Book Title: Vicharshuddhi ki Niv Aharshuddhi Author(s): Rajendrasuri Publisher: Z_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf View full book textPage 3
________________ जीवनभर के लिए रात्रि-भोजन का त्याग लाभदायी है। त्याग रखना योग्य है। (15) बहुबीज - जिन सब्जियों और फलोंमें दो बीजोके बीच अंतर (19) बैंगन - बैंगन में असंख्य छोटे छोटे बीज होते हैं। उसके टोप न हो, वे एक दूसरेसे सटे हुए हों, गूदा थोड़ा और बीज बहुत हों, से डंठल में सूक्ष्म त्रस जीवभी होते हैं। बैंगन खानेसे तामसभाव खानेयोग्य थोड़ा और फेंकनेयोग्य अधिक हो, जैसे कवठका फल, जास्त होता है। वासना-उन्माद बढ़ता है। मन ढीठ बनता है। निद्रा खसखस टिंबरू, पंपोटा आदि। इनको खानेसे पित्त-प्रकोप होता है व प्रमाद भी बढ़ते हैं, बुखार व क्षयरोग होने की भी संभावना रहती और आरोग्य की हानि होती है। है। ईश्वर स्मरण में बाधक बनता है। पुराणों में भी इसके भक्षण का (16) अनंतकाय - जमीनकंद - जिसके एक शरीर में अनंत शरीर निषेध किया गया। हों उसे साधारण वनस्पति कहते हैं, जिसकी नसें, सांधे गाँठ, तंतु (20) अनजाना फल पुष्प- हम जिसका नाम और गुणदोष नहीं आदि न दिखते हों, काटने पर समान भाग होते हों, काटकर बोनेपर जानते वे पुष्प और फल अभक्ष्य कहलाते हैं, जिनके खाने से अनेक भी पुनः उग जाने से उसे अनंतकाय कहते हैं। जिसे खाने से अनंत रोग उत्पन्न होते हैं तथा प्राणनाश भी हो सकता है। अत: अनजानी जीवों का नाश होता है जैसे आलू, प्याज, लहसुन, गीली, हल्दी वस्तुएँ नहीं खानी चाहिए। अनजाना फल नहीं खाना इस नियमसे अदरख, मूली, शकरकंद, गाजर, सूरन कंद, कुँआरपाठा आदि 32 कचूल बचा और उसके सभी साथी किंपाक के जहरीले फल खानेसे अनंतकाय त्याज्य हैं। जिन्हें खानेसे बुद्धि विकारी, तामसी और जड़ मृत्युका शिकार बन गये। बनती है। धर्म विरुद्ध विचार आते हैं। (21) तुच्छ फल - जिसमें खाने योग्य पदार्थ कम और फेंकने योग्य (17) अचार - कोई अचार दूसरे दिन तो कोई तीसरे दिन और पदार्थ ज्यादा हो, जिसके खानेसे न तृप्ति होती है न शक्ति प्राप्त होती कोई चौथे दिन अभक्ष्य हो जाता है अचार में अनेक त्रस जंतु उत्पन्न है ऐसे चणिया बेर, पीलु, गोंदनी, जामुन, सीताफल इत्यादि पदार्थ होते हैं और अनेक मरते हैं। तुच्छ फल कहलाते हैं। इनके बीज या कूचे फेंकनेसे उनपर चीटियाँ जिन फलोंमें खट्टापन हो अथवा जो वैसी वस्तु में मिलाया गया आदि अनेक जीवजंतु आते हैं और झूठे होने के कारण समर्छिम हो ऐसे अचारमें तीन दिनोंके बाद त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। परंतु जीवभी उत्पन्न होते हैं। परोके नीचे आनेसे उन जीवों की हिंसाभी आम, नींबू आदि वस्तुओं के साथ न मिलाया हुआ गूदा, ककड़ी होती है। अत: इनके भक्षणका निषेध किया गया है। पपीता, मिर्च आदिका अचार दूसरे दिन अभक्ष्य हो जाता है। जिस (22) चलित रस - जिन पदार्थोंका रूप, रस, गंध, स्पर्श बदल अचार में सिकी हुई मेथी डाली गयी हो, वह भी दूसरे दिन अभक्ष्य गया हो या बिगड़ गया हो, वे चलित रस कहलाते हैं। उनमें बस हो जाता है। मेथी डाला हुआ अचार कच्चे दूध या दही के साथ। जीवोंकी उत्पत्ति होती है। जैसे - सड़े हुए पदार्थ, बासी पदार्थ, नहीं खाना चाहिए। चटनी के लिए भी इसीतरह समझना चाहिए। कालातीत पदाथ, फूलन आइ हुइ हा एस चालत रसक पदार्थ अभक्ष्य