन्धविशेषोऽनुत्तरोपपातिकदशास्तासां च सम्बन्धसूत्र तसाख्यानं च जाताधर्मकथाप्रथमाध्ययनादवलेयं. शेषं सूत्रमपि कण्ठय..manusoom P wiumurary.org ~ 4~ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [१], ------------------------ अध्ययनं [१] ---------------------- मूलं [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक दीप वग्गा पन्नत्ता, जति णं. भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुसरोववाइपदसाणं ततो वग्गा वर्गे जाशाः वृत्तिः | पन्नत्ता पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता?, एवं खलु जंबू! समणेणं जाव। ल्यध्य.१ संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं०-जालि १ मयालि २ उवयालि ३ पुरिससेणे ४ य वारिसेणे ५ य दीहदंते ६ य लट्ठदंते ७य वेहल्ले ८ वेहासे ९ अभये १०ति य कुमारे ॥ जइ णं भंते समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अणुसरोव० समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णते?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णगरे रिथिमियसमिद्धे गुणसिलए चेतिते सेणिए राया धारिणीदेवी सीहो सुमिणे जालीकुमारो जहा मेहो अट्ठलओ दाओ जाव उप्पि पासा० विहरति, सामी समोसढे सेणिओ णिग्गओ जहा मेहो तहा जालीवि णिग्गतो तहेव || माणिक्खंतो जहा मेहो, एक्कारस अंगाई अहिज्जति, गुणरयणं तबोकम्म, एवं जा चेव खंदगवत्तब्वया सा चेच चिंतणा आपुच्छणा थेरेहिं सद्धिं विपुलं तहेव दुरूहति, नवरं सोलस वासाइं सामन्नपरियागं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उड्डे चंदिम सोहम्मीसाण जाव आरणहुए कप्पे नव य गेवेज्जे विमाणपत्थडे उहूं दूर वीतीवतित्सा विजयविमाणे देवत्ताए उबवणे, तते णं ते थेरा भग० जालिं अणगारं कालगयं जाणेत्ता ॥१॥ परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति २ पत्तचीवराइं गेहंति तहेब ओयरंति जाव इमे से आयारभंडए, भंते ! ति भगवं गोयमे जाव एवं बयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जालिनामं अणगारे पगति अनुक्रम [१] Santaratmak For Homlanetarayog जालिकुमारस्य कथा ~5~ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [१, २], --------------------- अध्ययनं [१-१०, १-१३] --------------------- मूलं [१, २] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक दीप अनुक्रम |भद्दए से णं जाली अणगारे कालगते कहिं गते ? कहिं उववन्ने ?, एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी तहेच जधा खंद्यस्स जाव काल० उड्ठं चंदिम जाव विजए विमाणे देवत्ताए उबवण्णे । जालिस्स णं भंते ! देवस्स: केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?, गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता । से णं भंते ! ताओ देवलोयाओ आउखएणं ३ कहिं गच्छिहिति २१, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति, ता एवं जंबू! समणेणं| जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमवग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । एवं सेसाणवि अट्ठण्हं| भाणियव्वं, नवरं सत्त धारिणिसुआ वेहल्लवेहासा चेल्लणाए, आइल्लाणं पंचण्डं सोलस वासातिं सामनपरियातो तिण्हं वारस वासातिं दोण्हं पंच वासाति, आइल्लाणं पंचण्हं आणुपुब्बीए उववायो विजये वेजयंते 2 जयंते अपराजिते सव्वद्वसिद्धे, दीहदंते सव्वसिद्धे, उक्कमेणं सेसा, अभओ विजए, सेसं जहा पढमे, अभयस्स णाणत्तं, रायगिहे नगरे सेणिए राया नंदा देवी माया सेसं तहेव, एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपतेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पन्नत्ते (सूत्रं १)। जति णं भंते ! समणेणं जाव संप-12 तेणं अणुत्तरोबवाइयदसाणं पढमस्स वग्गरस अयमढे पन्नत्ते दोच्चस्स गंभंते! