Book Title: Vimalsuri krut Paumchariya me Pratima Vigyan Parak Samagree
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari, Kamalgiri
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ विमलसरिकत पउमचरिय में प्रतिमाविज्ञान-परक सामग्री १४९ किन्तु इसको प्रतिमाविज्ञान-परक सामग्री के अध्ययन का अब तक कोई प्रयास नहीं हुआ है। जैन मूर्तिविज्ञान के विकास की दृष्टि से गुप्तकाल का विशेष महत्व है। गुप्तकालीन कृति पउमचरिय में जैन देवमण्डल की स्पष्ट अवधारणा के साथ ही प्रतिमाविज्ञान-विषयक सामग्रो का मिलना तुलनात्मक अध्ययन को दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । ६३ शलाकापुरुषों (श्रेष्ठजनों) की पूरी सूची सर्वप्रथम पउमचरिय में ही मिलती है। यद्यपि शलाकापुरुषों की कल्पना पूर्ववर्ती आगम ग्रन्थों (स्थानांग, समवायांग एवं कल्पसूत्रों) में भी उपलब्ध है, किन्तु इनमें ६३ के स्थान पर केवल ५४ ही उत्तम या शलाकापुरुषों के सन्दर्भ, और वह भी बिना नामोल्लेख के, हैं। पउमचरिय में जिनमति-निर्माण और पूजा के तो अनेक उल्लेख हैं। जिन-बिम्बों से युक्त रत्नजटित मुद्रिकाओं के धारण करने के यहाँ मिलने वाले सन्दर्भ जिन प्रतिमाओं की उस काल में लोकप्रियता के साक्षी हैं। एक स्थल पर 'सिंहोदर' नाम के शासक द्वारा रत्ननिर्मित मुनिसुव्रतबिंब से युक्त स्वर्णमुद्रिका को दाहिने अंगूठे में धारण करने, और मस्तक पर ले जाकर जिनेन्द्र को प्रणाम करने का उल्लेख मिलता है।' राम, लक्ष्मण और रावण को २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रत के साथ समकालिकता के बावजूद इस ग्रन्थ में कहीं भी इनके द्वारा मुनिसुव्रत-प्रतिमा की स्थापना या पूजन, या उनसे भेंट का कोई सन्दर्भ नहीं है। साथ ही जिन मुनिसुव्रत के मन्दिर एवं मूर्तियों के उल्लेख भी अत्यल्प हैं । मुनिसुव्रत की अपेक्षा १६वें तीर्थंकर शान्तिनाथ के मन्दिरों एवं मूर्तियों के अधिक सन्दर्भ हैं जो उस काल में शान्तिनाथ को विशेष लोकप्रियता के साक्षी हैं । इस ग्रन्थ में राम की तुलना में रावण का अधिक जिन भक्त के रूप में निरूपित किया गया है। राम द्वारा जहाँ केवल कुछ हो स्थलों पर जिन मन्दिर की स्थापना और उसमें पूजन के उल्लेख हैं, वहीं रावण द्वारा अनेक स्थलों पर जिन प्रतिमाओं की स्थापना एवं पूजन तथा जिन मन्दिरों के जीर्णोद्धार के सन्दर्भ १. कारेमि रयणचित्तं, सुव्वयजिणबिम्बसन्निहियं । ___ सा नरवईण मुद्दा, कारावेऊण दाहिणगुढे ॥ पउमचरिय ३३.५६-५७ २. एक स्थल पर अग्नि में प्रवेश के पूर्व सीता द्वारा मुनिसुव्रतस्वामी की वन्दना करने का उल्लेख है । पउमरिय १०२.१४ ३. सीयाएँ समं रामो, थोऊण जिणं विसुद्धभावेणं । वरधम्म आयरियं, पणमइ य पुणो पयत्तेणं ।। पउमचरिय ३७.६१ पउमो सीयाएँ समं, जिणवरभवणाण वन्दणं काउं। सद्द-रस रुवमाइं, भुञ्जइ देवो व्व विसयसुहं ।। पउमचरिय ९२.२६ जिणवरभवणाणि तहिं रामेणं कारियाणि बहुयाणि । पउमचरिय ८०.१५; द्रष्टव्य, पउमचरिय ४०.१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10