Book Title: Yoga Asano ki Prasangikta Vishishtta Author(s): Shantilal Surana Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 2
________________ योग-आसनों की प्रासंगिकताः विशिष्टता / २०१ कहलाता है। समाधि-विक्षेप हटाकर चित्त को एकाग्र करना समाधि कहलाता है। योगासन अंदर के शरीर को स्वस्थ रखने की क्रियाएँ हैं। अन्य व्यायामों से योगासन को विशेषतायें इस प्रकार हैं (१) अन्य व्यायाम मुख्यतः मांसपेशियों पर ही प्रभाव डालते हैं। इस कारण व्यक्ति अधिक समय तक स्वस्थ नहीं रह सकता । योगासनों से लम्बी आयु सुखपूर्वक बीतती है। विकारों को शरीर से बाहर करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। शरीर के सेल अधिक बनते हैं, टूटते कम हैं । २) अन्य व्यायामों में स्थान, साधनों साथियों की अधिक आवश्यकता पड़ती है। किन्तु योगासन अकेले, दरी या चादर पर संकीर्ण स्थान में भी किये जा सकते हैं। (३) दूसरे व्यायामों का प्रभाव मन और इंद्रियों पर कम पड़ता है। योगासनों से मानसिक शक्ति बढ़ती है । इंद्रियों को वश में करने की शक्ति पाती है। (४) दूसरे व्यायामों में अधिक पौष्टिक खुराक की आवश्यकता होती है, जिसमें अधिक खर्च पाता है। योगासनों में स्वल्प सादा भोजन ही पर्याप्त होता है। (५) योगासनों से शरीर की रोगनाशक शक्ति का विकास होता है। विजातीय द्रव्य तुरंत बाहर निकल पाते हैं। (६) योगासनों से शरीर में लचक पैदा होती है। स्फूर्ति, अंगों में रक्तसंचार होता है । बड़ी आयु में भी व्यक्ति युवा दीखता है। अन्य व्यायामों में मांसपेशियों में कड़कपन आ जाता है, जिसमे बुढ़ापा जल्दी आ जाता है। (७) योगासनों से रक्तनालिकाओं व कोशिकाओं की सफाई प्रासानी से होती है, जो अन्य व्यायामों से नहीं। उनसे हृदय की गति तेज हो जाती है, जिससे रक्त पूरी तरह से शुद्ध नहीं हो पाता। (८) फेफड़ों के द्वारा रक्त की शुद्धि होती है। योगासनों-प्राणायाम से फेफडों के फैलने सुकड़ने की शक्ति बढ़ती है। इससे प्राणवायु फेफड़ों में भर जाती है और रक्तशुद्धि आसानी से होती रहती है । अन्य व्यायामों में जल्दी-जल्दी श्वास लेने से प्राणवायु फेफड़ों के अंतिम छोर तक नहीं पहुंच पाती जिसका परिणाम विकार व रोग बढ़ना भी है। (९) पाचनसंस्थान के यंत्रों को सुचारु रूप से गतिमान् क्रियाशील रखना केवल योगासनों से हो सकता है। अन्य व्यायामों से पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। (१०) मेरुदंड पर हमारा यौवन निर्भर है। जितनी लचक रीढ़ की हड्डी में होगी उतना ही शरीर स्वस्थ होगा । प्रायु लम्बी होगी। मानसिक सन्तुलन बना रहेगा । यह सब योगासनों से ही संभव है। (११) दूसरे व्यायामों से थकावट पाएगी। अधिक शक्ति खर्च होगी। जबकि योगासनों से शक्ति प्राप्त होती है। योगासन धीरे-धीरे और आराम से किये जाते हैं। ये अहिंसक व शान्तिमय क्रियाएँ हैं। (१२) योगासनों से स्वास्थ्य के साथ चारित्र, मानसिक, नैतिक शक्ति का विकास होता है । मन स्थिर रहता है, बुद्धि का विकास होता है । सत्त्वगुण बढ़ता है । आसमस्थ तम आत्मस्थ मम तब हो सके आश्वस्त जम Jain Education International For Private & Personal Use Only iainelibrary.comPage Navigation
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