Book Title: Yashovijayji Swahast Likhit Kruti Sangraha
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 71
________________ ર૪ शाश्वत प्रासाद-प्रतिमा मान स्तोत्र [ले.सं. १६६८] न्या. वि., न्या. आ. श्री. यशोविजयेोपाध्याय गुरु श्रीनय विजयजी. स्वहस्ताक्षर. अ [ अन्तिम पृष्ठ ] धुनमा स्कार सुमी विचारमान १९४८ आरव हि। हा शक्ल मि तो नागा नववा ॥ दिग्गय गिरी सुचना दासी का रंग सदासा मित्र रिमदा नई सक्त रिसयदी हावा॥ २६ ॐड मुर्तिमय सिमा वीमागचं लाख । इक्कारमस्य सत्ते रिजमा दस दरात रुख ॥। १७ वह विच्याहवीसा का स्वयच दीह विद्वान समय चालीसा दादा विविद्दि सिसालमा सोहम्म | साएद विनय सा एववता मम या गुणामद्दि कोन कायदा असा बासी आ सास शंका डि तिरसयाका डिबिंबत वाणसुतिस गाका डिस! बावन्ना काडिच उन वइलरका । तिरियो । १९ एवं तिकड जिलवा बंद | मि||20 सही लरका गुणन वामान वा मदस लेरक लिंग तिरित्र्यं ।। २१ चचचत्र सहस संगस्य सहावमाणि बिंबाणि २ एनरसा का डिस या दुचता का मिश्रमनल का यात्री ममदस सिता बिबादिमा मि॥३३ सिरित रद निवश्यमुदानाव दिया। देविंद शिंदधुत्र्यदि उत्तवित्र्या सिहिगुह।। ३६ इति धनप्रसादप्रतिमामान स्त्रीलिखित वाचक कल्याण विनयविजया तिना मंद १६६६ बाप बंद श्रीविजयना कल्याणम

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