Book Title: Yugpravarttaka Krantikari Acharya Amarsinhji Vyaktitva aur krutitva
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ 106 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्य : अष्टम खण्ड 20 21 18 यदा नाऱ्यावुपेयातां, वृषस्वन्त्यो कथञ्चन / मुञ्चन्त्यो शुक्रमन्योन्यमनास्थिस्तत्र जायते // 1 // ऋतुस्नाता तु या नारी, स्वप्ने मैथुनमावहते / आर्तवं वायुरादाय, कुक्षौ गर्भं करोति हि // 2 // मासि मासि विवर्धेत, गभिण्या गर्भलक्षणम् / कलंलं जायते तस्याः वजितं पैतृकगुणः // 3 // -सुश्रुत संहिता चत्तारि मणुस्सीगभा पं० तं० इत्थित्ताए पुरिसत्ताए, णपुंसगत्ताए बिंबत्ताए। अधसुक्कं बहु ओयं, इत्थी तत्थप्पजायइ अप्पओयं बहूसुक्कं पुरिसो तत्थ जायइ // दोहंपि रत्तसुक्काणं तुल्लभावे नपुंसओ इत्थीओतसएमाओगे, बिम्बं तत्थप्पजायई / / 'स्थानाङ्ग-पृ० 512-513 आचार्य अमोलक ऋषि Glimpses of World Religion--Charles Dickens, Jaico Publishing House, Bombay, pp. 201. 202-203. "बिस्मिल्लाह रहमानुर्रहीम"-कुरान 1-1. 22 Towards Understanding Islam-Sayyid Abulatt'la Mamdudi, pp. 186-187 / 23 "फला तज अलु बुतून मका वरक्त ह्य बतात / " 24 व मन् अहया हा फकअन्नमा अान्नास जमीअनः / कुरान श. 5/35 25 दशवकालिक 6/20 / 26 अस्थि एरिसो पडिबंधो / सव्व जीवाणं सव्वलोए / -प्रश्नव्याकरण 1/5 27 इच्छा हु आगास समा अणंतिया। -उत्तराध्ययन 6/48 28 कामे कमाही कमियं खु दुक्खं / -दशकालिक 2/5 26 वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परत्था / --प्रश्नव्याकरण 1/5 30 उत्तराध्ययन 26/23 / 31 निशीथभाग्य गाथा 1360 भाग 2, पृष्ठ 681 / गोयमा ! जाहे णं सक्के देविदे देवराया सुहुमकायं अणिज्जूहित्ताणं भासं भासति ताहेणं सक्के देविदे देवराया सावज्ज भासं भासइ जाहेणं सक्के देविदे देवराया सुहमकायं णिज्जूहिताणं भासं भासइ ताहे सक्के देविदे देवराया असावज्ज भासं भासइ-श्री व्याख्या-प्रज्ञप्तौ षोडश शतकस्य द्वितीयोद्देशे। कन्नेट्ठियाए व मुहणंतगेण वा विणा / दरियं पडिक्कमे मिच्छुक्कडं पुरिमड्ढं // -महानिशीथ सूत्र अ. 7 34 तथा संपातिमा सत्त्वाः सूक्ष्मा च व्यजपनोऽपरे / तेषां रक्षानिमित्तं च विज्ञेयो मुखवस्त्रिका / / ---योगशास्त्र हिन्दी भा. पृ० 260 35 ज्ञातासूत्र अध्ययन १४वाँ / 36 निरयावलिका। 37 भगवतीसूत्र, शतक 8, उद्देशक 33 / 38 हस्ते पात्रं दधानाश्च, तुण्डे बस्त्रस्य धारकाः / मलिनान्येव वासांसि, धारयन्त्यल्पभाषिणः / / -शि० पु० ज्ञान संहिता 36 श्रीमाल पुराण अध्याय 7-33 / 'साम्भोगिक' यह जैन परंपरा का एक पारिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ है आहार, आदि तथा अन्य वस्तुएँ एक सन्त का दूसरे सन्त को आदान-प्रदान करना, यह संभोग कहलाता है। जैन परम्परा में एक दूसरे के साथ प्रदान की जाने वाली वस्तुएँ बारह प्रकार की मानी गयी हैं और उनका परस्पर आदान-प्रदान ही साम्भोगिक सम्बन्ध कहा जाता है। 32 गोय . 40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18