अच्छी तरह से धूप में न सुखाया हुआ आम, गदा, नींबू और मिर्ची हैं, जिन्हें खानेसे आरोग्यकी हानि होती है। असमय बीमारी आ सकती का अचार भी तीन दिनों के बाद अभक्ष्य हो जाता है। अच्छी तरहसे है और मृत्युभी हो सकती है। इस तरहके अभक्ष्य पदार्थों को खानेका धूपमें सुखाने के बाद तेल, गुड़ आदि डालकर बनाया हआ अचार त्याग अवश्यही करना हितावह है। भी वर्ण, गंध रस और स्पर्श न बदले तबतक भक्ष्य होता है, बादमें मिठाई, खाखरे, आटा, चने, दलिया आदि पदार्थोंका काल अभक्ष्य हो जाता है। फूलन आने के बाद अचार अभक्ष्य माना गया / कार्तिक सुदी 15 से फागुन सुदी 15 दरमियान ठंडमें 30 दिनोंका, है। गीले हाथ या गीला चम्मच डालनेसे अचार में फूलन आजाने के फागुन सुदी 15 से आषाढ़ सुदी 15 के दरमियान ग्रीष्म ऋतुमे 20 कारण वह अभक्ष्य हो जाता है। अत: अनेक त्रस जंतुओंकी हिंसासे दिनोंका और अषाढ़ सुदी 15 से कार्तिक सुदी 15 के दरमियान 15 बचने के लिए अचार का त्याग करना लाभदायी है। दिनोंका होता है। तत्पश्चात ये सब अभक्ष्य माने जाते हैं। आर्द्रा नक्षत्र (18) द्विदल - जिसमें से तेल न निकलता हो, दो समान भाग होते के बाद आम, खिरनी अभक्ष्य हो जाते हैं। फागुन सुदी 15 से कार्तिक हों और जो पेड़ के फलरूप न हो ऐसे दो दलवाले पदार्थों को दही सुदि 15 तक आठ महिने खजर, खारक, तिल, मेथी आदि भाजी, या कच्चे दूध में साथ एकत्र मिलाने से तुरन्त द्वीन्द्रिय जीवों की धनिया पत्ती आदि अभक्ष्य माने जाते हैं। उत्पत्ति हो जाती है। जीवहिंसा के साथ आरोग्य भी बिगड़ता है। कबासी पदार्थ दूसरे दिन और दही दो रातके बाद अभक्ष्य माना जाता है। अत: अभक्ष्य है। जैसे - मूंग, मोठ, उड़द, चना, अरहर, वाल, उपरोक्त 22 अभक्ष्य पदार्थों के अतिरिक्त पानीपूरी, भेल, खोमचोंपर चँवला, कुलथी, मटर, मेथी, गँवार तथा इनके हरे पत्ते, सब्जी, आटा मिलनेवाले पदार्थ, बाजारू आटे के पदार्थ, बाजारू मावेसे बने पदार्थ, व दाल और इनकी बनी हुई चीजें, जैसे मेथीका मसाला, अचार, सोड़ा, लेमन, कोकाकोला, औरैन्ज जैसे बोतलोंमें भरे पेय तथा जिन कढ़ी, सेव, गाँठिये, खमणढोकला पापड़, बूंदी, बड़े, भजिए आदि पदार्थों में जिलेटीन आता हो ऐसे सब पदार्थ अभक्ष्य हैं। पदार्थों के साथ दही या कच्चा दूध मिश्रित हो जानेपर अभक्ष्य हो खानेसे पहले चिंतन कर लेना चाहिए कि अमुक पदार्थ के जाते हैं। श्रीखंड, दही, मठी के साथ दो दल वाली चीजें नहीं खाना खानेसे आत्मा एवं शरीर की कोई हानि तो नहीं हो रही है? हानिकारक चाहिए। दूध या दहीको अच्छी तरहसे गरम करने के बाद उसके साथ 1 पदार्थों को त्यागना शुद्ध और ऊँचे जीवन के लिए अत्यंत हितावह दो दलवाले खाने में कोई दोष नहीं है। भोजनके समय ऐसे खाद्य पदार्थों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। होटल के दहीबड़े आदि अभक्ष्य पदार्थों का और विशेषवर्णन गुरुगम से तथा अभक्ष्य कच्चे दहाक बनते है अत: व अभक्ष्य कहलात है। इसतरह इनका अनंतकाय विचारा 'आहार शद्धि प्रकाश आदि ग्रंथों से जानना चाहिये। 17 श्रीमद् जयंतसेनसूरि अभिनंदन संथ/वाचना Jain Education international बाहर से अनुनय करे, भीतर राखे देव / जयन्तसेन कुटिल की, इसी नीति से क्लेश / www.jainelibrary.org For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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