Book Title: Vividh Kavi Kruti Tran Gey Rachnao
Author(s): Samaypragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ५२ ॥ राग आना रचयिता हीरमुनि छे. आमां धूलचूक होय ते सुधारी लेशो तेवी विनंति करूं छं. सुमति कुमति वादगीत सारंग 11 चेतन छांडो हो यह रीति, जैसे दोइ नावको चढिवो त्यौ दोई त्रिय की प्रीति - — कुमति सुमति तेरें द्वे बनिता द्वैसो प्रीति बढावै, भए हौ पात वथूरा (?) । तुम चित्त कहैं तौ आवै; कबहुँकि तल कबहुंकि ऊपरि, चिहुंगति तोहि फिरावै, कुमति नारि तैरै हो खोटी ले दुरगति पुहचावै आठ बंध याकैं संग डोलै, लीयै पांच सर गासी, तुम तो उनिको हैते करि जांनत, वे दैहैं तोहि फासी; सावधान तुम होत नांहि नां, बुध तमारी नासी, मेरे कह्यो मांन ले चेतन, अंत होइगी हांसी. अनुसन्धान ४८ चेतन छांडि हो यह रीति || टेका। Jain Education International चे० ||२|| कुमति कहैं पिय सुमति नारिसुं, प्रीति कियें पा छितेहौ छुटैगो घरबारु अबै परिवार विना के हैं भीखमंगे है चे० ||३|| चै० ॥१॥ सुमति कहैं सुनि नाह बावरें, यह धन धर्म चुरावै, दर्शन ज्ञान चारित्र रत्न शुभै तिनकौं अंक लगावै, तेरो हितु धर्म दश जगमैं सो नहि आवन पावै, मेटै सकल रीति जिन भाषि तो उलटी चाल चलावै. चे० ||४|| कुमति कहै सुनि कंत पियारे, यह तोकुं फुसिलावै, यह दूती चंचल शिवपुरकि ते फंद यहि आवै, हुं सुद्धि अपने घर बैठी, ताकौं अंक लगावै, तौं सुं कंत पायकैं भौंदू क्यों नही नाच नवा (चा) वै. चे० ॥५॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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