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आगम
(०९)
“अनुत्तरोपपातिकदशा” - अंगसूत्र-९ (मूलं+वृत्ति:)
वर्ग: [१], ------------------------ अध्ययनं [१] ---------------------- मूलं [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०९], अंग सूत्र - [०९] "अनुत्तरोपपातिकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
दीप
वग्गा पन्नत्ता, जति णं. भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुसरोववाइपदसाणं ततो वग्गा वर्गे जाशाः वृत्तिः | पन्नत्ता पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता?, एवं खलु जंबू! समणेणं जाव।
ल्यध्य.१ संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं०-जालि १ मयालि २ उवयालि ३ पुरिससेणे ४ य वारिसेणे ५ य दीहदंते ६ य लट्ठदंते ७य वेहल्ले ८ वेहासे ९ अभये १०ति य कुमारे ॥ जइ णं भंते समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अणुसरोव० समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णते?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णगरे रिथिमियसमिद्धे गुणसिलए चेतिते सेणिए राया धारिणीदेवी सीहो सुमिणे जालीकुमारो जहा मेहो अट्ठलओ दाओ
जाव उप्पि पासा० विहरति, सामी समोसढे सेणिओ णिग्गओ जहा मेहो तहा जालीवि णिग्गतो तहेव || माणिक्खंतो जहा मेहो, एक्कारस अंगाई अहिज्जति, गुणरयणं तबोकम्म, एवं जा चेव खंदगवत्तब्वया सा चेच चिंतणा आपुच्छणा थेरेहिं सद्धिं विपुलं तहेव दुरूहति, नवरं सोलस वासाइं सामन्नपरियागं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उड्डे चंदिम सोहम्मीसाण जाव आरणहुए कप्पे नव य गेवेज्जे विमाणपत्थडे उहूं दूर वीतीवतित्सा विजयविमाणे देवत्ताए उबवणे, तते णं ते थेरा भग० जालिं अणगारं कालगयं जाणेत्ता ॥१॥ परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति २ पत्तचीवराइं गेहंति तहेब ओयरंति जाव इमे से आयारभंडए, भंते ! ति भगवं गोयमे जाव एवं बयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जालिनामं अणगारे पगति
अनुक्रम
[१]
Santaratmak
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Homlanetarayog
जालिकुमारस्य कथा
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