Book Title: Yoga aur Paramano vigyan
Author(s): Ramnath Sharma
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 2
________________ • ६८ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड अधिक उल्लेखनीय है जिसको कि संक्षेप में ई. एस. पी. (E.S.P.) कहा गया है। पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों ने कुछ दशक के प्रयोगों से अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के अस्तित्व को सिद्ध किया है। इसके अतिरिक्त मनोगति (Psycho-kinesis) के प्रभाव को भी पासा फेंकने के प्रयोग के द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। अब विशेष अनुसन्धान अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष और मनोगति को नियन्त्रित करने वाले कारकों का पता लगाने की दिशा में हो रहा है। चूंकि योग में कुछ ऐसी क्रियाओं के होने का दावा किया जाता है जिनसे अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए कुछ पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक आज यह आशा करने लगे हैं कि परामनोविज्ञान में अतीन्द्रिय-प्रत्यक्ष, दूरदर्शन (Clairvoyance), मन:पर्याय (Telepathy), अनागत का ज्ञान (Pre-cognition), मनोगति (P. K.) इत्यादि को नियन्त्रित करने अथवा इन्हें उत्पन्न करने की शक्ति या क्रिया का पता लगाने में योग से सहायता मिल सकेगी। इस सम्बन्ध में लेखक द्वारा सम्पादित 'Parapsychology and Yoga' (परामनोविज्ञान और योग) के प्रकाशित होने पर जरट्र ड श्मीडलर ने लेखक को अपने एक पत्र में लिखा था, "यदि आप इस अत्यन्त रुचिकर दृष्टिकोण को चलाये रखने की आशा करते हैं, तो मुझे निश्चय है कि हममें से अनेक, जिनमें मैं भी शामिल हैं, यह आशा करेंगे कि इन विधियों के द्वारा आप ज्ञान के क्षेत्र में एक वास्तविक नयी राह निकालने में सफल होंगे। पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों के इस प्रकार रुचि दिखाने के बाद से भारतवर्ष में भी योग और परामनोविज्ञान के सम्बन्ध को लेकर अनेक सेमीनार आयोजित किये जा चुके हैं। बम्बई में एस.पी.आर. (S.P.R.) तथा राजस्थान में परामनोवैज्ञानिक संस्थान (Parapsychological Institute) की स्थापना, सागर में आयोजित परिसंवाद, उत्तर प्रदेश की राज्य मनोविज्ञानशाला में परामनोविज्ञान सम्बन्धी अनुसन्धान के अतिरिक्त पिछले दो दशकों में होने वाले अनेक सेमीनार आधुनिककाल में परामनोविज्ञान के क्षेत्र में भारतीय मनोवैज्ञानिकों की बढ़ती हुई रुचि के परिचायक हैं। इस सम्बन्ध में सन् १९६२ में लखनऊ विश्वविद्यालय में 'योग और परामनोविज्ञान' पर एक सेमीनार का आयोजन किया गया जिसमें अनेक प्रसिद्ध भारतीय और पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने योग और मनोविज्ञान के सम्बन्ध पर शोध पत्र प्रस्तुत किये। ये शोधपत्र सन् १९६३ में लेखक के सम्पादकत्व में 'Parapsychology and Yoga' शीर्षक से रिसर्च जर्नल ऑफ फिलासफी एण्ड सोशल साइंसेज (Research Journal of Philosophy and Social Sciences) के प्रथम अंक के रूप में प्रकाशित हुए। इसमें सम्मिलित मनोवैज्ञानिकों में के. रामकृष्ण राव, ऐलेन जे. मेन, मिलान रिझल, नन्दोर फोदोर, एच. प्राइस, आर.एच. थाउलैस, जे. सी. क्रमा, जी. जारेब, आई. जे. गुड, टी. जी. कलघटगी, रामचन्द्र पाण्डे, भीखनलाल आत्रेय, रामजी सिंह, गार्डनर मर्फी, एच.एन. बनर्जी, एफ.सी. डोमेयर तथा एस. जी. सोल के शोधपत्र थे। ड्यूक विश्वविद्यालय की विश्वप्रसिद्ध पत्रिका जर्नल ऑफ पेरासाइकोलाजी में योग और मनोविज्ञान पर संसार के सभी प्रसिद्ध परामनोवैज्ञानिकों और योग के अधिकारी विद्वानों के लेखों के लेखक द्वारा सम्पादित इस संग्रह का स्वागत करते हए लिखा गया था, "योग और मनोविज्ञान के सम्भावित सम्बन्ध पर अनेक प्रसिद्ध परामनोवैज्ञानिकों और चित्तविद्या के दार्शनिकों के विचारों को देखकर अत्यन्त रुचि उत्पन्न होती है। यदि इस परम्परागत विश्वास में कोई सत्य है कि योग का प्रशिक्षण और अभ्यास अतिसामान्य योग्यताओं की प्राप्ति की ओर ले जाता है, तो यह समय है कि उसके लिये कुछ किया जाना चाहिए। इस प्रकाशन का इसीलिए स्वागत है कि वह इस महत्वपूर्ण समस्या पर ध्यान केन्द्रित करता है।"२ पश्चिम में परामनोविज्ञान की सबसे अधिक प्रसिद्ध पत्रिका में योग के अध्ययनों का यह स्वागत यह स्पष्ट करता है कि आज परामनोविज्ञान के क्षेत्र में योग की प्रक्रिया की ओर आशा की दृष्टि से देखा जा रहा है। किन्तु इस सम्बन्ध में अभी कोई उल्लेखनीय अनुसन्धान नहीं हो सका है। प्रस्तुत लेख में भारतीय दार्शनिक और योग साहित्य में परामनोवैज्ञानिक रुचि की सामग्री का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जायेगा। योगवाशिष्ठ में परामनोवैज्ञानिक विवरण भारतवर्ष में अति प्राचीनकाल से ही अलौकिक शक्तियों की चर्चा होती रही है। प्राचीन वेदों और उपनिषदों में अनेक स्थलों पर अलौकिक शक्तियों का उल्लेख किया गया है। उपनिषदों में योग के अनेक अंगों का उल्लेख करते हुए उनसे मिलने वाली अलौकिक शक्तियों का उल्लेख किया गया है। प्राचीन भारत में योग की एक अत्यन्त श्रेष्ठ पुस्तक योगवाशिष्ठ में ऐसी अनेक कथायें मिलती हैं जिनमें अतिसामान्य (असाधारण) घटनाओं और शक्तियों का विवरण दिया गया है। इनमें वशिष्ठ की कथा, लीला की कथा, इन्दु के पुत्रों की कथा, इन्द्र और अहिल्या की कथा, जादूगर की कथा, शुक्राचार्य की कथा, बलि की कथा इत्यादि विभिन्न कथाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार की अतिसामान्य शक्तियों का उल्लेख किया गया है । वशिष्ठ की कथा में विचार के मानव शरीर ग्रहण कर लेने का उल्लेख है । लीला की कथा में अनेक अतिसामान्य घटनाएँ दी गयी हैं । कर्कटी की कथा में अणिमा सिद्धि का उल्लेख है। इन्दु-पुत्रों की कथा में इच्छा और संकल्प की अलौकिक शक्तियों का उल्लेख है। इन्द्र और अहिल्या की कथा में मन की शक्ति के द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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