Book Title: Yuvako se Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 4
________________ धर्म और समाज स्थान पाता है, और उस समय इन त्यागी गुरुओंकी संयमकी हिमायतमें कितना विवेक है, यह साफ मालूम पड़ जाता है । बहुतसे त्यागी गुरु और उनकी छायामें रहनेवाले गृहस्थ जिस समय कहते हैं कि हमें देश या राष्ट्रसे क्या मतलब, हमें तो अपना धर्म सँभालना चाहिए, राज्यके विरुद्ध हम लोग कैसे कुछ कह सकते या कर सकते हैं, उस समय निवृत्ति और प्रवृत्तिमें कितना असामंजस्य पैदा हो गया है, यह मालूम हो जाता है । इस तरहकी विचार-सरणीवाले देशको परतंत्रताकी बेड़ीसे मुक्ति मिलना असंभव है। वे भूल जाते हैं कि अगर देश आर्थिक, औद्योगिक और राजनीतिक दृष्टिसे परतंत्र है, तो हम भी उसी बेडीमें बँधे हुए हैं। चिरकालका अभ्यास हो जानेसे या स्थूल दृष्टिके कारण अगर गुलामी गुलामी प्रतीत नहीं होती, तो इससे उसका प्रभाव कम नहीं हो जाता । इन अदूरदर्शी व्यक्तियोंको इसका भी विचार करना चाहिए कि विश्वव्यापी स्वतंत्रताकी भावनावालोंका वर्ग छोटा होता हुआ भी अपने दृढ निश्चयसे उसी दिशाकी ओर बढ़ रहा है। धर्म, पंथ और जातिके भेद-भावसे रहित सहस्रों ही नहीं बल्कि लाखों युवक युवतियाँ उनका साथ दे रही हैं । जल्दी या देरसे यह तंत्र सफल होगा ही। इस सफलतामें भाग लेनेसे अगर जैन-समाज वंचित न रहना चाहता हो और उसे स्वतंत्रताके सुन्दर फलोंका आस्वाद अच्छा लगता हो, तो उसे परतंत्रताकी बेड़ियाँ काटनेमें इच्छा और बुद्धिपूर्वक धर्म समझकर अपना हिस्सा अदा करना चाहिए । मेरी यह दृढ मान्यता है कि जैन युवकको अपने जीवन-तंत्रको स्वयं ही निवृत्तिलक्षी प्रवृत्तिवाला बनाना चाहिए । इसमें प्राचीन उत्तराधिकारकी रक्षा और नवीन परिस्थितिका सामञ्जस्य करनेवाले तत्त्वोंका सम्मिश्रण है। निवृत्तिको शुद्ध निवृत्ति रखनेका एक ही नियम है, और वह यह कि निवृत्तिके साथ साथ जीवनको सुदृढ बनाये रखनेके लिए आवश्यक और अनिवार्य प्रवृत्तिका भार भी अपने ऊपर लिया जाय । दूसरोंकी प्रवृत्तिद्वारा प्राप्त फलके आस्वादनका त्याग करना चाहिए । इसी प्रकार प्रवृत्तिको स्वीकार कर अगर जीवन शुद्ध रखना है तो प्रवृत्तिसे प्राप्त फलका आत्मभोक्ता न होकर समूहगामी होना चाहिए। अगर यह होने लगे तो प्राप्त साधनोंका और सुविधाओंका वैयक्तिक भोगमें परिणमन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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