Book Title: Vignaptitriveni
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ परिशिष्ट संख्या-२। ६९ तलाऊज्झए पुरिसं तीस पासनाह मनि भावियउ ॥९॥ दाउइ ए दीठउ पास महावीर महुए महिय । पासज ए घृतकल्लोळ मेलिगपुरि मेलिहिं लहिय ॥ १० ॥ अजाहरि ए वामाजाय दीवि पास अनु वीर मुहु । ऊनइ ए पुरवरि संति कोडियनारिहिं नेमिपहु ॥ ११ ॥ देवकइ ए पाटणि देव चंदप्पह बिहु ठाणि ठिय । त्रीजइ ए भवणि जिण नेमि, चोरियवाडइ पास पिय ॥१२॥ घात। वीर वेला वीरवेलाउलिहिं पणमेवि । नवपल्लव मंगलपुरिहिं पासनाह रिसहेस जिणवर । जूनइगढि मढि नव नवइ रिसह पासजिण वीर दिणयर ॥ हिव गिरनारिहि गरुयर सिहलं चडियउ चमकंत । जहिं मनसउं मई दिक्खिवउ राजलदेवीकंत ॥ १३ ॥ नेमि महं पणमिउ नेमि मई पूइउ नेमि मई संथुउ सरियकाज । सुकृतभंडार भर भरियअइ सुब्भरो करिय मई विमल निज जनम आज।। अह्म चिय पूगिय मनह जगीस नेमिभवणि गिरनारशृंगि । गाइसो वाइसो नाचिसो रंगि देइसो दान मन उच्छरंगि ॥ १५ ॥ वस्तिगवसहिई आदिजिणेसरो कल्याण त्रइ नेमिपहु। श्रीगिरनारिहिं अवर जे केवि तेवि हउं वंदिसो देव बहु ॥ १६ ॥ घात। सुजसधवलिहिं सुजसधवलिहिं पासजगनाह । बलदाणइ पासपहु संतिनाह चूडवणी पुरि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180