Book Title: Vihar Varnan
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 6
________________ ( @) 99 अधर्म समजे छे " जीवोने बचाववामां अढार पाप समजनार एवा होय एमां नवाइ जेवुं कंइज नथी अने तेथी तेरापंथीयोनी वस्तीवाळा प्रदेशमां विचरतां संवेगी साधुओने धारे मुश्केली नडे छे. ७ माळवा अने मारवाडना केटलाक भागोमांत्रण थुइना आम्नायवाळा जोवामां आवे छे. त्रण वर्ष ऊपर रतलाममां झघडो थया पछी माळवाना त्रण थुइ-चार थुइवाळाओमां वैमनस्य वधु फेलायुं छे. ८ माळवा के मारवाडथी आगळ बुंदेलखंड, संयुक्तप्रान्त, बंगाल, मगव, सिंध, महाराष्ट्र, वराड, हैद्राबाद, अने मद्रास आदि दूरना प्रान्तोमां तेवाज साधुओए विचरखं जोइए छे के जेओ विद्वान् होय, समयज्ञ होय, अने ठेकाणे ठेकाणे जाहेर भाषणो आपी लोकोपकार करवानी उत्कंठा अने शक्ति धरावता होय, तेम साथे साथे परधर्म - सहिष्णुता अने शारीरिक कष्टोंने पण सहन करवानी ताकात होय. केवळ देशो, शहेरो के नगरो जोवानी भावनाथी अथवा यात्राओना निमित्तथी सामान्य साधुओए अपवादो सेवी - चारित्रने दूषित करवा माटे एटले दूर दूर जवानी आवश्यकता हुं जोतो नथी. मारा नम्र मत प्रमाणे तेवा सामान्य अने खाली खेपो करनारा साधु-साध्वीओ तेवा देशोमां जइने चारित्रने दूषित करवा साथे लोकोने अधर्म पमाडवा सिवाय कंइपण लाभ लइ आवता नथी. एवा साधु-साध्वीओतो गुजरात, काठियावाड, कच्छ अने मारवाडमां विचरी यथाशक्ति लोकोने सन्मार्ग पर जोडवा अने धर्मभां दृढ राखवा प्रयत्न करे, एटलुंज बस छे. जे साधुओ जाहेर भाषणो अने व्याख्यानो द्वारा लोकोने उपदेश आपी शके छे; पोताना सच्चारित्र्थी अन्य दर्शनियो ऊपर सारी छाप पाडी शके छे; अने षड्दर्शनना ज्ञानपूर्वक अन्यदर्शनीय विद्वानो साथै शान्तिपूर्वक धर्मचर्चा कर तेओने संतोषकारक उत्तरो आपी सद्गुणानुरागी बनावी शके छे; एवा साधुओ कष्ट सहन करीने अने किंचित् अपवादने सेवीने पण उपर्युक्त देशोमां विचरे तो जरूर तीर्थयात्रा साथे शासनोन्नतिनो अपूर्व लाभ मेळवी शके. आ प्रमाणे जुदा जुदा प्रान्तोमां विचरवाथी अमने जे अनुभव थयो छे, अमारा विचारो बंधाया छे, ते संक्षेपमां ऊपर जणावेल छे, आशा छे के आ पुस्तकना वांचनाराआ पुस्तकने उपयोगमां लेनारा महानुभावो जरूर ऊपरनी बाबतोने लक्षमां लेशे. उपकार आ 'विहारवर्णन ' ने तैयार करवामां हुं अनेक महानुभावोनो ऋणि बन्यो

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