Book Title: Yadi Chuk Gaye To
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 68
________________ १३४ यदिचूक गये तो शलाका पुरुष भाग-२से १३५ उपाय है। - - कार्य-कारण के अनुसार ही निष्पन्न होता है तथा कारणानुविधायीनि कार्याणि । जैसे - जौ से जौ ही उत्पन्न होते हैं। स्वर्ण से आभूषण ही बनते हैं, वैसे ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र जीव से ही उत्पन्न होते हैं, देवशास्त्र-गुरु से नहीं। देव-शास्त्र-गुरु तो निमित्त मात्र हैं, वे सम्यग्दर्शनरूप कार्य के कारण नहीं हैं। नियामक कारण कहते हैं तथा कार्य होने की योग्यता रूप दूसरा क्षणिक उपादान कारण है, वही पर्याय योग्यता की अपेक्षा कारण एवं वही पर्याय परिणमन की अपेक्षा कार्य कही जाती है। -- ध्रुव उपादान कारण स्वयं कार्यरूप परिणमित होता है। जैसे - मिट्टी स्वयं घटरूप परिणमित होती है। अतः घट कार्य का ध्रुव उपादान रूप नियामक कारण मिट्टी है। इसीप्रकार आत्मा अथवा श्रद्धाज्ञान एवं चारित्रगुण स्वयं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्ररूप परिणमता है; अतः आत्मा की इन पर्यायों या कार्यों का ध्रुव त्रिकाली उपादानरूप नियामक कारण आत्मा अथवा श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र गुण है। वस्तुतः तो पर्याय की तत्समय की योग्यता ही कार्य का नियामक और समर्थकारण है; परन्तु तीनों ही उपादान कारणों को भी भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से नियामक कारण कहा गया है। कार्योत्पत्ति के समय कार्य के अनुकूल संयोगी पदार्थों की अनिवार्य उपस्थिति होने से उन्हें आगम में भी कारण संज्ञा प्राप्त है। परन्तु वे संयोगी पदार्थ कार्य के अनुरूप या कार्यरूप स्वयं परिणमित न होने से उस कार्य के कर्ता नहीं हो सकते। जो द्रव्य स्वयं कार्यरूप परिणमित हो अथवा जिस पदार्थ में कार्य निष्पन्न हो उसे उपादान कारण कहते हैं। पदार्थ की निज सहज शक्ति या मूल स्वभाव ध्रुव उपादान कारण है तथा द्रव्यों में अनादिकाल से जो पर्यायों का परिणमन हो रहा है, उसमें अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय एवं कार्योत्पत्ति के समय की पर्यायगत योग्यता क्षणिक उपादान कारण है। यह पर्यायगत योग्यता ही कार्य का समर्थ कारण है। जो द्रव्य या गुण स्वयं कार्यरूप परिणमित हो, उसे त्रिकाली उपादान कारण कहते हैं। पदार्थ की निज सहजशक्ति या मूल स्वभाव ध्रुव या त्रिकाली उपादान है। जिस पदार्थ में कार्य निष्पन्न होता है, वह त्रिकाली या ध्रुव उपादान कारण कहलाता है। प्रत्येक कार्य (पर्याय) का त्रिकाली उपादान इस बात का नियामक है कि वह कार्य (पर्याय) अमुक द्रव्य या उसके अमुक गुण में ही होगी, अन्य द्रव्य में नहीं और उसी द्रव्य के अन्य गुण में भी नहीं। सम्यग्दर्शनरूप कार्य आत्मद्रव्य और उसके श्रद्धागुण में ही सम्पन्न होगा; पुद्गलादि द्रव्यों या आत्मा के ज्ञानादि गुणों में नहीं। __ कार्य का दूसरा नाम पर्याय अर्थात् काल भी है, यही कारण है कि काल की नियामक तत्समय की योग्यता को कार्य का नियामक कारण भी कहा जाता है। स्वभाव का नियामक त्रिकाली उपादान, विधि (पुरुषार्थ) का नियामक अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय से युक्त द्रव्य क्षणिक उपादान और काल का या कार्य का नियामक तत्समय की योग्यता क्षणिक उपादान रही। तात्कालिक या क्षणिक उपादान कारणों में जो अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय युक्त द्रव्य का व्यय प्रथम क्षणिक उपादान कारण है, उस कारण का अभाव करते हुए कार्य उत्पन्न होता है। अतः इस कारण को अभावरूप (६८) ध्रुव उपादान को कार्य का समर्थ कारण इसकारण नहीं माना जा

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