Book Title: Vyapti Vichar Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 4
________________ 163 वाली नियुक्ति में निर्दिष्ट व वर्णित' दश अवयवों का, जो वात्स्यायन' कथित दश अवयवों से भिन्न हैं, उल्लेख तक नहीं किया है, जब कि सभी श्वेताम्बर तार्किकों (स्याद्वादर० पृ० 556) ने उत्कृष्टवाद कथा मैं अधिकारी विशेषके वास्ते पाँच अवयवों से आगे बढ़कर नियुक्तिगत दस अवयवों के प्रयोग का भी नियुक्ति के ही अनुसार वर्णन किया है। जान पड़ता है इस तफावत का कारण दिगम्बर परम्परा के द्वारा श्रागम आदि प्राचीन साहित्यका त्यक्त होना-पही है। एक बात माणिक्यनन्दीने अपने सूत्र में कही है वह माके की जान पड़ती है। सो यह है कि दो और पाँच अवयवोंका प्रयोगभेद प्रदेशकी अपेक्षा से समझना चाहिए अर्थात् थादप्रदेशमैं तो दो अवयवोंका प्रयोग नियत है पर शास्त्रप्रदेशमें अधिकारीके अनुसार दो या पाँच अवयवोंका प्रयोग वैकल्पिक है / वादिदेवकी एक खास बात भी स्मरणमें रखने योग्य है / वह यह कि जैसा बौद्ध विशिष्ट विद्वानों के वास्ते हेतु मात्रका प्रयोग मानते हैं वैसे ही वादिदेव भी विद्वान् अधिकारीके वास्ते एक हेतुमात्रका प्रयोग भी मान लेते हैं / ऐसा स्पष्ट स्वीकार श्रा० हेमचन्द्र ने नहीं किया है / ई० 1636] [प्रमाण मीसांसा - 1 'ते उ पइन्नविभत्ती हेउविभत्ती विवक्खपडिसेहो दिहतो आसङ्का लप्पडिसेहो निगमणं च ।'–दश नि० गा० 137 / 2 'दशावयवानेके नैयायिका वाक्ये सचक्षते-जिज्ञासा संशयः शक्य. प्राप्तिः प्रयोजनं संशयव्युदास इति-न्यायभा० 1. 1. 32 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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