Book Title: Vishwa Chetna me Nari ka Gaurava
Author(s): Shivmuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 3
________________ संख्या १.१८००० थी, इसमें, हम अन्दाज लगा सकते हैं कि जहाँ समाज नारी को धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में अशुभ व अमांगलिक मानता था। वहाँ भगवान ने स्त्री जाति को किन उच्च स्थानों पर स्थापित किया व उनके व्यक्तित्व को स्वाभिमानी व गौरवांवित किया। पुरुष बलवीर्य का प्रतीक होते हुए भी नारी के बिना अधूरा है। राधा बिना कृष्ण, सीता बिना राम, और बिना गौरी के शंकर अर्धांग है। नारी वास्तव में एक महान शक्ति है। भारतवर्ष ने तो नारी में परमात्मा के दर्शन किए हैं। और जगद् जननी भगवती के रूपों में पूजा है। ____ नारी का असीम प्रेम और सहानुभूति नर के लिए सदा ही प्रेरणा का स्रोत रहा है। एक कवि के शब्द में - सेवा प्यार दुलार दया की जो है मूर्ति। __ पालन पोषण करत स्वजन होवे हर्षित अति॥ नारी परोपकार, सेवा, क्षमा की मूर्ति है। माँ के रूप में बच्चे के, पत्नी के रूप में पति के और बहन के रूप में भाई के सुख दुःख में ही स्वयं का सुख दुःख मानती है। नारी का सुख व्यक्तिगत नहीं वरन् पारिवारिक होता है। वह परिवार के सुख से सुखी और परिवार के दुःख से दुःखी होती है। उसके लिए पति, पुत्र, परिवार प्रथम है। और फिर है स्वयं का व्यक्तित्व। इसलिए वास्तव में नारी ही परिवार समाज और राष्ट्र की आत्मा है। एक नारी के उत्थान का अर्थ है एक परिवार का उत्थान और यही समाज व राष्ट्र के विकास की जड़ है। जब नारी पुत्र वधु बनकर आती है तो दो कुलों को अपनी सहज सरसता से मिला कर एक कर देती है। बहन के रूप में भाई को राखी बान्धते हुए भाई की रक्षा, विकास की अमृत कामना करती है। अर्धांगिनी के रूप में अवतरित होती है, तथा जननी बनकर बच्चों के लिए संजीवनी समान सह वात्सल्य पावन सस्कारों का जीवन संचित कर उसके व्यक्तित्व को उन्नत शिखरों का स्पर्श कराती है। इस तरह नारी का प्रत्येक रूप स्वयं के अस्तित्व को मिटा कर अन्य के व्यक्तित्व को विकसित करने, वृक्षों की तरह स्वयं सब कुछ सह कर अन्य को शीतल छाया, रूप और दीपक की तरह, स्वयं जल कर अन्य के जीवनपथ को उजागर करने के रूप में क्रियान्वित होता है। ऐसा व्यक्ति जो संसार में रहते हुए भी कर्तव्य पथ पर अग्रसर होते हुए तपस्विनी सा जीवन व्यतीत करता है। जिसके सम्मान, सत्कार व पूजा से व्यक्ति के भाव पवित्र हो जाते है। जबकि उसकी अवहेलना, अपमान करने वाला व्यक्ति स्वयं नरक के दुःखों का भागी बन जाता है। कवि की निम्न पक्तियाँ कितनी सार्थक सिद्ध होती है - जननी भगिनी कामिनी बहु रुपनी, बन देह सुख उस नारी की निन्दा करे । ते स्वपन पावें नरक दुःख राष्ट्रों के उत्थान पतन के इतिहास में नारी का योगदान पुरुषों की अपेक्षा किसी भी प्रकार कम नहीं है। इतिहास के पन्नों पर दृष्टव्य है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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