Book Title: Vidyarthi Jivan Ek Navankur
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf

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Page 11
________________ और भी जितने संकट या अभाव आज मनुष्य को परेशान कर रहे हैं, यदि गहराई से देखा जाए, तो उनके मूल में यही जनसंख्या वृद्धि की ही बीमारी है। संसार के बड़े-बड़े समाज-शास्त्री एवं वैज्ञानिक आज चिन्तित हो उठे हैं कि यदि जनसंख्या इसी गति से बढ़ती रही, तो प्रस्तुत शताब्दी के अन्त तक संसार की जनसंख्या दुगुनी हो जाएगी। इसका मतलब हुआ कि जिस भारतवर्ष में आज लगभग पचास करोड़ मनुष्य हैं, वहाँ आने वाले तीस वर्षों में एक अरब से भी अधिक हो जाएंगे। इसका सीधा-सा अर्थ है कि प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक जनसंख्या की वृद्धि हो रही है ! आप सुनकर चौंक उठेंगे, पर यह जनगणना करने वालों के आँकड़े हैं, जो काफी तथ्य पर आधारित हैं, कोई कल्पित नहीं हैं। अब आप अनुमान कर सकते हैं कि इन प्रभावों, संकटों की जड़ कहाँ है ? आप स्वयं ही तो इनकी जड़ में हैं। 'जणतर' की वद्धि के साथ तीसरी बात है-भणतर की याने पढाई की। जैसा कि मैने ऊपर बताया है, आज शिक्षा की गति भी बड़ी तीव्रता के साथ बढ़ती जा रही है। यह ठीक है कि देश में कोई अशिक्षित-निरक्षर न रह। पर शिक्षा का प्रचार जिस गति और वेग के साथ हो रहा है, देश का जितना श्रम, समय और अर्थ इस पर खर्च हो रहा है, उतनी सफलता नहीं मिल रही है, यह स्पष्ट है। समाचार पत्र हमारे सामने हैं। अधिकतर छात्र ही है, जो आए दिन कोई-न-कोई आन्दोलन चला रहे हैं, तोड़-फोड़ कर रहे हैं, अध्यापकों एवं प्रोफेसरों की पिटाई कर रहे हैं, स्कूल, प्रॉफिस और सरकारी दफ्तरों में आग लगा रहे हैं, बसें, मोटरें और रेलें जला रहे हैं, देश में चारों ओर हिंसा, उपद्रव और विनाश की लीला रच रहे हैं। भले ही राजनीतिक दल इसके पीछे अपना रोष, आक्रोष और प्रतिपक्षीय भावनाओं को बल दे रहे हों, पर इन हड़तालों और उपद्रवों का प्रबल हथियार विद्यार्थी-वर्ग ही बन रहा है, क्या यह शर्म और दुःख की बात नहीं है ? - मैं कभी-कभी सोचता हूँ-शिक्षण के साथ बच्चों में जो ये उपद्रवी संस्कार पा रहे हैं, वे उन्हें किस अन्धगर्त में ले जा कर धकेलेंगे, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनकी यह शक्ति, उनका यह अध्ययन और ज्ञान उन्हें रावण की परम्परा में ले जाकर खड़ा करेगा या राम की भूमिका पर? रावण वस्तुतः अज्ञानी नहीं था, वह एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक था अपने युग का, साथ ही कुशल राजनीतिज्ञ, शक्तिशाली योद्धा और शिक्षाविद भी था वह । जल, थल और नभ पर उसका शासन था। आकाश में उसके पुष्पक विमान उड़ते थे, समुद्र में उसके जलयान तैरते थे। अग्नि और वायु तत्त्व के उसने अनेकों प्रयोग किए थे, कहते हैं देवताओं को उसने अपनी कैद में बैठा रखा था। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि उसने प्रकृति की दिव्य शक्तियों को अपने नियंत्रण में ले रखा था। उसके इंजीनियरों ने सोने की विशाल लंका नगरी का निर्माण किया था। कितना बड़ा ऐश्वर्य और वैभव था उसका? पर आखिर हुआ क्या ? महान् बुद्धिमान और वैज्ञानिक राजा रावण को राक्षस क्यों कहा गया ? मनुष्य था वह हमारे जैसा ही। पर भारतीय-संस्कृति ने उसको राक्षस के रूप में चित्रित किया है। क्यों? इसीलिए कि उसकी शक्ति, उसका ज्ञान संसार के निर्माण के लिए नहीं, विनाश के लिए प्रयुक्त हो गया था। उसकी देह की प्राकृति मनुष्य' की थी, पर उसका हृदय एवं उसके संस्कार आसुरी थे, राक्षसी थे। दुःशासन और दुर्योधन का चरित्र जब हम पढ़ते हैं, तो लगता है, वे कितने बद्धिमान थे? उनमें कितनी शक्ति थी और कितना बल था? कैसा विज्ञान था उनके पास कि बड़े-बड़े नगरों का निर्माण किया, कितने विचित्र भवन बनाए और देश रक्षा के नाम पर कितने भयंकर अस्त्र और शस्त्र तैयार किए ? किन्तु फिर भी उस दुर्योधन को, जिसका नाम माता-पिता ने बड़े प्यार से सुयोधन रखा था, उसे संसार दुर्योधन अर्थात् 'दुष्ट योद्धा', 'दुष्ट वीर' क्यों कहता है ? उसे कुल-कलंक और कुलांगार क्यों कहा गया ? यही तो एक उत्तर है कि उसके विचार और संस्कार सुयोधन के नहीं, दुर्योधन के ही थे। वह कुल का फूल नहीं, बल्कि कंटक ही बना। विद्यार्थी जीवन : एक नव-अंकुर ३८१ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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