Book Title: Yoga Asano ki Prasangikta Vishishtta
Author(s): Shantilal Surana
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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________________ योग-आसनों की प्रासंगिकता विशिष्टता 0 शान्तिलाल सुराना . अर्चनार्चन प्रदूषणों के कुहरे में फंसे मानवजीवन के लिये वैज्ञानिक प्राकृतिक सरल सुगम एवं सुलभ जीवनदायिनी चेतना केवल योगासन प्राणायाम से ही मिल सकती है तनावों से मुक्ति, शरीर के सारे अंगों के साथ श्वास-प्रश्वास की सहजगति तथा प्रत्येक अंग को शक्ति व आराम प्राप्त करने का आसन से बढ़कर आसान व सस्ता अन्य कोई तरीका नहीं है। शरीर के मुख्य संस्थानों के नाम व काम संक्षिप्त में इस प्रकार हैं-(१) अस्थिसंस्थान: हड्डियां, (२) संधिसंस्थानः संधियाँ, (३) मांससंस्थानः मांस पेशियाँ, (४) रक्त व रक्तवाहक संस्थानः हृदय, धमनियाँ, शिरायें (५) श्वासोच्छ्वास संस्थानः नासिका, टेंटुआ, फुफ्फुस, (६) पोषण संस्थान: मुख, दांत, मेदा, छोटी बड़ी प्रांतें, क्लोम, यकृत । (७) मूत्रवाहक संस्थानः गुर्दे मूत्राशय, (८) वात या नाडी संस्थानः मस्तिष्क, नाड़ियां वातसूत्र, (९) विशेष ज्ञानेन्द्रियाः कान माँखें, नासिका, जिह्वा, त्वचा, (१०) उत्पादक संस्थानः अंडं शिश्न, योनि, गर्भाशय। इन संस्थानों को ठीक रखने के लिये कुछ सुझाव-(१) सात्विक भोजन, सादा रहनसहन, जल्दी सोना उठना, नियमित शरीर तथा मन को स्वस्थ रखने के लिये योगासनोंप्राणायम की साधना करना । (२) स्वयं स्वस्थ रहना तथा दूसरों को स्वस्थ बनाने के लिये उक्त प्रेरणाएँ देना। (३) साधना केन्द्रों में जाकर योगक्रियायें केवल सीखने की दष्टि से नहीं, अन्य को सिखाने के लिये नियमित करें। शरीर, मन, प्राण की शुद्धि के लिये ८ प्रकार के साधन बताये हैं जो इस प्रकार हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । यम अर्थात् चित्त को धर्म में स्थित रखने के साधन ५ हैं--(१) अहिंसा, (२) सत्य, (३) अस्तेय, (४) ब्रह्मचर्य, (५) अपरिग्रह । नियम भी ५ प्रकार के हैं यथा-(१) शौच, (२) संतोष, (३) तप, (४) स्वाध्याय, (५) ईश्वरप्राणिधान याने मन, वाणी और कर्म से परात्मा की भक्ति करना, उनके गुणों का कीर्तन, मनन, करना। आसन-सुखपूर्वक स्थिर स्थिति में रहना। इन्हें २ भागों में बांटा गया है। (१) ध्यान आदि के लिये पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन (२) आरोग्यार्थ-शीर्षासन, सर्वांगासन भुजंगासन, चक्रासन, वज्रासन आदि । इनसे शारीरिक बल यौवन प्रांतरिक अवयव और अंतग्रंथियों की कार्यक्षमता बढ़ती है। ये प्रासन कई प्रकार के हैं। प्राणायाम-प्राण की स्वाभाविक गति याने श्वास प्रश्वास को रोकना प्राणायाम कहलाता है। प्रत्याहार-जब इन्द्रियाँ बाह्य विषयों से मुड़कर अंतर्मुखी होती हैं, इस अवस्था को प्रत्याहार कहते हैं। धारणा-स्थल या सूक्ष्म किसी भी बाह्य विषय में चित्त को लगा देना धारणा कहलाता है। ध्यान-जिस विषय में धारणा से चित्तवृत्ति लगाई हो उस विषय में विजातीयवृत्ति को छोड़कर सजातीय वृत्ति को धारावत् अखंड प्रवाहयुक्त रखना ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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