Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः 854 // D पडिकप्पेह, तए ण से कासवे जमालिस्स स्वत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वुत्ते समाणे हद्दतुढे करयल जाव एवं सामी ! तहत्ताणाए विणएणं वयर्ण पडिसुणेह 2 त्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्वपादे पक्खालेइ सुरभिणा 2 319 शतके सुद्धाए अट्ठपडलाए पोत्तीए मुहं बंधड मुहं बंधित्ता जमालिस्म खत्तियकुमारस्स परेण जत्तेणं चउरंगुलवज्जे नि- उदेश क्खमणपयोगे अग्गकेसे कप्पड़ / तर णं साजमालिस्म खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाइएणं अग्गकेसे // 854 // पडिच्छइ अग्गकेसे पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदपणं पक्खालेह मुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेत्ता अग्गेहिं बरेहि गंधेहिं मल्लहिं अचेति 2 सुद्धवत्थेणं बंधेह सुद्धवत्थेणं बंधित्ता रयणकरंडगंसि पक्विवति 2 हारवारिधारासिंदुवारछिन्नमुत्तावलिप्पगामाई सुयवियोगदूसहाई अंसूई विणिम्मुयमाणी 2 एवं बयासी-एस णं अम्हं जमालिस्स खत्तियकुमारस्स बहसु तिहीसु य पब्वणीसु य उस्सवेस य जन्नेसु य छणेसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्सतीतिकडु ओसीसगमले ठवेति, I आबीने हाथ जोडीने जमालि क्षत्रियकुमारना पिताने जय अने विजयधी वधाये छै; वधाव्या पछी ते हजाम आ प्रमाणे बोल्यो के–'हे देवानुप्रिय! जे मारे करवानुं होय ते फरमावों'. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए ते हजामने आ प्रमाणे का के-'हे देवानुप्रिय ! जमालि क्षत्रियकुमारना अत्यन्त यत्नपूर्वक चार अंगुल मूकीने निष्क्रमणने (दीक्षाने) योग्य आगळना वाळ कापी नाख. त्यारपछी ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए ते हजामने ए प्रमाणे कडं त्यारे ते खुश थयो, तुष्ट थयो अने हाथ | जोडीने ए प्रमाणे बोल्यो-'हे खामिन् ! आज्ञा प्रमाणे करीश एम कहीने विनयर्थी ते वचननो स्वीकार करे छे. स्वीकार करीने ACANCE For Private and Personal Use Only

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