Book Title: Adarsha Hindi Sanskrit kosha Author(s): Ramsarup Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन प्रोफेसर विश्वबन्धु शास्त्री M. A., M. O. L., d' A. Kt. C. T. आदरणीय संचालक, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान संस्कृत भाषा का विशाल, सर्वतोमुख साहित्य हो, निःसंदेह, वह सर्वोत्तम बपौती है, जो प्राचीन भारत से नवभारत को मिली है। संस्कृत-भाषा अतीव चिरंजीविनी है, वस्तुतः, अमिट और अमर है। सहस्रों वर्ष पूर्व के हमारे पुरखा इसी देववाणी के द्वारा अपना सब वाग्व्यवहार चलाते थे। धीरे-धीरे फिर वह समय आया, जब शिक्षित जन ही इसका शुद्ध प्रयोग कर पाते थे और शेष-सर्व-साधारण लोग इसके अनेक विकृत रूपों का प्रयोग करने लगे थे। वही विकृत रूप, पोछे-पाली, प्राकृत तथा अपभ्रंश कहलाए और बोल-चाल एवं साहित्य-सृष्टि के समुन्नत माध्यम भी बने। परन्तु, उस समय भी, साधारण जनता भले ही शुद्ध संस्कृत न बोल सकती हो, वह, अवश्य, उसे समझ लेती थो। संस्कृत को वही अमिट छाप हमारी आधुनिक भारतीय भाषाओं पर भी पड़ी हुई है, जिसके कारण, हमारे आज के विभिन्न प्रादेशिक वाग्व्यवहार के अन्दर ४०-५० से लेकर ८०-६० प्रतिशत तक, मानो, स्वयं संस्कृत-भाषा ही बोली और लिखी जा रही है। शुद्ध संस्कृत के माध्यम से होने वाली साहित्य-सृष्टि तो कभी रुको ही नहीं । प्राचीन तथा मध्यकालीन युगों की बात तो अलग रही, आज के युग में भी संस्कृत-भाषा के सभी प्रकार के साहित्य को सृष्टि बराबर चालू है। आशा प्रतीत होती है कि देश को स्वतन्त्रता के साक्षात् फलस्वरूप राष्ट्रीय चेतना इस ओर प्रतिदिन अधिकाधिक जागरूक होती जायेगी। यह प्रसन्नता की बात है कि देश-भर में जहाँ-तहाँ अभियुक्त जन इस समय संस्कृताध्ययन के रङ्ग-ढङ्ग को सरलतर बनाने के प्रयत्न में लग रहे हैं। एतदर्थ कई प्रकार के अभिनव शिक्षण-क्रमों का आविष्कार तथा साधन-भूत सहायक साहित्य का निर्माण किया जा रहा है। प्रस्तुत 'आदर्श-हिन्दी-संस्कृत-कोश' उक्त सहायक साहित्य के ही अन्तर्गत एक उत्तम रचना है। इसके सुयोग्य लेखक ने इसे सब प्रकार से उपयोगो बनाने के लिए सफल प्रयास किया है। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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