Book Title: Vishnusahastra nam aur Jisahastra Nam Author(s): Lakshmichandra Saroj Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 2
________________ सुस्पष्ट स्वीकृति है । विष्णुसहस्रनाममें वर्णित एक हजार नाम भीष्म युधिष्ठिरको सुनाते हैं, जिन सहस्रनाममें उल्लिखित एक हजार आठ नाम जिनसेन पाठकोंके लिये लिखते हैं, पर उन्होंने भी समापन के दसवें श्लोकमें संकेत किया है कि इन नामोंके द्वारा इन्द्र ने भगवानकी स्तुति की थी। विष्णुसहस्र नामकी प्रस्तावनामें कहा गया है कि विष्णु जन्म,मृत्यु आदि छह विकारोंसे रहित है, सर्वव्यापक है, सम्पूर्ण लोक-महेश्वर है, लोकाध्यक्ष है। इनकी प्रतिदिन स्तुति करने से मनुष्य सभी दुखोसे दूर हो जाता है : अनादिनिधनं विष्णुं सवलोकमहेश्वरम् । लोकाध्यक्ष स्तवन्नित्यं सर्वदुःखातिगो भवेत् ॥ जिन सहस्रनामकी प्रस्तावनामें कहा गया है कि जिनेन्द्र भगवान वीतराग, क्षायिक सम्यग्दृष्टि हैं । आप अजर और अमर, अजन्म और अचल तथा अविनाशी हैं, अतः आपके लिये नमस्कार है । आपके नाम का स्मरण करने मात्रसे हम सभी परम शान्ति और अतीत सुख-सन्तोष तथा समृद्धि को प्राप्त होते हैं । आपके अनन्त गुण हैं: अजराय नमस्तुभ्यं नमस्ते अतीतजन्मने । अमृत्यवे नमस्तुभ्यं अचलायाक्षरात्मने ।। अलमास्तां गुणस्तोत्रमनन्तास्तावका गुणाः । त्वन्नाम स्मृतिमात्रेण परमं शं प्रशास्महे ।। विष्णुसहस्रनामके समापनमें कहा गया है कि जो पुरुष परम श्रेय और सुख पाना चाहता हो, वह भगवान् व्यास द्वारा कहे गये विष्णुसहस्रनाम स्तोत्रका प्रतिदिन पाठ करे : इमं स्तवं भगवतो विष्णोर्म्यासेन कीर्तितम् । पठेत् य इच्छेत्पुरुषः श्रेयः प्रात्तुं सुखानि च ।। जिनसहस्रनामके समापनमें भी आचार्य जिनसेनने लिखा है कि इस स्तोत्रका प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक पाठ करने वाला भक्त पवित्र और कल्याणका पात्र होता है । विष्णुसहस्रनाम स्तोत्रका समापन अनुष्टुप् छन्दमें ही हआ है पर जिनसहस्रनामस्तोत्रका समापन अनष्टपसे अन्य छन्दमें हआ है। दोनों ही स्तोत्र सार्थ मिलते हैं, अतएव संस्कृतविद सुधी पाठक ही नहीं, अपितु हिन्दी भाषी भी दोनों स्तोत्रोंका आनन्द ले सकते हैं। समानता, असमानता एवं कलात्मकता दोनों सहस्रनामोंमें जहाँ कुछ समानता और असमानता है, वहाँ कुछ कलात्मक न्यूनाधिकता भी है । यह उनके रचयिताओंकी अभिरुचि है, पर दोनोंकी भगवद्भक्ति अनन्य निष्ठाकी अभिव्यक्ति करती है। स्थविष्ठ, स्वयंभू, सम्भव, पुण्डरीकाक्ष, सुव्रत, हृषीकेश, शंकर, धाता, हिरण्यगर्भ, सहस्रशीर्ष, धर्मयुप जैसे शब्द दोनों स्तोत्रोंमें मिलते हैं । देवताओंकी नामावलीमें ऐसे शब्द आ जाना अस्वाभाविक नहीं है । कारण, एक तो प्रत्येक भाषाके अपने शब्दकोषकी सीमा है और दूसरे एक धर्म, एक व्यक्ति, एक साहित्य, एक संस्कृति अपने अन्य समीपस्थ धर्म, व्यक्ति, साहित्य और संस्कृतिसे प्रभावित हये बिना रह नहीं सकती है। फिर यह तो भाषा है। नामावलीकी समानताके सूचक कतिपय उदाहरण यहाँ सतर्क, सजग होकर देखें । प्रत्येक उदाहरणमें प्रथम पंक्ति विष्णुसहस्रनामकी है और द्वितीय-तृतीय पंक्ति जिनसहस्रनामकी है। भगवानके नामोंके आधार - १४८ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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