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते?, एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं दोचस्स बग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तेरस अज्झरणा पन्नत्ता, तं०-दीहसेणे १ महासेणे २ लट्ठदंते य ३ गूढदंते य ४ सुद्धदंते ५ हल्ले ६ दुमे । दुमसेणे ८ महादुमसेणे य ९ आहिते सीहे य १० सीहसेणे य ११ महासीहसेणे य आहिते १२ पुन्नसेणे य १३ । [१,२] I For MHaramera ~6~ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [२, ३], ---------------------- अध्ययनं [१-१३, १] --------------------- मूलं [२, ३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२,३] गाथा अन्तकुद- बोद्धव्वे तेरसमे होति अज्झयणे ॥ जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइपदसाणं दोबस्स, २ बगः शाः वृत्तिः । वग्गस्स तेरस अज्झयणा पं० दोच्च० भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स सम० ३ जाव सं० के अढे पं०१, एवं दीर्घसेना खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णगरे गुणसिलते चेतिते सेणिए राया धारिणी देवी सीहो याः १३ सुमिणे जहा जाली तहा जम्म बालत्तणं कलातो नवरं दीहसेणे कुमारे सच्चेव वत्तव्बया जहा जालिस्स३ वर्गे - जाव अंतं काहिति, एवं तेरसवि रायगिहे सेणिओ पिता धारिणी माता तेरसण्हवि सोलसवासा परियातो, न्यवणेनं. आणुपुब्वीए विजए दोन्नि वेजयंते दोन्नि जयंते दोन्नि अपराजिते दोन्नि, सेसा महादुमसेणमाती पंच सम्वट्ठसिद्धे, एवं खलु जंबू! समणेणं० अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पन्नत्ते, मासियाए| संलेहणाए दोसुवि वग्गेसु (सूत्रं )। जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरो दोचस्स वग्गस्स अयमढे पन्नत्ते तच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं सम० जाव सं० के अढे पं०१, एवं खलु जंबू समणेणं अणुत्तरोक्वाइयदसाणं तच्चस्स वग्गरस दस अज्झयणा पन्नत्ता, तंजहा-धण्णे य सुणक्खत्ते, इसिदासे अ आहिते । पल्लए रामपुत्ते य, चंदिमा पिट्टिमाइया॥ १॥ पेढालपुत्ते अणगारे, नवमे पुहिले इ य । वेहल्ले दसमे वुत्ते, इमेते दस आहिते ॥ २ ॥ जति णं भंते! सम० जाव सं० अणुत्तर० तच्चस्स वग्गस्स दस अझयणा पं० पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं २ कागंदी णाम णगरी होत्था रिथिमियसमिद्धा सहसंबवणे उजाणे सव्बोदुए जिअसत्तू राया, दीप अनुक्रम [३-६, ७-१०] REmiratinika For Pare M msunamrary.orm Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्तिः) वर्ग: [3], --------------------- अध्ययनं [१] -------------------- मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सुत्राक गाथा तत्व णं कागदीए नगरीए भवा णामं सत्थवाही परिवसइ अड्डा जाव अपरिभूआ, तीसे गं भवाए सत्यवाहीए पुसे धन्ने नामं दारए होत्था अहीण जाव सुरुवे पंचधातीपरिग्गहिते तं-खीरघाती जहा महब्बले जाय बायत्तरि कलातो अहीए जाव अलंभोगसमत्थे जाते यावि होत्या, तते णं सा भद्दा सत्यवाही साधनं दारयं उम्मुक्यालभावं जाव भोगसमत्थं वावि जाणेत्ता बत्तीसं पासायवडिंसते कारेति अन्भुग्गत मूसिते जाव तेसि मज्झे भवणं अणेगखंभसपसन्निविट्ठ जाव बत्तीसाए इन्भवरकन्नगाणं एगदिवसेणं पाणि गण्हावेति २ बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिंपासाय० फुटेंतेहिं जाव विहरति, तेणं कालेणं २ समणे० समोसढे 2 परिसा निग्गया राया जहा कोणितो तहा जियसत्तू णिग्गतो, तते णं तस्स धन्नस्स तं महता जहा जमाली तहा णिग्गतो, नवरं पायचारेणं जाब जं नवरं अम्मयं भई सत्यवाहि आपुच्छामि, तते णं अहं देवाणुप्पियाण अंतिते जाव पव्वयामि जाव जहा जमाली तहा आपुच्छह मुच्छिया वृत्तपंडिबुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे णो संचाएति जहा थावच्चीपुत्तो जियसत्तुं आपुच्छति छत्तचामरातो सयमेव जियसत्तू णिक्खमणं करेति 8 जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो जाच पब्वतिते. अणगारे जाते ईरियासमिते जाव बंभयारी, तते णं से धन्ने || अणगारे जं चेव दिवस मुंडे भवित्ता जाव पव्वतिते तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति २ । १ नवरं तृतीयवर्गे 'वृत्तपडिबुत्तयत्ति प्रव्रज्याग्रहणश्रवणमूछितोत्थिताया मातुः पुत्रस्य च परस्परं प्रवज्याग्रहणनिषेधनविषया तत्समर्थनविषया 8 आ चोक्तिप्रत्युक्तिरित्यर्थः, महाबलो भगवत्यां. २ थावञ्चापुत्रः पञ्चमे ज्ञाताध्ययने. दीप अनुक्रम [७-१०] धन्य अनगार - कथा ~8~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वग्गः 31, - -------------- अध्य यनं [१] --------- --- - अध्ययन [] ------ मूलं [] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत अन्तकुद- शाः वृत्तिः गाथा एवं व०-इच्छामि गंभते! तुन्भेणं अम्भणुण्णाते समाणे जावजीवाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिल-2/३ वर्गे परिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे विहरेत्तते छट्ठस्सविय णं पारणयंसि कप्पति आयंबिलं पडि- धन्यानगहित्तते नो चेव णं अणायंबिलं तंपि य संसट्ठ णो चेव णं असंसर्ट तंपिय णं उजियधम्मियं नो चेवणं गारव. अणुझियधम्मियं तपि य जं अन्ने बहवे समर्णमाहणअतिहिकिवणवणीमगा णावकखंति, अहासुहं देवागुप्पिया !मा पडिबंध०, तते णं से धन्ने अणगारे समणेणं भगवता महा० अन्भणुनाते समाणे हट्ठ जावजीवाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तबोकम्मेणं अपाणं भावेमाणे विहरति, तते णं से धण्णे अणगारे पढमछ क्खमणपारणगंसि पढमाएं पोरसीए सज्झायं करेति जहा गोतमसामी तहेव आपुच्छति जाव जेणेव कायंदी णगरी तेणेव उवा०२ कायंदीणगरीए उच्च० जाव अडमाणे आयंबिलं जाव णावकखंति, तते णं से धन्ने अणगारे ताए अन्भुजताए पयययाए पयत्ताए पँग्गहियाए एसणाए जति भत्तं लभति तो पाणं ण १ तथा 'आयंबिलंति शुद्धौदनादि. २ 'संसहति संसृष्टहस्तादिना दीयमानं संसृष्टम् . ३ 'उज्झियधम्मिय'ति उज्झितं-परित्यागः स एव धर्म:-पर्यायो यस्यास्ति तदुज्झितधर्मिकं. १ 'समणे'त्यादि श्रमणो-निम्रन्थादिः ब्राह्मणः-प्रतीतः अतिथि:-भोजनकालोपस्थितः प्राघूर्णकः कृपणो-दरिद्रः बनीपको-याचकविशेषः. ५ 'अब्भुजयाए'त्ति अभ्युद्यताः-सुविहितास्तत्सम्बन्धित्वादेषणाऽभ्युद्यता तया. ६ 'पयययाए'त्ति प्रयतया प्रकृष्टयज्ञवल्या. ७ पयत्ताए'त्ति प्रदत्तया गुरुमिरनुज्ञातयेत्यर्थः. ८ 'पगहियाए'त्ति प्रगृहीतया प्रकर्षगाभ्युपगतया. दीप अनुक्रम [७-१०] ॥३॥ REscaling ParalaBPNEUMOnly munmarary.org धन्य अनगार - कथा ~9~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [3], ---------------------- अध्ययनं [१] ------------------- मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सुत्राक गाथा लभति अह पाणं तो भत्तं न लभति, तते णं से धन्ने अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंतजोगी जयणघडणजोगचरिते अहापजत्तं समुदाणं पडिगाहेति २ काकंदीओ णगरीतो पडिणिक्खमति जहा। गोतमे जाव पडिदंसेति,तते णं से धन्ने अणगारे समणेणं भग० अन्भणुनाते समाणे अमुच्छिते जाव अणझोविवन्ने विलमिव पण्णगभूतेणं अप्पाणेणं आहारं आहारेति २ संजमेणं तवसा विहरति, समणे भगवं महावीरे म अण्णया कयाइ काकंदीए णगरीतो सहसंबवणातो उजाणातो पडिणिवस्वमति २ बहिया जणवयविहारं वि हरति, ततेणं से धन्ने अणगारे समणस्स भ० महावीरस्स तहारूवाणं घेराणं अंतिते सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजति संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं से धन्ने अणगारे तेणं ओरालेणं जहा | खंदतो जाव मुहुय चिट्ठति, धन्नस्स णं अणगारस्स पादाणं अयमेयास्वेतवरूवलायन्ने होत्या, से जहाणामते | १ अदीनः अदीनाकारयुक्त इत्यर्थः 'अविमनाः'अविगतचित्ता अशून्यमना इत्यर्थः अकलुषः-क्रोधादिकालुष्यरहितत्वात् 'अविषादी' विषादवर्जितः 'अपरितन्तयोगी' अविश्रान्तसमाधिः 'जयणघडणजोगचरित्तेत्ति यतनं-प्राप्तेषु योगेषूद्यमकरणं घटनं च-अप्राप्तानां तेषां प्राप्त्यर्थं यः यतनघटनप्रधाना योगा:-संयमव्यापारा मनःप्रभृतयो वा यत्र तत्तथा तदेवंभूतं चरित्रं यस्य स तथा 'अहापज्जत्तत्ति यधापर्याप्त-यथालन्धमित्यर्थः समुदाणति भैक्ष्यं. २ 'बिलमिवे'त्यादि, अस्यायमर्थः-यथा बिले पन्नगः पार्श्वसंस्पर्शनात्मानं प्रवेशयति तथाऽयमाहारं मुखेनासंस्पृशन्निव राग-| | विरहितत्वादाहारयति-अभ्यवहरतीति, ३ 'तवरूवलावणे' त्ति तपसा-करणभूतेन रूपस्य-आकारस्य लावण्यं-सौन्दर्य तपोरूपलावण्यमभूत् ।। दीप अनुक्रम [७-१०] A mamurary.org धन्य अनगार - कथा ~ 10~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्तिः ) वर्ग: [3], ---------------------- अध्ययनं [१] ------------------- मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत गाथा अन्तकर- संकछल्लीति वा कट्ठपाउयाति वा जरग्गओवाहणाति वा, एवामेव धन्नस्स अणगारस्स पाया सुका जिम्मंसा ३ वर्ग शाः पतिः अविचम्मरित्ताए पण्णायंतिणो चेवणं मंससोणियत्ताए, धन्नस्स णं अणगारस्स पायंगुलियाणं अयमेयारूवे०ीधन्यान से जहाणामते कलसंगलियाति वा मुग्गसं माससंगलियाति वा तरुणिया छिन्ना उण्हे दिन्ना सुका समाणी गारव. ॥