Book Title: Yoga Shastram
Author(s): Subodhsuri, Ruchaksuri
Publisher: Dharmbhaktipremsubodh Granthamala Prakashan Samiti

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Page 818
________________ प्रकाशा योग. शास्त्रम् // 763 // संप्राप्य केवलज्ञानदर्शने दुर्लभे ततो योगो। जानाति पश्यति तथा लोकालोकं यथावस्थम् // 23 // ध्यानान्तरे वर्तमान इति शेषः / शेषं स्पष्टम् // 23 // अथोत्पन्नकेवलज्ञानस्य तीर्थकृतोऽतिशयान् चतुर्विशत्याऽऽर्याभिराहदेवस्तदा स भगवान् सर्वज्ञः सर्वदयनन्तगुणः। विहरत्यवनीवलयं सुरासुरनरोंरगैः प्रणतः॥२४॥ वाग्ज्योत्स्नयाऽखिलान्यपि विबोधयति भव्यजन्तुकुमुदानि / उन्मूलयति क्षणतो मिथ्यात्वं द्रव्यभावगतम् // 25 // तन्नामग्रहमात्रादनादिसंसारसंभव दुःखम् / भव्यात्मनामशेषं परिक्षयं याति सहसैव // 26 // अपि कोटीशतसख्याः समुपासितुमागताः सुरनराद्याः / क्षेत्र योजनमात्रे मान्ति तदाऽस्य प्रभावेण // 27 // त्रिदिवौकसो मनुष्यास्तिर्वाञ्चोऽन्येऽप्यमुष्य बुध्यन्ते / निजनिजभाषानुगतं वचनं धर्मावबोधकरम् // 28 //

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