Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 399
________________ ( २८२ ) पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगियों में औदारिक व वैक्रियिकशरीर की परिशातन व संघातन-परिशातन कृति तथा तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातन कृति युक्त जीव कितने हैं ? असंख्यात है। उक्त जीवों में आहारकशरीर के दो पद अर्थात् परिशातन व संघातन परिशातन कृति युक्त जीव संख्यात हैं ? काययोगियों की प्ररुपणा ओघ के समान है। विशेष इतना है कि इनमें तैजस और कार्मणशरीर की परिशातनकृति नहीं होती। [औदारिक काययोगियों में ] औदारिक शरीर को [ संघातन व ] संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इनमें औदारिकशरीर की परिशातन कृति व वैक्रियिकशरीर के तीनों पद युक्त जीव असंख्यात है। __ आहारकशरीर भी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यात है। औदारिकमिश्रकाययोगियों की प्ररुपणा सूक्ष्म एकेन्द्रियों के समान है। वैक्रियिककाययोगियों में दोनों पद युक्त जीव असंख्यात है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में कहना चाहिए । विशेषता इतनी है कि इनके संघातनकृति होती है। आहारककाययोगी और आहार कमिश्रकाययोगियों में तीन या चार पद युक्त जीव संख्यात है। कामंणकाययोगियों में तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इनमें औदारिक शरीर की परिशातनकृति युक्त जीव संख्यात हैं। .४९ उपपातयोग-परिणामयोग-एकान्तानुवृद्धियोग टीका-उववादजोगो णाम कत्थ होदि ? उप्पण्णपढमसमए चेव । केवडिओ तस्स कालो ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। उप्पण्णबिदियसमयप्पहुडि जाव सरीरपज्जत्तीए अप्पज्जत्तयवचरिमसमओ ताव एगंताणुवड्डिजोगो होदि । णवरि लद्धिअपज्जत्ताणमाउअबंधपाओग्गकाले सगजीविदतिभागे परिणामजोगो होदि। हेट्ठा एगंताणुवड्डिजोगो चेव। लद्धिअपज्जत्ताणमाउअबंधकाले चेव परिणामजोगो होदि त्ति के वि भणति । तण्ण घड़दे, परिणामजोगे टिदस्स अपत्तववादजोगस्स एयंताणुवड्डिजोगेण परिणामविरोहादो। एयंताणुवड्डिजोगकालो जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। पज्जत्तपढमसमयप्पहुडि उवरि सव्वत्थ परिणामजोगो चेव। णिवत्तिअपज्जत्ताणं णत्थिपरिणामजोगो। एवं जोगअप्पाबहुगं समत्तं । संपहि चउण्णमप्पाबहुगाणमेवाओ संदिट्ठीओxxx। एदेसु सुहुमणिगोदादिसण्णिपंचिदिया त्ति लद्धिअपज्जत्ताणं जहण्णउववादजोगा। सो जहण्णउववादजोगो कस्स होदि ? पढमसमयतम्भवत्थस्स विग्गहगदीए वट्टमाणस्स । सो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णण उक्कस्सेण य एगसमइओ। बिदियादिसु समएसु एगंताणुवडिजोगपउत्तीदो। सरीरगहीदे जोगो वड्डदि त्ति विग्गहगदीए सामित्तं विण जहण्णयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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