४॥ मिलायमाणी २ चिट्ठति, एवामेव धन्नस्स पायंगुलियातो सुक्कातो जाव सोणियत्ताते, धन्नस्स जंघाणं अयमे यारूवे० से जहा कोकजंघाति वा कंकजंघाति वा देणियालियाजंघाति वा जाव णो सोणियत्साए, धन्नस्स जाणूणं अयमेयारूवे से जहा० कालिपोरेति वामयूरपोरेति वा देणियालियापोरेति वा एवं जाव सोणियत्ताए. धण्णस्स उरुस्स० जहा नामते सामकरेल्लेति वा बोरीकरील्लेति वा सल्लति० सामलि० तरुणिते उण्हे जाव HI १ शुष्कछली- शुष्कत्वक् काष्ठस्य सत्का पादुका काष्ठपादुका प्रतीता 'जरगतोवाहण'त्ति जरत्का-जरती जीर्णेत्यर्थः सा चासाबुपानचेति जर8 कोपानत् २ 'अद्विचम्मठिरताए ति अस्थीनि च चर्म च शिराश्च-नायवो विद्यन्ते ययोस्ती तथा तद्भावस्तत्ता तया अस्थिचम्मंशिरावतया प्रज्ञायेते लायत पादावेताविति न पुनासशोणितवत्तया तयोः क्षीणत्वादिति ३ 'अयमेयारूले तबरूवलावण्णे होत्या से जहानामए'त्ति प्रत्यालापकं द्रष्टव्यं, Mकति कलायो धान्यविशेषस्तेषां 'संगलिय'त्ति फलिका मुद्गा माषाश्च प्रतीताः 'तरुणय'त्ति अमिनवा कोमलेत्यर्थः । 'मिलायमाणि'त्ति म्लायन्ती म्लानिमुपगता ५ 'काकजंघा इव'ति काकजहा-वनस्पतिविशेषः, सा हि परिदृश्यमानस्नायुका स्थूलसन्धिस्थाना च भवतीति तया जल्योरुपमानम् . | अथवा काको-वायसः, कङ्कटेणिकालिके च पक्षिविशेषौ तज्जका च स्वभावतो निर्मासशोणिता भवतीति ताम्यामुपमानमिहोक्तमिति कालिपोरित्ति 18| काकजसावनस्पतिविशेषपर्व मयूरवेणिकाकालिके पक्षिविशेषौ अथवा ढेणिकाल:-तिः ७ 'बोरीकरीलेति' बदरी-कर्कन्धूः करीर-प्रत्यन कन्दलं शल्यकी शाल्मली च वृक्षविशेषौ पाठान्तरेण 'सामकरिल्लेइ वा तत्र च श्यामा-प्रियङ्गुः. दीप अनुक्रम [७-१०] %25% DEmlunarary orm REairanXI IDI धन्य अनगार - कथा ~ 11~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [3], --------------------- अध्ययनं [१] -------------------- मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सुत्राक गाथा चिट्ठति एवामेव धनरस उरू जाव सोणियसाए, धन्नस्स कडिपत्सस्स इमेयारूवे० से जहा. उट्टपादेति वा जरगग-1 पादेति वा जाय सोणियसाए, धनस्स उदरभायणस्स इमे० से जहा० सुक्कदिएति वा भजणयकभल्लेति वा कट्ठकोलंबएति घा, एषामेव उदरं सुकं, धन पांसुलियकडयाणं इमे से जहा. थासयावलीति वा पाणावलीति वा मुंडावलीति वा, धन्नस्स पिट्टिकरंडयाणं अयमेयासवे से जहा. कन्नावलीति वा गोलावलीति वा १ 'कडिपत्तस्से'त्ति कटी एव पत्रं--प्रतलत्वेनावयवद्वयरूपतया च सर्गादिवृक्षदलं कटीपत्रं तस्य, पाठान्तरेण कटीपट्टस्य, उष्ट्पाद इति वा, करभचरणो हि भागद्वयरूपोऽनुन्नतश्चाधस्तात् भवतीति तेन पुतप्रदेशस्य साम्य, 'जरम्गपाएति' जरद्वपादः 'उदरभायणस्स'त्ति उदरमेव भाजन |क्षाममध्यभागतया पिठरायुदरभाजनं तस्य २ 'सुक्कदिएति वा' इति शुष्कः-शोषमुपगतो इतिः-चर्ममयजलभाजनविशेषः 'भजणयकभल्ले'त्ति चणकादीनां भर्जन-पाकविशेषापादनं तदर्थ गत्कभल्ल-कपाल घटादिकपरं तत्तथा 'कट्ठकोलंबएति' शाखिशाखानामवनतम भाजन वा कोलम्ब | उच्यते काष्ठस्य कोलम्ब इव काष्ठकोलम्बः परिदृश्यमानावनतहृदयास्थिकत्वात् 'एवामेवोदरं सुकं लुक्वं निर्मस'मित्यादि पूर्ववत् , 'पांसुलिकडयाणं ति पांशुलिकाः-पार्थास्थीनि तासां कटकौ-कटौ पांशुलिकाकटौ तयोः ३ 'थासयावलीइव'चि स्थासका-दर्पणाकृतयः स्फुरकादिषु भवन्ति तेषामुपर्युपरिस्थितानामावली--पद्धतिः स्थासकावली देवकुलामलसारकाकृतिरितिभावः, 'पाणावली इव'त्ति पाणशब्देन भाजनविशेष उच्यते तेषामावली या सा तथा 'मुंडाबलि'त्ति वा मुण्डा:-स्थाणुविशेषा येषु महिषीवाटादौ परिघाः परिक्षिप्यन्ते तेषां निरंतरव्यवस्थितानामावली-1 | पतियो सा तथा, तथा 'पिट्टकरंडयाणं ति