Book Title: Yoga ka Vigyaniya Swarup Author(s): Virendra Shekhawat Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 3
________________ योग का विज्ञानीय स्वरूप | 199 दो चरण हैं जिन्हें प्राथमिक अभ्यास, जिसमें प्राणायाम, ईश्वरप्रणिधान, पासनाभ्यास आदि हैं और द्वितीय क्रियायोग, जिसमें तप, स्वाध्याय व ईश्वरप्रणिधान का सम्मिलित प्रयोग होता है, प्रथम उपायों को जारी रखते हुए। इस प्रकार जब क्लेश ढीले हो जाते हैं तथा निरन्तर अभ्यास से धारणा, ध्यान और समाधि की अल्पकालिक क्षमता प्राप्त हो जाती है तो समाधि को अधिक गहन और दीर्घकालिक बनाते हए चित्तवत्तियों के पूर्णनिरोध की क्षमता होती है और क्लेश नष्ट हो जाते हैं। तत्पश्चात् निरन्तर अभ्यास से यह समाधि ही संस्कार निरोध भी सम्भव बनाती है। अतः अभ्यस्त और अनुभवी साधक के लिए समाधि की क्षमता, गहनता और दीर्घकालता सर्वोच्च अवस्था को उपलब्ध करने हेतु महत्त्वपूर्ण है। 4. जहाँ पातञ्जलि इस उत्थान-प्रक्रिया को बुद्धि की शुद्धि के या समाधि के वितर्क, विचार, आनन्द और अस्मिता चरणों में क्रमशः प्रगति के रूप में देखते हैं जिसके फलस्वरूप चित्त मणिवत् शुद्ध होता है, ज्ञानदीप्ति होती है, व विवेकख्याति होती है, वहाँ शैव इस प्रगति भेदन की प्रक्रिया कहते हैं जो सहस्रार चक्र के खुलने में परिणत होती है। ये चक्र देह के भीतर हो शक्तिकेन्द्र हैं जो सम्भवतया विद्युतयुक्त नाड़ी-तन्त्र के केन्द्र हैं जो सामान्यतया पूर्णतः सक्रिय नहीं होते और अभ्यास से पूर्णतः सक्रिय होते हैं। सहस्रार हमारा मस्तिष्क है जो स्नायुतन्त्र का केन्द्र कहा जाता है और आधुनिक शरीरक्रिया विज्ञान के अनुसार जिसका एक तिहाई भाग ही सामान्य जनों में सक्रिय होता है। अतः शक्तिचालन और चक्रभेदन की शव व्याख्या आधुनिक विज्ञान के लिए अधिक उपयुक्त प्रतीत होती है / प्राधुनिक शरीर-वैज्ञानिकों ने योगाभ्यास से होने वाले दैहिक परिवर्तनों का अध्ययन किया है। उनके अनुसार शरीरक्रियायों की क्षमता में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होती है, और देह के मल (Toxics) भी नष्ट होते हैं / कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन, जैसे आक्सीजन की कम मात्रा का उपभोग, रक्तपरिभ्रमण-गति का धीमा होना, रक्त का शुद्ध होना, शरीर की उपचयप्रक्रिया का धीमा होना, मस्तिष्क की सक्रियता का बढ़ जाना और हृदय के कार्य का अधिक सक्षम होने का यन्त्रों के द्वारा अध्ययन किया गया है और वेध द्वारा सिद्ध किया गया है। इसी प्रकार जागत और निद्रा की अवस्थाओं का भी मस्तिष्कविद्यतीय परीक्षण यन्त्र से अध्ययन किया गया है / जागृत अवस्था में मानव मस्तिष्क से पाल्फा-तरंगें निकलती हैं और निन्द्रावस्था में बीटा-तरंगें निकलती हैं। योगी की पाल्फा और बीटा तरंगें अधिक स्पष्ट और नियमित होती हैं। यही नहीं, समाधि की अवस्था में ये पाल्फा-तरंगें अत्यन्त संकुचित हो जाती हैं और समाधि जितनी अधिक गहन होगी यह संकुचन भी उतना ही अधिक होगा। इसी प्रकार इस अवस्था में हृदय की विद्युतीय तरंगें भी संकुचित और धीमी गति वाली हो जाती हैं। अत: आधुनिक विज्ञान से समाधि के विभिन्न चरणों का यान्त्रिक वेध के द्वारा तरंगीय वर्गीकरण - योगपद्धति की खोज व स्थापना सम्भव हो गई है। दर्शन विमाग, राज. वि. विद्यालय, जयपुर आसनस्थ तम आत्मस्थ मम तब हो सके आश्वस्त जम Jain Education International For Private & Personal Use Only jainelibrary.orgPage Navigation
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