Book Title: Vihar Varnan
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 7
________________ (७) छ. तेओमां जेओनी नोटो ऊपरथी जुदा जुदा प्रान्तोना 'विहारो' में आ बुकमा आप्या छे, ते सर्वनो आ स्थळे आभार मार्नु छु. जेमनी जेमनी नोटो ऊपरथी में विहारो आप्या छे, तेओनां नामो में ते ते स्थळे आपेलां छे, एटले आ स्थळे पुनः आपवानी आवश्यकता जोतो नथी. उपरान्त आ पुस्तकने छपाववा माटे प्रेरणा करनार; सुसंगठित रीते गोठववामां, शुद्ध करवामां, प्रुफो सुधारवामां अने एवी बीजी बीजी रीते पण मदद करनार पूज्यपाद इतिहासतत्त्वमहोदधि आचार्य श्रीविजयेन्द्रसूरिजी महाराज, न्यायतीर्थ-न्यायविशारद उपाध्यायजी श्रीमंगळविजयजी महाराज अने शासनदीपक मुनिराज श्रीविद्याविजयजी महाराजनो पण अंतःकरणथी उपकार मार्नु छ. ___ छेवटे-" मुनिराजोने जुदा जुदा देशोनो विहार करवामां अने इतिहास प्रेमीओने इतिहासने अंगे पण यत्किचित् अंशे उपयोगी थाय " ए इरादाथी लखेला आ पुस्तकनो जनता थोडे घणे अंशे पण लाभ लेशे तो मारा परिश्रमनी सार्थकता समजीश. प्रान्ते-आ पुस्तकना वांचनाराओने निवेदन करवं आवश्यक समजु छ के आ पुस्तकनी अंदर जे जे हकीकत आपी छे, तेमां कांइपण न्हानो-मोटो फेरफार जणाय तो ते आ पुस्तकना प्रकाशकने पत्रद्वारा जणाववा तेओ अनुग्रह करशे के जेथी बीजी आवृत्तिमां सुधारी लेवा प्रयत्न करवामां आवे. बप्त, आटला निवेदन साथे आ वक्तव्यने अहिंज समाप्त करूं छु. खीवाणदी (मारवाड) बेसतुं वर्ष, वीर सं. २४५२. धर्म सं ४ जयन्तविजय.

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