Book Title: Vivek Manjari Part 02
Author(s): Chandranbalashreeji, Pandit Hargovinddas
Publisher: Jain Vividh Sahitya Shastramala
View full book text
________________
[३४१
गुणानुमोदनाद्वारे महासतीगुणानुमोदना] अथ महासतीगुणानुमोदनां कर्तुकामः पुरस्तीर्थकरजननीभिष्टुवन्नाह - जणविम्हयजणणीओ जयंति तित्थंकराण जणणीओ । पसर्वति पुत्तरयणं जाओ तेलुक्कसिरितिलयं ॥५५॥
[जनविस्मयजनन्यो जयन्ति तीर्थकराणां जनन्यः ।
प्रसवन्ति पुत्ररत्नं यास्त्रैलोक्यश्रीतिलकम् ॥] व्याख्या - तीर्थं भवाम्बुधेरवतारमार्गं, यद्वा, चतुर्वर्णं श्रीश्रमणसङ्घम्, अथवा, प्रथम-गणधरं कुर्वन्तीति तीर्थंकरा अर्हन्तस्तेषामतीतानागतवर्तमानविहरमाणानां जनन्यो मातरस्तीर्थङ्करजनन्यस्ता जयन्ति सर्वोत्कर्षेण वर्तन्ते । किविशिष्टाः ? 'जणविम्हय त्ति' जनानां त्रिलोकीलोकानां विस्मयाश्चर्यं जनयन्ति यास्तास्तथा । विस्मयकारणमुत्तरार्धेनाह–'पसवंति त्ति' याः पुत्ररत्नं जातावेकवचनं सुतमाणिक्या- 10 नीति, प्रसवन्ति जनयन्ति। किंविशिष्टम् ? 'तेलुक्क त्ति' त्रैलोक्यस्य स्वर्भूर्भुवो रूपस्य श्रीलक्ष्मीस्तस्याः शिरस्तत्तथा सिद्धिपदमिति भावः तत्र तिलकं मण्डनं यदुक्तमागमे-"नमो त्थु ते रयणकुक्खिधारिए । नमो त्थु ते जगपईवदाइए" ॥[ ] इत्यादि ॥५५॥ अथ गाथात्रयेण सतीनाममन्त्राक्षरैरात्मानं पवित्रयन्नाह ...
15 सीयादेवी सुलसा राइमई मयणरेह दमयंती । अज्जा चंदणबाला मणोरमा तह विलासवई ॥५६॥ अंजणासुंदरी चेव नम्मयासुंदरी सिवा । धारिणी चिल्लणादेवी पभावई कलावई ॥५७॥ रेवई देवई जिट्ठा सुजिट्ठा पउमावई । नंदा भद्दा सुभद्दा य रिसिदत्ता मिगावई ॥५८॥ [सीतादेवी सुलसा राजीमती मदनरेखा दमयन्ती ।
आर्या चन्दनबाला मनोरमा तथा विलासवती ॥ १. नमोस्तु ते रत्नकुक्षिधारिके ! नमोऽस्तु ते जगत्प्रदीपदायिके ! ।
15

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 370