Book Title: Vastutva ki Kasoti Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 4
________________ खण्डन-मण्डनमें काम लाई गई प्राचीन बन्धमोक्षव्यवस्था श्रादि कसौटीका उपयोग बिलकुल शून्य नहीं हुआ, वह गौणमात्र अवश्य हो गया। . एक ही वस्तुकी द्रव्य-पर्यायरूपसे या सदसद् एवं नित्यानित्यादि रूपसे जैन एवं जैमिनीय श्रादि दर्शनसम्मत द्विरूपताका बौद्धोंने जो खण्डन किया, (तत्वसं० का 222, 311, 312) उसका जवाब बौद्धोंकी ही विकल्पजालजटिल अर्थक्रियाकारित्ववाली दलीलसे देना अकलङ्क आदि जैनाचार्योंने शुरू किया जिसका अनुसरण पिछले सभी जैन तार्किकोंने किया है। आ. हेमचन्द्र भी उसी मार्गका अवलम्बन करके पहिले केवलनित्यत्ववादका खण्डन बौद्धोंके ही शब्दोंमें करते हैं और केवलक्षणिकत्ववादका खण्डन भी भदन्त योगसेन या जयन्त आदिके शब्दों में करते हैं और साथ ही जैनदर्शमसम्मत द्रव्यपर्यायवादके समर्थनके वास्ते उसी कसौटीका उपयोग करके कहते हैं कि अर्थक्रियाकारित्व जैमवाद पक्षमें ही घट सकता है। ई. 1936] [प्रमाण मीमांसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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