Book Title: Vidyapati Ek Bhakta Kavi Author(s): Harindrabhushan Jain Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 5
________________ विद्यापति : एक भक्त कवि ६५ इन दार्शनिक तत्वों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि बौद्ध सहजयान में यौगिक क्रियाएं ही मुख्य थीं। उसके दार्शनिक तत्व बौद्ध महायान के सिद्धान्त थे । वास्तव में गुह्य साधना काम क्रीडाजन्य प्रानंद को अलौकिक यौगिक आनंद में परिणित करने के लिए ही की जाती थी। इस प्रकार इस स्त्री साधना के तत्व से परकीया प्रेम को धीरे धीरे सफलता मिलने लगी और उसका प्रभाव चण्डीदास के प्रेम गीतों पर देखा जा सकता है। चण्डीदास, कहते हैं, रामा नामक एक धोबी की स्त्री से प्रेम करते थे जो सहजिया सम्प्रदाय का ही प्रभाव था, परन्तु यह केवल किंवदन्ती ही कही जाती है और इतिहास इस तथ्य की पुष्टि नहीं करता । जो हो, पर इतना अवश्य सत्य है कि चण्डीदास सहजिया साधक थे। यों भी बंगाल का चैतन्य गौडीय सम्प्रदाय मधुर भाव की उपासना को ही प्रधानता देता है। सिद्धों की इस स्त्रीसाधना का प्रभाव इस सम्प्रदाय पर अवश्य पड़ा होगा, क्योंकि माधुर्य भाव मात्र स्त्री भाव को ही प्रधानता देता है। काम क्रीड़ा जन्य यह आनंद की साधना इसी काल में आगे बढ़ी। इसी साधना के साथ शिव और शक्ति का सम्बन्ध जुड़ा, जो बौद्ध दर्शन में प्रज्ञा और उपाय के रूप में था। यही परंपरा आगे चलकर रस एवं रति के रूप में कृष्ण व राधा बन कर वैष्णव सहजिया सम्प्रदाय में उतरी। ब्रज में कृष्ण को रसेश कहा गया है और राधा-कृष्ण के अंतरंग विहार को अत्यन्त गुह्य माना गया है। निम्बार्क, राधाबलल्भ, हरिदासी और चैतन्य गौडीय सम्प्रदाय सभी का मूल भाव माधुर्य है । इस स्त्री भाव की साधना को ब्रज में वृन्दावन भाव और इस रस को ब्रज रस कहा जाता है । तथा यह विहार क्रीड़ा अन्तरंग लीला का रूप धारण किए है। इस प्रकार सहजयान का वैष्णवी स्वरूप रस और रति, राधा और कृष्ण और लीला आदि तत्वों के रूप में परिणित होता दिखाई पड़ता है। यही राधा कृष्ण इन भक्त कवियों के वर्ण्य विषय बने और जयदेव, विद्यापति ने राधाकृष्ण के प्रेम गीत गाए । विष्णु के दस अवतारों में राम व कृष्ण ही काव्य के प्रमुख प्रेरक बने और गौडीय वैष्णव काव्य के आदि कवियों ने कृष्ण को अपनाया। राम को कवियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम कहकर उनका नायकत्व स्थापित किया और कृष्ण को लीलाधारी । परन्तु रामभक्ति में रसिक सम्प्रदाय और रामभक्ति काव्य में माधुर्योपासना पर जो शोध कार्य सामने आए हैं उनसे राम के जीवन में माधुर्य तत्व और राम भक्ति में मधुरोपासना का एक नया अध्याय खुला है । और कृष्ण का जीवन तो माधुर्य प्रेरित था ही । अतः इन सभी बातों से माधुर्य भाव की प्रति व्यप्ति स्पष्ट होती है। उक्त कथ्यों से निष्कर्ष यह निकला कि सहजयान की यौगिक साधना ने इस वैष्णव प्रेम साधना को अत्यन्त प्रभावित किया है अतः यह कहना असत्य होगा कि चैतन्य का सम्प्रदाय पूर्ववर्ती सहजिया साधना से प्रभावित नहीं था। उसका परिनिष्ठित रूप जैसा भी है, सबको उसकी भी पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। वैष्णव सहजयान ने प्रेम को मुख्य सिद्धान्त के रूप में अपनाया। गुरू की भक्ति भी इन कवियों में बौद्ध सहजयान की ही भांति है। जब बंगाल में पालवंश के बाद सेनवंश राज्य करने लगा तो सहजिया मत के महान कवि जयदेव का उद्भव हुग्रा जिन्होंने राधाकृष्ण की प्रेम लीला को वर्ण्य विषय बनाकर काव्य को शृगारा । विद्यापति व चण्डीदास समकालीन कवि थे। इन्होंने काव्य में परकीया प्रेम का ही प्रादर्श लिया। महासुख की कल्पना इन कवियों में भी मिल जाती है। ये कवि महासुख को ब्रह्म की भांति मानते हैं। राधाकृष्ण की मिलन स्थिति को शिव व शक्ति की मिलन स्थिति के समान कहा गया है। दोनों का अलौकिक प्रेम संयोग ही सहजावस्था है । जीव का ईश्वर से प्रेम संयोग हो जाना ही आलौकिक आनंद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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