पृष्ठवंशाभ्युन्नतप्रदेशानः ४ 'कन्नावली'ति कर्णा मुकुटादीनां तेषामावली-संहति सा तथा गोलावली'ति गोलका-वर्तुलाः पापाणादिमयाः 'बट्टय'त्ति वर्तका जत्वादिमया बालरमणकविशेषाः 'एवामेवे' त्यादि पूर्ववत्. दीप अनुक्रम [७-१०] SaintaintiniA धन्य अनगार - कथा ~ 12 ~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [3], ---------------------- अध्ययनं [१] ------------------- मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत ३ वर्ग धन्यानगारव. % % * * गाथा * अन्तकद्द-1वद्याथलीति वा, एवामेव०, धन्नस्स उरैकडयस्स अय० से जहा चित्तकहरेति वा वियणपत्तेत्ति वा तालियंट- शाः वृत्तिः पत्तेति वा एचामेव०, धनस्स बाहाणं० से जहाणामते सेमिसंगलियाति वा वाहायासंगलियाति वा अगस्थि- यसंगलियाति वा एवामेव०, धन्नस्स हत्थाणं० से जहा सुक्कगणियाति वा वडपत्तेति वा पलासपत्तेति वा. एवमेव०, धनस्स हत्थंगुलियाणं० से जहा० कलायसंगलियाति वा मुग्ग० मास० तरुणिया छिन्ना आयवे दिना| सुक्का समाणी एवामेव०, धन्नस्स गीवाए से जहा० करगगीवाति वा कुंडियागीवाति वा उच्चट्ठवणतेति वा एवामेव०, धन्नस्सण हेणुआए से जहा. लाउयफलेति वा हकुवफलेति वा अंबगहियाति वा एवामेव०, धनस्स, उट्ठाणं से जहा सुफजलोयाति वा सिलेसगुलियाति वा अलत्तगगुलियाति वा एवामेव०, धण्णस्स जिम्भाए018 १'उरकडयस्स'त्ति उरो-हृदयं तदेव कटकमुरःकटकं तस्य 'चित्तकहरेइ वत्ति इह चित्तशब्देन किलिक्षादिकं वस्तु किश्चिदुच्यते तस्य कई-15 | खण्डं तथा 'वीपणपत्ते'त्ति व्यजनक-वंशादिदलमयं वायूदीरणं तदेव पत्रमिव पत्रं व्यजनपत्रं 'तालियंटपत्तेति ति तालगृन्तपत्र-व्यजनपत्रविशेषः.* एभिश्चोपमानमुरसः प्रतलतयेति २ 'समिसंगलिय'त्ति शमी-वृक्षविशेषस्तस्य सङ्गलिका-फलिका, एवं बाहाया अगस्थिओ य वृक्षविशेषाविति३ 'मुक्कन्छग-18 Mणिय'त्ति छगणिया-गोमयप्रतरः वटपत्रपलाशपत्रे प्रतीते ४ 'करगीवाइ बत्ति वार्घटिकाग्रीवा कुण्डिका-आलुका उच्चत्यवणएइ बत्ति उच्चस्थापनकम् एभित्रिभिरुपमानैत्रीवायाः कशतोक्केति, ५ 'हणुयाए'ति चिबुकस्य 'लाउयफलेइ बत्ति अलाबुफलं-तुम्बिनीफलं-'हकुवफले'त्ति हकुवी-वनस्पतिविशेषस्तस्य फलमिति 'अंबगद्वियाइ बत्ति आम्रकस्य-फलविशेषस्वास्थीनि-मज्जा आतपे दत्तानि शुष्कानीत्यादि सर्वमनुसतव्यं ६ 'मुक्कजलोयाइ बत्ति जलौका-दीन्द्रियजलजन्तुविशेषः 'सिलेसगुलिय'ति श्लेष्मणो गुटिका 'अलत्तगुलिय'ति अलक्तको आधारसः, एतानि हि वस्तूनि । शुष्कानि विछायानि सङ्कोचवन्ति भवन्तीति ओष्ठोपमानतयोक्तानि, जिवावर्णकः प्रतीतः, 'अंबगपेसियत्ति आनं-प्रतीतं तस्य पेशिका-खण्डम् 14 MEaratinni दीप अनुक्रम [७-१०] ॥५॥ Pranaamvam umony INEmiumurary.org धन्य अनगार - कथा ~ 13~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) ཌྜཱ + པལླཱཡྻ अनुक्रम [७-१०] “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र - ९ ( मूलं + वृत्तिः) वर्ग: [३], अध्ययनं [१] मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ०९], अंग सूत्र - [ ०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः धन्य अनगार कथा से जहा० वडपतेइ वा पलासपत्तेइ वा सागपत्तेति वा एवामेव०, धन्नस्स नासाए० से जहा० अंबगपेसियाति वा अंबाडगपेसियाति वा मातुलुंगपेसियाति वा तरुणिया एवामेव०, धन्नस्स अच्छीणं से जहा बीणाछिट्टेति वा बद्धीसगछिङ्केति वा वाभातियतारिंगा इ वा एवामेव०, धन्नस्स कण्णाणं० से जहा० मूलाछल्लियाति वा वालुक० कारेल्लयच्छल्लियाति वा एवामेव०, धन्नस्स सीसस्स से जहा० तरुणगलाउएति वा तरुणगएलालुयत्ति वा सिन्हालपति वा तरुणए जाव चिट्ठति एवामेव०, धन्नरस अणगारस्स सीसं सुकं लुक्खं निम्मंसं अद्वि चम्मच्छरसाए पन्नायति नो चेव णं मंससोणियत्ताए, एवं सव्वत्थ, नवरं उदरभाषणकन्नजीहा उट्ठा एएसिं १ अम्बालक - फलविशेषो मातुलुङ्ग - बीजपूरकमिति, 'वीणा खड्डे' ति वीणारन्धं 'बद्धीसगच्छिदेइ व' त्ति वद्धीसको वाद्यविशेष: 'पासाइयतारिगाइव 'त्ति प्रभातसमये तारिका - ज्योतिः ऋक्षमित्यर्थः सा हि स्तोकतेजोमयी भवतीति तया लोचनमुपमितमिति पाठान्तरेण प्राभातिकतारा इति २ 'मूलाछली इ व'त्ति मूलकः - कन्दविशेषस्तस्य