Book Title: Yog aur Man Author(s): Sureshmuni Shastri Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf View full book textPage 8
________________ योग और मन 43 . 35 अयं साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावइ / जंसि गोयममारूढो, कह तेण न हीरसि / पधावंतं निगिण्हामि, सुयरस्सी समाहियं / न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवज्जई // -उत्तराध्ययन, 23/55-56 / 36 नाणं नरस्स सारं। 37 दुक्खेन नज्जइ अप्पा / 38 ज्ञानस्य फलं विरतिः / 36 विषयेभ्यः परावृत्तिः परमोपरतिहि सा। ---शंकराचार्य, अपरोक्षानुभूति 7/2 / 40 णाणं अंकुसभूदं मदोन्मत्तस्स हथिस्स / 41 जे अणण्णदंसी से अणण्णारामे, जे अणण्णारामे से अणण्णदंसी। -तीर्थकर महावीर, आचारांग, 1/2/6 / 42 चितिज्जइ जेण तं चित्तं / -नन्दी-चूर्णि, 2/13 / 43 अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे / -आचारांग, 1/3/2 / 44 एकाग्र चिन्तानिरोधोध्यानम् ।-उमास्वाति, तत्त्वार्थ-सूत्र, 6/26 / 45 चित्तावत्थाणमेगवत्थुम्मि, छउमत्थाणं झाणं / -ध्यानशतक, गाथा 3 / 46 तत्र प्रत्ययकतानता ध्यानम् / -पातंजल योग-सूत्र, 3/2 / 47 तत्रैकग्गता समाधि / -महर्षि कपिल, सांख्यदर्शन / 48 एगग्गसंन्निवेसेण निरोहं जणयइ / -उत्तराध्ययन, 26/27 / 46 ध्यानं निविषयं मनः / ---महर्षि कपिल, सांख्यदर्शन, 6/25 / 50 मनसोवृत्तिशून्यस्य, ब्रह्माकारतया स्थितिः / साऽसम्प्रज्ञात नामासी, समाधिरित्यभिधीयते / / -अज्ञात 51 मणसलिले थिरभूए, दीसइ अप्पा तहा विमले / -तत्त्वसार 246 / 52 तन्निवृत्तावुपशान्तरागः स्वस्थः / -महर्षि कपिल, सांख्यदर्शन, 6/25 / 53 सुण्णीकम्मि चित्ते, णूणं अप्पा पयासेइ / -आराधनासार, 74 / 54 तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम् ।-पातंजल योग-सूत्र, 1/3 / 55 यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते / निःस्पृहःसर्वकामेभ्यो, योगयुक्त स उच्यते / / -गीता, 6 / 56 यत्रोपरमते चित्तं, निरुद्धं योगसेवया / यत्र चैवात्मनाऽऽत्मानं, पश्यन्नात्मनि तुष्यति / / -गीता, 6/20 / 57 अयं तु परमोधर्मो, यद्योगेनात्मदर्शनम् / -महर्षि मनु - ) णाणमयविमलसीय सलिलं पाऊण भविय भावेण / बाहिजरमरणवेयणडाह विमुक्का सिवा होति / / ज्ञान रूपी विमल, शीतल जल को सम्यक्त्व भाव से पीने से व्याधि, जरा, मृत्यु, वेदना आदि मिट जाते हैं और मुक्ति की प्राप्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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