Book Title: Vyasan Mukt ho Jivan Author(s): Jayprabhvijay Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf View full book textPage 4
________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्मअनेक व्यक्ति यह कहते है कि मदिरा तो टॉनिक है, विवेकः संयमो ज्ञानं, सत्यं शौचं दया क्षमा। इससे शारीरिक थकान मिटती है। सुस्ती दूर होती है और चुस्ती मद्यात् प्रलीयते सर्वं तृण्यां वह्निकणादिव।। आती है, किन्तु यह उनकी मिथ्या धारणा है। मदिरा पान करने योग शास्त्र ३/१६ वाले व्यक्ति की शारीरिक शक्ति घट जाती है और वह शीघ्र ही तात्पर्य यह है कि आग की नन्हीं सी चिनगारी विशालकाय थक भी जाता है। मदिरा पान से पेट की ज्ञानवाही और क्रियावाही घास के ढेर को नष्ट कर देती है। वैसे ही मदिरापान से विवेक, नाडियाँ निश्चेष्ट हो जाती है, जिससे भूख का भान नहीं रहता। संयम, ज्ञान, सत्य, शौच, क्षमा आदि सभी सदगण नष्ट हो जाते हैं। लाभ की अपेक्षा हानि होती है। पाचन संस्थान विकृत हो जाता है (४) वेश्यागमन- चिंतनकारों ने वेश्यागमन को कुपथागामी नशा उतरने के पश्चात् शरीर का अंग अंग शिथिल हो जाता है, व्यसन की संज्ञा दी है। यह एक ऐसा चमकीला, लुभावना और इसलिए मद्यपान त्याज्य है।. किसी भी स्थिति में उचित नहीं आकर्षक व्यसन है, जो जीवन को न केवल निंदनीय बनाता है, कहा जा सकता। आचार्य हरिभद्र ने मद्यपान के सोलह दोष इस वरन् बरबाद भी कर देता है। वेश्या अपने शिकार को फंसाने के प्रकार बताये हैं लिए कपट व्यवहार करती है। अपनी निर्लज्ज भाव भंगिमा से (१) शरीर विद्रूप होना (२) शरीर में विविध रोग उत्पन्न होना उसे अपने जाल में फँसाती है, वह इतना अपनत्व प्रदर्शित (३) परिवार में तिरस्कृत होना (४) समय पर कार्य करने की करती है कि वेश्यागामी यह समझ लेता है कि वह उसके प्रति क्षमता न होना (५) अन्तर्मानस में द्वेष उत्पन्न होना (६) ज्ञान पर्ण रूप से समर्पित है। परिणामस्वरूप वेश्यागामी अपना तन्तुओँ का धुंधला हो जाना, (७) स्मृति का लोप हो जाना (८) सर्वस्व अर्थात यौवन बल स्वास्थ्य धन आदि सब कुछ उस पर बद्धि भ्रष्ट होना (९) सज्जनों से संपर्क समाप्त हो जाना (१०) लटा देता है और उसकी आँख तो जब खलती है तब वेश्यागामी वाणी में कठोरता आना (११) नीच कुलोत्पन्न व्यक्तियों से की जेब खाली हो जाती है और वेश्या उसे दत्कार कर अपने कोठे संपर्क (१२) कुलहीनता, (१३) शक्ति ह्रास (१४) धर्म, (१५) से निकाल देती है, एक वेश्या वेश्यागामी को दर दर का भिखारी अर्थ६ काम इन तीनों का नाश होना। ___ बना देती है। शारीरिक दृष्टि से भी वह इतना क्षीण हो चुका होता है महाकवि कालिदास ने जब एक मदिरा विक्रेता से पछा कि कुछ कर सकने का सामर्थ्य उसमें शेष नहीं रहता है। कि उसके पात्र में क्या है तो उसने उत्तर दिया कि उसके पात्र में भर्तहरि ने वेश्या के संबंध में लिखा हैआठ दुर्गुण हैं। (१) मस्ती, (२) पागलपन, (३) कलह (४) वेश्याऽसौ मदनज्वाला रूपेन्धनसमेक्षिताओ। धृष्टता (५) बुद्धि का नाश (६) सच्चाई और योग्यता से घृणा कामिभिर्यत्र हूयन्ते यौवानाचि धनानि च।। (७) खुशी का नाश और (८) नरक का मार्ग। इसका तात्पर्य यह है कि वेश्या कामाग्नि की ज्वाला है, उपर्युक्त दुर्गुणों से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। जो सदा रूप-ईंधन से सुसज्जित रहती है। इस रूप ईंधन से । कि मद्यपान कितना हानिप्रद है। किसी मनोवैज्ञानिक ने लिखा सजी हुई वेश्या कामाग्नि ज्वाला में सभी के यौवन धन आदि है कि मदिरापान से असंतुष्ट व्यक्ति सुख प्राप्त करने का प्रयास भस्म कर देती है। करता है, निरुत्साही व्यक्ति साहस, ढुलमुल मनोवृत्तिवाला आत्म वेश्या आर्थिक और शारीरिक शोषण करने वाली जीती विश्वास और इसी प्रकार उदास व्यक्ति सुख की खोज करता है, जागती प्रतिमा है वह समाज का कोढ़ है, मानवता का अभिशाप किन्तु सबको इसके विपरीत विनाश मिलता है। है, समाज के माथे पर कलंक का काला टीका है। समस्त नारी इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मद्यपान किसी भी जाति की लांछन है। शास्त्रों में नारी का गौरव गरिमा का चित्रण स्थिति में हितकर नहीं है। इसका सेवन विनाश के अतिरिक्त करते हुए जिन महान रूपों में चित्रित किया गया है, वैश्या नारी कुछ भी नहीं दे सकता है, इसलिए कभी भी किसी भी स्थिति में होते हुए भी नारी के उन रूपों के विपरीत रूप प्रस्तुत करने इसका उपयोग नहीं करना चाहिये। कारण यह भी है कि आचार्य वाली है। सदगणों के स्थान पर अवगणों की खान है। लज्जा को हेमचंद्र ने भी लिखा है। DIGYANMAMAKHANDS.PMS www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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