Book Title: Vasupujya Charitam
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 15
________________ 1558bD हृन्मनदुःखं ॥ 1717@B तद्विधेहि ॥ 1723aA ०भग्ने || 1824aB स्वस्य किंचिद प्यलं स ॥ 1872B दुर्दमः । 1975A' मुनेर्भक्तिव्यक्ति ( ३ ) भासुर० ।। - 21336B पुनर्नवः ॥ 21756BCतद्विभो ॥ 22588B ववौ तमनुयोन्द्रये ।। 2272bA च तेने च पञ्च शब्दोदयं तदा ॥ III. 145aA महोज्ज्वलः ॥ 146a A ° धुनोदेष्यतीतीव ।। 0 151bA. शुक्लश्चतु ॥ 189bB प्रबोधन ॥ 260bADध्वजमञ्जुलम् ॥ 28224 नदीनदत्रजादपि ।। "D नदीपद्महदादपि ।। 300bD सैम्य० ॥ 306aB] त्वगुणांस्तात ॥ D त्वथूगुणास्तात्त ।। 312bA Bकराङ्गुष्ठे प्रभो न्यस्य नानारससुधां हरिः ।। 315aD • मातुश्च ॥ 344bA वरानन० ॥ 381A धनघट्ट ॥ 85aA कटीतटी प्रथुर्जज्ञे ।। 4326A निरूपयरूपनि श्वयात् ॥ 450bA सौम्योच्चग्रहलने सात्यद्भुतां ॥ 547bA पुरस्तासाम् ॥ 560bA अङ्गेषु निधिसंगेषु ॥ 578 A तत्रेशं प्रवेश्य । 588bBD स्वस्वहर्षैरनृत्यन्त सुरा ॥ 6052BD परं भोगफलं कर्म भेतुं भजञ्जनस्थितिम् । मघवाख्यं सुतं स्वामी पद्मवात्यामजिजनंत् ॥ 62584 विमानान्तः सुरी त्यमी ॥ (641aBD7 ||

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