छली-स्वक् सा हि प्रतला भवतीति तयोरुपमानं कर्णयोः कृतं, 'वालुंकछली' बालक चिर्मटं 'कारेल्लाछली' ति कारेलकं बली विशेषफलमिति, कचिच्च नीतिपदं दृश्यते न चावगम्यते, 'धष्णस्स सीस' ति 'घेण्णस्स णं अणगारस्स सीसस्त अयमेयारूवे तवरून लावण्णे होत्या' 'तरुणगलाउए बत्ति तरुणकं - कोमलं 'छाउयं' अलाबु तुम्बकमित्यर्थः ' तरुणगएलालय'ति आलुकं - कन्दविशेषः तच्चानेकप्रकारमिति विशेष परिप्रहार्थमेळा लुक मित्युक्तं 'सिम्हाएइ व 'त्ति सिस्तालकं फलविशेषो यत्सेफालकमिति लोके प्रतीतं तच तरुणं यावत्करणात् 'छिन्नमुण्हे दिष्णं सुक्कं समाणं मिलायमाणं चिट्ठइ' त्ति दृश्यम् 'एव 'ति 'एवामेव धण्णस्त अणगारस्स सीसं सुकं लक्खं निम्मंसं अडिचम्म छिरत्ताए पन्नायति नो चेव णं मंससोणियत्ताए' त्ति, अयमप्यालापकः प्रत्यङ्गवर्णके दृश्यो नवर मुदरभाजन कर्णजिौष्ठवर्णकेष्वस्तीति पदं न भप्यते अपि तु 'चम्म छिराए पण्णाय ' त्ति वक्तव्यमिति पादाभ्यामारभ्य मस्तकं यावद्वर्णितो धन्यकमुनिः । पुनस्तथैव प्रकारान्तरेण तं वर्णयन्नाह--- ~14~ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्तिः ) वर्ग: [3], --------------------- अध्ययनं [१] -------------------- मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत गाथा अन्तकह- भट्ठीण भन्नति चम्मच्छिरसाए पण्णायइत्ति भन्नति, धन्ने णं अणगारे णं सुक्केणं भुक्खेणं पातजंघोरुणा वि-121३वों शाः वृत्तिः1 गततडिकरालेणं कडिकडाहेणं पिट्टमवस्सिएणं उदरभायणेणं जोइजमाणेहिं पांसुलिकडएहिं अक्खमुत्तमालाति वा गणितमालाति वा गणेवमाणेहिं पिट्टिकरंडगसंधीहिं गंगातरगंभूएणं उरकडगदेसभाएणं सुक्क गारव. सप्पसमाणाहिं बाहाहिं सिदिलकडालीविव चलंतेहि य अग्गहत्थेहिं कंपणवातिओविव वेवमाणीए सीस धन्ने णमित्यादि, धन्योऽनगारो शंकारौ वाक्यालकारार्थी किंभूतः!-शुष्केण मांसाद्यभावात् 'भुखणति बुभुक्षायोगात् लक्षण पादजलोरुणाऽवयवजातेन लक्षित इति गम्यते, समाहारद्वन्द्वश्चायमिति, तथा 'विगयतडिकरालेणं कडिकडाहेण ति विकृतं-बीभरत तच | तत्तटी'-पार्थेषु कराल-उन्नतं क्षीणमांसतयोन्नतास्थिकत्वात् विकटतटीकरालं तेन कटी एव कटाई-कच्छपपृष्ठं भाजनविशेषो वा कटीकटाहं | तेन लक्षित इति गम्यते, एवं सर्वशापि, 'पिढमवस्तिएणं ति पृष्ठ-पश्चाद्भागमवाश्रितेन-तत्र लग्नेन यकृतप्पीहादीनामपि क्षीणत्वात् , उदरमेव भाजनं क्षाममध्यत्वात् उदरभाजनं तेन 'जोइजमाणेहिति निर्मासतया दृश्यमानैः 'पांसुलिकडएहि ति पास्थिकटकैः, कटकता च तेषां । वलयाकारत्वात् 'मक्खसुत्तमालेतिबत्ति अक्षाः फलविशेषास्तेषां सम्बन्धिनी सूत्रप्रतिबद्धा माला-आवली या सा तथा सैव गण्यमाननिर्मासतयाऽतिव्यक्तत्वात् , पृष्ठकरण्डकसन्धिमिरिति प्रतीतं, तथा गङ्गातरङ्गभूतेन-गङ्गाकल्लोलकल्पेन परिदृश्यमानास्थिकत्वात् उदर एव कटकस्य-शदलमयस्य देशभागो-विभाग इति वाक्यमतस्तेन, तथा शुष्कसर्पसमानाभ्यां बाहुभ्यां सिढिलकडालीविव' कटालिका-अश्वानां ॥५॥ मुखसंयमनोपकरणविशेषो लोहमयस्तद्वलम्बमानाभ्यामग्रहस्ताभ्यां बाहोरप्रभूताभ्यां शयाभ्यामित्यर्थः 'कंपणवाइओ इवत्ति' कम्पनबातिकः कम्पनचायुरोगवान् 'वेवमाणीए'ति वेपमानया कम्पमानया शीर्षव्या-शिरःकटिकया लक्षितः प्रम्लानबदनफमलः प्रतीतम् . REscalinanda दीप अनुक्रम [७-१०] For Paws Huawrary.org धन्य अनगार - कथा ~ 15~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [३], --------------------- अध्ययनं [१] -------------------- मूलं [३, ४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३, ४] गाथा घडीए पब्वादवदणकमले उम्भडघडामुहे उन्बुडणयणकोसे जीवं जीवेणं गच्छति जीवं जीवेणं चिट्ठति भास भासिस्सामीति गिलाति ३ से जहा णामते इंगालसगडियाति वा जहा खंदओ तहा जाव हुयासणे इव भासरासिपलिच्छन्ने तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए उवसोभेमाणे २चिट्ठति । (सूत्रं ३) तेणं कालेणं २ रायगिहे गरे गुणसिलए चेतिते सेणिए राया, तेणं कालेणं२ समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा णिग्गया सेणिते नि० धम्मक० परिसा पडिगया, तते णं से सेणिए राया समणस्स० ३ अंतिए धम्म सोचा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति २ एवं वयासी-इमासि णं भंते ! इंदभूतिपामोक्खाणं चोदसण्हं समणसाहस्सीणं कतिरे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिजरतराए चेव?, एवं खलु सेणिया! इमासिं इंदभूतिपामोक्खाणं चोदसण्हं समणसाहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुकरकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव, से केण?