Book Title: Vitrag aur Sthitpragya Ek Vishleshan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
View full book text ________________ चतुर्थ खण्ड / 94 स्थापित नहीं है। वह ब्रह्म में स्थित होकर ब्रह्मनिर्वाण को प्राप्त करता है। वीतराग में केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्तसुख प्रादि गुण प्रकट होते हैं, स्थितप्रज्ञ में इनकी चर्चा नहीं मिलती। 00 संवर्म१. नियतं कुरु कर्म त्वं, कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः / -भगवद गीता 38 2. अप्पाणमेव जुज्झाहि, कि ते जुज्झेण बज्झयो।-उत्तरा. 9 / 35 3. अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।-गीता 2020 अच्छेद्योऽयमदायोऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च / गीता 2 / 24 4. नो इंदियगेझ अमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ णिच्चो ॥-उत्तराध्ययन 14 / 19 5. देहिनोऽस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा / तथा देहान्तप्राप्ति/रस्तत्र न मुह्यति // -गीता 2013 6. एगया देवलोएसु, णरएसु वि एगया। एगया पासुरे काये, अहाकम्मेहिं गच्छइ / / -उत्तरा, 3 / 3 / 7. वीतो नष्टो रागो येषां ते वीतरागाः / 8. वीतोऽपगतो रागः संक्लेशपरिणामो यस्मादसौ वीतरागः / -लब्धिसार / जी. प्र. / 304 / 384117 9. उत्तराध्ययनसूत्र 19 / 18 10. सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा / कामे य पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गई / / उत्तरा. 9153 11. उत्तराध्ययन सूत्र 29 / 36 12. उत्तराध्ययन सूत्र 29 / 45 13. वही 3218 14. वही 32 / 22,35,48,61,74,87 15. भगवद्गीता 2164 16. वही-तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः / इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता / / 2068 17. उत्तराध्ययनसूत्र 32 // 19 18. वही 32 // 100 19. प्राउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे / -उत्तरा. 32 / 109 20. एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति / स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति / / गीता 2072 21. उत्तराध्ययन सूत्र 32 / 2 22. विहाय कामान्यः सर्वान पूमांश्चरति नि:स्पृहः / निर्ममो निरंहकारः स शान्तिमधिगच्छति / / -गीता 2071 -टीचर फेलो, संस्कृत विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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