Book Title: Vyavaharik Jivan me Nam Rup Sthapana aur Pratik
Author(s): Vishwanath Pathak
Publisher: USA Federation of JAINA

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Page 5
________________ १२० विश्वनाथ पाठक अपने साथी के कन्धे पर चढ़ जाता है और उसे हाथों या कोड़ों से मार-मार कहता है-'चल रे घोड़े, चल' । छोटा बालक खूब जानता है कि यह तो हमारा साथी है, घोड़ा नहीं है, फिर भी उस पर घोड़े का आरोप करके क्षण भर पुलकित हो जाता है। कबड्डी के खेल में आप ने देखा होगा, एक दल का खिलाड़ी जब अन्य दल के किसी खिलाड़ी को छू कर भाग आता है तब छुआ हुआ व्यक्ति मृत घोषित कर दिया जाता है। यद्यपि वह साँसें लेता है, चलता-फिरता है और बात-चीत भी करता रहता है, तथापि उस जीवित को व्यावहारिक रूप में मृतक मान लिया जाता है। यही बाल-प्रवृत्ति विकसित होकर जीवन के विविध क्षेत्रों में हमारी धार्मिक, शैक्षिक, साहित्यिक और राजनैतिक गतिविधियों को पूर्णतया प्रभावित करती रहती है। नदी, पर्वत, वृक्ष, नगर आदि में पवित्रता की स्थापना से तीर्थों का उदय होता है । मक्का, मदीना, येरुस्सलम, बोधिगया, पावा धाम, अयोध्या, मथरा आदि हमार पवित्र स्थान है । वस्तूतः ये स्थान भी अन्य स्थानों के समान नितान्त भौतिक हैं; इन्हें आध्यात्मिक पवित्रता स्थापना से मिली है। मुर्दे को लोग छूना भी पसन्द नहीं करते हैं । जो स्वयं मर गया है, वह दूसरे की मुराद क्या पूरी करेगा? परन्तु पीरों की हड्डियों पर बनी मजारों पर दुआएं मांगने के लिए मेले लगते हैं. बड़ी-बड़ी मनौतियाँ मानी जाती हैं। 'संग असवद' पत्थर ही तो है, प्रत्येक हजयात्री उसे क्यों चूमता है ? यह सब स्थापना के कारण होता है । स्थापना में विषयी और विषय-दोनों अमूर्त भी हो सकते हैं। निरर्थक ध्वनियों पर विविध अर्थों के आरोप इसके उदाहरण हैं। सीटी की ध्वनि अमूर्त है, उसके द्वारा अनेक अर्थ संकेतित होते हैं। कभी वह खेल के आरम्भ का अर्थ देती है तो कभी खेल के समापन का; और कभी दस्युओं का नायक आसन्न संकट की सूचना सीटी बजा कर देता है तो कभी ताली बजा कर । ये सभी सांकेतिक अर्थ समुदाय विशेष में पहले से स्थापित और आरोपित रहते हैं। बीज गणित में जो धन नहीं है, उसे भी धन मान लेने की निम्नलिखित पद्धति प्रसिद्ध है "मान लिया मोहन के पास अ रुपये थे। यद्यपि अ किसी भी दशा में रुपया नहीं हो सकता है, वह केवल एक अक्षर है, परन्तु इस मिथ्या कल्पना के आधार पर बड़े-बड़े कठिन प्रश्न हल किये जाते हैं । भूगोल में एक बहुत बड़ा सफेद झूठ चलता है । आपने मानचित्रों के नीचे लिखा हुआ निम्नलिखित ढंग का पैमाना अवश्य देखा होगा १ मिली मीटर = १०० किलो मीटर एक मिली मीटर एक सौ किलोमीटर के बराबर कभी नहीं हो सकता है, इसे एक मूर्ख भी जानता है तो क्या भूगोल के विद्वान् प्राध्यापक नहीं जानते होंगे ? मैं समझता हूँ, वे असत्य से सत्य की ओर चल कर 'असतो मा सद् गमय' वी वैदिक प्रार्थना को चरितार्थ करते हैं। सौ रुपये का नोट वस्तुतः काग़ज का छोटा सा टुकड़ा ही है, जिसका मूल्य कौड़ी के बराबर भी नहीं है, परन्तु स्थापना की शक्ति से उसी काग़ज के टुकड़े के बदले सौ रुपये के सामान मिल जाते हैं। स्थापना आहार्य बुद्धि का परिणाम है। मिथ्या होने पर भी उसकी उपेक्षा संभव नहीं है। दिशा को ही ले लीजिये, वह अपेक्षा-बुद्धि से उत्पन्न होती है। उसके अस्तित्व के लिये कम से कम दो वस्तुओं की सत्ता अनिवार्य होती है । हम जिसे पूर्व कहते हैं, उसे ही दूसरा पश्चिम कहता है, एक तीसरा उसी को उत्तर कहता है तो चौथा उसी को दक्षिण मानता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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