Book Title: Vivek Chudamani
Author(s): Chandrashekhar Bharti Swami, P Sankaranarayan
Publisher: Bharatiya Vidyabhavan

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Page 550
________________ VIVEKACODĀMANI 284 315 489 402 487 460 349 138 44 244 502 विषयाशामहापाशात् विषयेभ्यः परावर्त्य विषयेष्वाविशच्चेतः वीणाया रूपसौन्दर्य वेदशास्त्रपुराणानि वेदान्तसिद्धान्त वेदान्तार्थविचारेण वैराग्यं च मुमुक्षुत्वं वैराग्यबोधौ पुरुषस्य वैराग्यस्य फलं बोधः वैराग्यान्न परं सुखस्य व्याघ्रबुद्धया विनिर्मुक्तः शब्दजालं महारण्यं शब्दादिभिः पञ्चभिरेव शमादिषट्क शरीरपोषणार्थी शल्यराशिमा॑सलिप्तो शवाकारं यावद्भजति शान्तसंसारकलनः शान्ता महान्तो शान्तो दान्तः परमपरतः शास्त्रस्य गुरुवाक्यस्य शुद्धाद्वयब्रह्म शृणुष्वावहितो शैलूषो वेषसद्भाव श्रद्धाभक्तिध्यान श्रुतिप्रमाण कमतेः श्रुतिस्मृतिन्याय श्रुतेः शतगुणं विद्यात् श्रुत्या युक्त्या स्वानुभूत्या श्रोत्रियोऽवृजिनो षड्भिरूमिभिरयोगि संन्यस्य सर्वकर्माणि संबन्धः स्वात्मनो संलक्ष्य चिन्मानतया ': : : : : : : : :: : : : : : : : : : : : : : : : : : : : : : : : : 95 संसारकारागृहमोक्ष 38 संसार संसारबन्धविच्छित्त्य 323 संसाराध्वनि ताप 76 संसिद्धस्य फलं 475 सकलनिगमचूडा 447 सततविमलबोधानन्द 62 सति सक्तो नरो । सत्त्वं विशुद्ध जल 361 सत्यं ज्ञानमनन्तं 403 सत्यं यदि स्यात् 363 सत्यमुक्तं त्वया विद्वन् 429 सत्याभिसन्धानरतो 78 सत्समृद्धं स्वतःसिद्ध 93 सदात्मनि ब्रह्मणि 33 सदात्मकत्वविज्ञान 102 सदिदं परमाद्वैतं 185 स देवदत्तोऽयमितीह 383 सदेवेदं सर्व जगदवगतं 416 सदैकरूपस्य चिदात्मनो 54 सद्वनं चिद्धनं नित्यं 346 सद्ब्रह्मकार्य सकलं सद्वासनास्फूर्तिविजृम्भणे 130 सन्तु विकाराः प्रकृतेः 85 सन्त्यन्ये प्रतिबन्धाः 481 सन्नाप्यसन्ना समाधिनानेन 176 समाधिना साधु 326 समाहितान्तःकरणः 354 समाहितायां सति समाहिता ये प्रविलाप्य 48 समूलकृत्तोऽपि 270 समूलमेतं परिदह्य 20 सम्यक्पृष्टं त्वया 224 सम्यगास्थापनं 264 सम्यग्विचारतः 250 235 327 442 482 485 245 264 374 307 440 248 318 40 467 63 301. 128 353 444 397 386 347 310 400 216 290 41

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