Book Title: Yogvinshika Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Yashovijay Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 185
________________ 168 परिशिष्ट-१ NNNNNNNNNNNN INNNNNNNNANJANNNNNNNNNNNNNNNNN मुत्तूण लोगसन्नं, उठूण य साहूसमयसब्भाव / सम्म पयट्टियव्वं, बुहेणं मइनिउणबुद्धीए / / 16 / / एवं प्रथम स्थानादिविशुद्धिं कृत्वा इच्छादिपरिणतः क्रमेण स्वरूपाऽवलम्बनादि गृहीत्वा प्रीत्याद्यनुष्ठानेन असङ्गाऽनुष्ठाने गतः सर्वज्ञो भूत्वा अयोगीभूय सिद्धो भवति, अतः क्रमसमाराधना श्रेयस्करी / / 8 / / इति व्याख्यातं योगाष्टकम् / / 27 / /

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