Book Title: Vikas ka Mukhya Sadhan Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 3
________________ प्रेममेंसे श्राती है। माता अपने बच्चे के प्रति उसी स्नेहके वश कर्तव्य पालन करती है पर दूसरों के बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य भूल जाती है । कभी जवाबदेही भयमेंसे आती है । अगर किसीको भय हो कि इस जङ्गलमें रातको या दिनको शेर श्राता है, तो वह जागरित रहकर अनेक प्रकारसे बचाव करेगा, पर भय न रहनेसे फिर बेफिक्र होकर अपने और दूसरोंके प्रति कर्तव्य भूल जाएगा । इस तरह लोभ-वृत्ति, परिग्रहाकांक्षा, क्रोधकी भावना, बदला चुकानेकी वृत्ति, मानमत्सर श्रादि अनेक राजस-तामस अंशोंसे जवाबदेही थोड़ी या बहुत, एक या दूसरे रूपमें, पैदा होकर मानुषिक जीवनका सामाजिक और आर्थिक चक्र चलता रहता है। पर ध्यान रखना चाहिए कि इस जगह विकासके, विशिष्ट विकासके या पूर्ण विकासके असाधारण और प्रधान साधन रूपसे जिस जवाबदेहीकी अोर संकेत किया गया है वह उन सब मोदित और संकुचित जवाबदेहियोसे भिन्न तथा परे है । वह किसी क्षणिक संकुचित भावके ऊपर अवलम्बित नहीं है, वह सबके प्रति, सदाके लिए, सब स्थलोंमें एक-सी होती है चाहे वह निजके प्रति हो, चाहे कौटुम्बिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और मानुषिक व्यवहार मात्र में काम लाई जाती हो। वह एक ऐसे भावमेंसे पैदा होती है जो न तो क्षणिक है, न संकुचित और न मलीन । वह भाव अपनी जीवन-शक्तिका यथार्थ अनुभव करनेका है । जब इस भावमेंसे जवाबदेही प्रकट होती है तब वह कभी रुकती नहीं। सोते जागते सतत वेगवती नदीके प्रवाहकी तरह अपने पथपर काम करती रहती है । तब लिप्त या मूढ भाग मनमें फटकने ही नहीं पाता । तब मन में निष्क्रियता या कुटिलताका संचार सम्भव ही नहीं 1 जवाबदेहीकी यही संजीवनी शक्ति है, जिसकी बदौलत वह अन्य सब साधनोंपर आधिपत्य करती है और पामरसे पामर, गरीबसे गरीब, दुर्बलसे दुर्बल और तुच्छसे तुच्छ समझे जानेवाले कुल या परिवारमें पैदा हुए व्यक्तिको सन्त, महन्त, महात्मा, अवतार तक बना देती है। गरज यह कि मानुषिक विकासका अाधार एकमात्र जवाबदेही है और वह किसी एक भावसे संचालित नहीं होती । अस्थिर संकुचित या क्षुद्र भावोंमेंसे भी जवाबदेही प्रवृत्त होती है । मोह, स्नेह, भय, लोभ आदि भाव पहले प्रकारके हैं और जीवन-शक्ति का यथार्थानुभव दूसरे प्रकारका भाव है। ___अब हमें देखना होगा कि उक्त दो प्रकारके भावोंमें परस्पर क्या अन्तर है और पहले प्रकारके भावोंकी अपेक्षा दूसरे प्रकारके भावोंमें अगर श्रेष्ठता है तो वह किस सबबसे है ? अगर यह विचार सष्ट हो जाए तो फिर उक्त दोनों प्रकारके भावोंपर आश्रित रहनेवाली जवाबदेहियोंका भी अन्तर तथा श्रेष्ठताकनिष्ठता ध्यानमें श्रा जाएगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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