Book Title: Vijaymansuri krut Pattak Author(s): Mahabodhivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ तथा सुवि, गछनायकें गणबहिःकृत संयतना शिष्य में पिण गछवासी पदस्थ उपस्थापनापूर्वक दिग्बंध आचार्यादिकनी संमति ज करे अन्यथा तो पूर्वोक्त 4 श्रुतजीतव्य. ने अनुसारि स्वपर गछनो दिग्बंध सर्वथा न घटइं छ इम गणबहिःकृतसंजतने गछवासी पदस्थ स्वनिश्राई कहि छे तेहने गुरुकुलवास स्वप्नगत राज्यलाभवत् प्रमाण नहीं // 25 / / श्रु.जी. लोकरूदि सुविहितगछव्यवहारि प्रवर्त्तता सगोत्रीय आचार्यनी शाखि विना आचार्यादिक पद प्रमाण नहीं / / 26 // ए अठावीस // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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