णं भंते! एवं वुचति इमार्सि जाव साहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिजर०, एवं खलु " सेणिया! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नाम नगरी होत्था उप्पिं पासायवडिंसए विहरति, तते णं अहं अन्नया कदाति पुब्वाणुपुवीए चरमाणे गामाणुगामं दृतिजमाणे जेणेव काकंदी णगरी जेणेव सहसंबवणे जाणे तेणेव उवागते अहापडिरूवं उग्गहं उ०२ संजमे जाव विहरामि, परिसा निग्गता, तहेव जाव प उन्भडघडामुहे'त्ति उद्भट-विकरालं क्षीणग्रायदशनच्छदत्वाद् घटकस्येव मुखं यस्य स तथा 'उबुङनयणकोसे'त्ति 'उम्बुइत्ति अन्तः प्रदेशितौ नयनकोशौ-लोचनकोशको यस्य स तथा 'जीवं जीवेण गच्छति' जीववीर्येण नतु शरीरवीर्येणेत्यर्थः, शेषमन्तकृतदशाङ्गवदिति ॥ 4%A3-24-62 दीप अनुक्रम [७-१०, ११] Humanirary.org धन्य अनगार - कथा ~16~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) “अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [१], ------------------- अध्ययनं [१] ------------------- मूलं [४, ५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ३ वर्ग धन्यान प्रत सूत्रांक [४, ५] तानतिर्ध दीप बहते जाव बिलमिव जाव आहारेति, धपणस्स णं अणगारस्स पादाणं सरीरवन्नओ सब्बो जाव उपसोभेमाणे RI. शाः वृत्तिः रचिट्ठति, से तेणढणं सेणिया! एवं बुचति-इमासिं चउदसण्हं साहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए महा |४|| निवरतराए चेव, तते णं से सेणिए राया समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतिए एयमह सोचा णिसम्म हट-IA तुट्ठ० समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति र बंदति नमसति २ जेणेव धन्ने अणगारे - तेणेव उवागच्छति २ धन्नं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिणफ्याहिणं करेति २ वदति णमंसति २ एवं वयासी-ध श्रेणिकछण्णेऽसि णं तुमं देवाणु सुपुण्णे सुकयत्थे कयलक्खणे सुलझे र्ण देवाणुप्पिया! तव माणुस्सए जम्मजीविय-2 फिलेत्तिकद्दु बंदति णमंसति २ जेणेव समणे० तेणेव उवागच्छति र समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वदति णम न्यस मू.४ सति २ जामेव दिसं पाउन्भूते तामेव दिसि पडिगए (सूत्रं ४)तएणं तस्स घण्णस्स अगगारस्स अन्नया क-16 संलेखनायाति पुब्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं० इमेयारूवे अभत्थिते ५ एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं जहा खंदओ राधने सू.५ तिहेब चिंता भापुच्छणं थेरेहिं सद्धिं विउलं दुरूहंति मासिया सलेहणा नवमास परियातो जाब कालमासे कालं किच्चा उड़े चंदिमजाव णव य मेविजविमाणपत्थडे इंदूरं वीतीवतित्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्साए उनबन्ने, थेरा तहेव उयरंति जाव इमे से आयारभंडए, भंतेत्ति भगवं गोतमे तहेच पुच्छति जहा खंदयस्स |M भगवं वागरेति जाव सम्वट्ठसिद्धे विमाणे उबवण्णे । धण्णस्स णं भंते ! देवरस केवतियं कालं ठिती पपणत्ता, गोतमा ! तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता । से णं भंते ! ततो देवलोगाओ कहिं गच्छिहिति कहिं उववजि अनुक्रम [११,१२] Saintairatininal FuPranaamsamumony Homamarary.org धन्य अनगार - कथा ~ 17~ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) प्रत सूत्रांक [५, ६] दीप अनुक्रम [१२, १३] अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र - ९ ( मूलं + वृत्ति:) वर्ग: [३], अध्ययनं [१, २ १०] मूलं [५, ६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ०९], अंग सूत्र - [०९ ] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः हिति ?, गोपमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति ५ । तं एवं खलु अंबू । समणेणं जाव संपत्तेर्ण परमस्स अजायणस्स अयमट्ठे पत्तन्ते । (सूत्रं ५) पढमं अम्झयणं समत्तं ॥ जति णं भंते । उक्वेवओ एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कामंदीए नगरीए भक्षणामं सत्यवाही परिवसति अड्डा, तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुणक्वते णामं दारए होत्या अहीण० जाब सुरूवे पंचधातिपरिक्खित्ते जहा घण्णो तहा बत्तीस दाओ जाव उपिं पासायवडेंसए विहरति, तेणं कालेणं २ समोसरणं जहा धन्नो तहा सुणक्खतेऽवि णिग्गते जहा थावचापुत्तस्स तहा णिक्खमणं जाव अणगारे जाते ईरियासमिते जाब बंभयारी, तते यं से सुणक्खसे अणगारे जं चेव दिवसं समणस्स भगवतो म० अंतिते मुंडे जाव पव्वतिते तं चैव दिवसं अभिग्गहं तहेब जाब बिलमिव * आहारेति संजेमणं जाव विहरति बहिया जणवयविहारं विहरति एकारस अंगाहं अहिजति संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते गं से सुण० ओरालेणं जहा खंदतो तेणं कालेणं २ रायगिहे जगरे गुणसिलए चेतिए सेणिए राया सामी समोसढे परिसा णिग्गता राया णिग्गतो धम्मकहा राया पडिगओ परिसा पडि४ गता, तते णं तस्स सुणक्खत्तस्स अन्नया कयाति पुब्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजा० जहा संदयस्स बहू वासा परियातो गोतमपुच्छा तहेब कहेति जाव सव्वगसिद्धे घिमाणे देवे उववण्णे तेतीसं सागरोबसाई ढिली पण्णत्ता, से णं भंते० ! महाविदेहे सिज्झिहिति । एवं सुणक्खत्तगमेणं सेसावि अट्ठ भाणियव्वा, नवरं 5. आणुपुब्बीए दोन्नि रायगिहे दोन्नि साएए दोन्नि वाणियग्गामे नवमो हत्थिणपुरे दसमो रायगिहे नवण्हं भहाओ Education in ~18~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (०९) अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [३], ---------------------- अध्ययनं [२-१०] ------ ---------- मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: P प्रत सूत्रांक अन्तकद- जणणीओ नवण्हवि बत्तीसओ दाओ नवण्हं निक्खमणं थावच्चापुत्तस्स सरिसं वेहल्लस पिया करेति छम्मासा 81 ३ बगे शाः वृत्तिः वेहल्लते नवधण्णे सेसाणं वह वासा मासं संलेहणा सब्वट्ठसिद्धे महाविदेहे सिज्मणा एवं खलु जंबू! समणेणं धन्यानभगवता महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं लोगनाहेणं लोगप्पदीवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं ॥८॥ गोरख. सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मवरचाउरंतचक्रवट्टिणा अप्पडिहयवरनाणदंसणधरेणं जिणेणं जाणएणं बुद्धेणं बोहएणं मोकेणं मोयएणं तिनेणं तारयेणं सिवमयलमरुयमणतमक्खयमवावा | सुनक्षत्राहमपुणरावत्तयं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तबस्स वग्गरस अयमढे पन्नसे (सूत्र घाम.६ [५) अणुत्तरोववाइयदसातो समसातो॥ ॥ अणुत्तरोववाइयदसाणामं सुत्तं नवममंगं समतं ॥९॥ श्रीरस्तु ॥ प्रशस्तिष पं. १९२ ॥ अनुत्तरोपपातिकारूपनवमाङ्गप्रदेशविवरणं समाप्तमिति ॥ शब्दाः केचन नार्थतोऽत्र विदिताः केचित्तु पर्यायतः, सूत्रार्थानुगतेः सम्म भणतो यज्जातमागःपदम् । वृत्तावत्र तकत् जिनेश्वरवचोभाषाविधौ कोविदः, संशोध्यं विहितादरैर्जिनमतोपेक्षा यतो न क्षमा ॥ १ ॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्य, ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । द्वाविंशतिशतमिति, चतुर्णा वृत्तिसङ्ख्यया ॥ २ ॥ श्रीरस्तु ।। दीप अनुक्रम [१३] SC GASSES + इति श्रीमदभयदेवसूरिवर्यविहितवृत्तियुता अनुत्तरोपपातिकदशाः समाप्ताः॥ मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ९) "अनुत्तरोपपातिकदशा” परिसमाप्त: ~ 19~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः पज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च "अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्र” |मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः] / (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: “अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं वृत्ति:” नामेण परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of 'jain_e_library's' ~20M