Book Title: Vishwa Chetna me Nari ka Gaurava
Author(s): Shivmuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 5
________________ देश भक्तिनी झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की वीरता तथा मेवाड की पद्मिनी इत्यादि, सुकुमार नारियों का जौहर याद करें तो रोगटे खड़े हो जाते है। पन्ना धाँय के अपूर्व त्याग ने ही महाराणा उदयसिह को मेवाड का सिंहासन दिलाया, जिससे इतिहास ने नया मोड़ लिया। इसी तरह अनेक नारी रनों ने अपने त्याग व बलिदान एवं सतीत्व के तेज से भारतवर्ष की संस्कृति को समुज्ज्वल बनाया। वर्तमान में नारी पूर्व से अधिक स्वतन्त्र है। तथा झूठी परम्पराओं से बंधी हुई न होते हुए उसके जीवन में अनेक समस्याएँ, अनेक उलझनें लगी हैं। इन समस्याओं और उलझनों की मलजड़ है, शिक्षा का अभाव। इस ओर कछ समाज का भी दर्लभ्य रहा तो कछ नारी की अपनी परिस्थितियों शिक्षा से वंचित रखा। शिक्षा के अभाव में उसका बौद्धिक विकास पूर्ण रूपेण नहीं हो पाया, जिस कारण अनेक क्षेत्रों में वह पुरुष पर आश्रित भी रही। नारी को अपनी समस्याओं का हल स्वयं करना होगा। कोई किसी की समस्या का हल नहीं कर सकता, प्रत्येक को स्वयं ही अपने प्रश्नों का उत्तर ढूँढना होगा। दूसरा तो उत्तर ढूँढ़ने में केवल मार्गदर्शन कर सकता है। उत्तर नहीं दे सकता। अतः नारी को स्वयं ही इन उलझनों को सुलझाना होगा। और इसके लिए आवश्यक है कि वह शिक्षित हो। यहाँ पर शिक्षा का अर्थ शब्दों को रटना मात्र नहीं है। किताबों को पढ़ लेना मात्र नहीं है। शिक्षा का अर्थ है "मानसिक शक्तियों का विकास" नारी की मानसिक शक्तियाँ इस प्रकार विकसित हो जाए कि वह स्वयंमेव स्वतन्त्रता पूर्वक जीवन के विविध पहलुओं पर आत्मविश्वास पूर्वक निर्णय ले सके, उन्हें सुलझा सके। शिक्षा से नारी विकास सम्भव है, लेकिन तब जब वह उसके पवित्र जीवन और सतीत्व को अखण्डित रखता हो। पाश्चात्य स्त्री शिक्षित तो है, किन्तु भारतीय स्त्रियों के आचार विचार कहीं अधिक पवित्र है। केवल बौद्धिक विकास से ही मानव का परमकल्याण सिद्ध नहीं हो सकता, उसके लिए आवश्यक है कि बौद्धिक विकास के साथ साथ आचार विकार का पावित्र्य भी बना रहे। वर्तमान में नारी शिक्षा की ओर तो अतिद्रुत गति से अग्रसर हो रही है, किन्तु उसकी पवित्रता , उसका सतीत्व उसकी लज्जा और मर्यादा में काफी अन्तर आया है। जिससे नारी की बुद्धि का तो विकास हुआ, किन्तु. आत्मा का पतन। अतः नारी व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास अपेक्षित है। न केवल शिक्षा में वरन शिक्षा और आचार के पावन क्षेत्र में और वह तब होगा, जब भौतिक शिक्षा के साथ आध्यात्मिक शिक्षा का समन्वय होगा, और अध्यात्म ही समग्र शिक्षा का मेरुदण्ड होगा। (5) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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