Book Title: Vratya Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 18
________________ विषयानुक्रम १-१५ १६-२१ २२-३८ ३६-४६ ४७-५१ ५२-५६ ६०-७४ ७-८५ ८६-६२ ६३-६८ ६६-१०५ १. केवलज्ञान : कतिपय विमर्शनीय बिन्दु २. बहुश्रुतपूजा : एक परिशीलन ३. अनेकान्त, स्याद्वाद एवं सप्तभंगी ४. जैन दर्शन में नय की अवधारणा ५. निर्विकल्प एवं सविकल्प बोध ६. अर्थनीति और अनेकान्त ७. निक्षेप का उद्भव, विकास और स्वरूप ८. विभिन्न दर्शनों में कर्म : एक तुलनात्मक विमर्श ६. आचार मीमांसा और कर्म १०. मनोविज्ञान और कर्म ११. शरीरविज्ञान और कर्म १२. जैन, बौद्ध, योग एवं वेदान्त के कर्म सिद्धान्त का तुलनात्मक विमर्श १३. जैन, बौद्ध एवं वेदान्त दर्शन के अनुसार सत् की अवधारणा १४. तत्त्व संरक्षण का साधन : वाद १५. अनुमान में प्रयुक्त उदाहरण की अयथार्थता १६. शास्त्रार्थ में जय-पराजय की व्यवस्था के नियम १७. जात्युत्तर एवं उसका समाधान १८ कारकसाकल्य का प्रामाण्य विमर्श १६. पातञ्जलयोगदर्शन में क्रियायोग की अवधारणा २०. मंत्र विचारणा २१. जैन आगमों की व्याख्या को आचार्य महाप्रज्ञ का योगदान २२. जैन परम्परा में आर्य की अवधारणा १०६-११७ ११८-१३२ १३३-१३५ १३६-१३८ १३६-१४२ १४३-१५६ १६०-१६२ १६३-१७४ १७५-१७६ १८०-१८८ १८६-१६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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