Book Title: Yugpravarttaka Krantikari Acharya Amarsinhji Vyaktitva aur krutitva
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 17
________________ युगप्रवर्तक क्रान्तिकारी आचार्यश्री अमरसिहजी महाराज व्यक्तित्व और कृतित्व किन्तु यह सब कुछ कैसे हो गया यह समझ में नहीं आ रहा था। आचार्यश्री की अर्थी के साथ लड़खड़ाते हुए कदमों से लोग चल रहे थे । उनके अवरुद्ध कण्ठों से एक ही स्वर निकल रहा था जीवन के उपवन में आये, आकर फिर क्यों लौट चले । मधुर प्रेम की बीन बजाकर, अब अपना मुँह मोड़ चले ॥ किन्तु सुनने वाला तो बहुत दूर चला गया था, जहाँ हजारों कण्ठों का आर्तनाद भी पहुँच नहीं सकता। शिव जा चुका था, शव में देखने और सुनने की कहाँ शक्ति थी ? आचार्यश्री के अन्तिम पार्थिव शरीर को देखने के लिए सभी व्याकुल थे, देखते ही देखते चन्दन की लकड़ियों की आग ने उनके पार्थिव शरीर को जलाकर नष्ट कर दिया । १ नृप अनंगपाल बावीसमा बत्तीस लक्षण तास । संवत् जहाँ तो सई निडोत्तर (१०२) वर्ष मीत सुप्रकाश ॥ गुरुवार दसमी दिवस उत्तम तह आषाढ़ मास । दिल्ली नगर करि गढी किल्ली कहे सो गढ़के जब छखेडी उतपत्ति उस विमल विभूति के वियोग ने समाज को अनाथ बना दिया। थे कि ये हमारे बीच में नहीं हैं। उनका भौतिक शरीर भले ही नष्ट हो और आज भी जीवित हैं । आचार्य प्रवर का जीवन प्रारम्भ से ही चमकते हुए नगीने की तरह था और अन्त तक वे उसी प्रकार चमकते रहे । वे स्थानकवासी समाज के एक ज्योतिर्मय स्तम्भ थे । उनका जीवन पवित्र था, विचार उदात्त थे; और आचार निर्मल था। उन्होंने जैन शासन की महान् प्रभावना की थी । सन्दर्भ एवं सन्दर्भ-नवल कवि किसनदास ।। गड तह वेर । सो वह हुई किल्ली वहाँ गाडी भई ढिल्ली फेर ॥ २ संवत् सात सौ तीन दिल्ली तुअर बसाई अनंगपाल तुअर । दिल्ली अथवा इन्द्रप्रस्थ, पृ० ६ । ५ राजपूताने का इतिहास, प्रथम जिल्द, पृ० २३४ । ६ इतिहास प्रवेश, भाग १, पृ० २२० । ७ ३ Cunnigham : The Archaeological Survey of India, p 140. ४ १०५ श्रद्धालुगण यह मानने के लिए प्रस्तुत नहीं गया था किन्तु यशः शरीर से वे जीवित थे ******** टॉड -- राजस्थान का इतिहास, पृ० २३० । ८ 1 ε नं० १ देखिए । "देशोऽस्ति हरियानाम्यो पृथिव्यां स्वर्गसंनिधः दिल्लीकाख्या पुरी तत्र तोमरंरस्ति निर्मिता ।" १० जैन तीर्थ सर्व संग्रह, ले० अंबालाल, पृ० ३५२ । ११ ले० वर्धमान सूरी । १२ उपदेशसार की टीका । १३ ले० जिनपाल उपाध्याय । १४ ले० जिनप्रभ सूरी, सं० जिनविजय, प्रकाशक सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई । १५ ले० विनयप्रभ उपाध्याय प्रका० 'जैन सत्य प्रकाश' अन्तर्गत अहमदाबाद | -पट्टावली समुच्चय, भाग १, पृ० २०५ Jain Education International १७ पंचहि ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धि असंवसमागीवि गन्न धरेश तं जहा इत्वी दुनिया दुष्णिसम्मा सुक्कपोगले अधिट्टिन्ता । २ सुक्कपोग्गलसंसिडे बसे यत्वे अन्तोजोणीए अणुपवेसेज्जा । १६ बहादुरशाह (१७०७-१२) औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बहादुरशाह गद्दी पर बैठा । बूढ़ा बहादुरशाह उदारहृदय और क्षमाशील मनुष्य था । इसलिए कभी-कभी इतिहासकार उसे शाह-ए-बेखबर कहा करते हैं । -भारतवर्ष का इतिहास ३ सई वा से सुक्कपोग्गल अणुपवेसेज्जा । ४ परो बासे सुक्कपोले अपवेसेा । ५ सीओदगवियडेणं वा से आयममाणीए सुक्कपोग्गला अणुपवेसेज्जा — इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेणं सद्धि असंवसमाणीवि गढभं धरेज्जा । -स्थानाङ्ग -स्थान ५, सूत्र १०३, For Private & Personal Use Only ALTU ran www.jainelibrary.org

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