Book Title: Vartaman Sandarbh me Jain Ganit ki Upadeyata Author(s): Parmeshwar Jha Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 1
________________ 20826000008 208001806942328788 858588888888888888888 वर्तमान संदर्भ में जैन गणित की उपादेयता 868808535888888888888 • डॉ. परमेश्वर झा गणित की व्यापकता सार्वभौम है। वेदांग ज्योतिष (१२०० ई.पू.) में इसे सबसे ऊँचा स्थान प्रदान किया गया है -'गणितं मूर्धनिस्थितम्'। इसकी महत्ता के सम्बन्ध मे जैन गणितज्ञ महावीराचार्य की उक्ति है 'लौकिके वैदिके वापि तता सामायिकेऽपि यः। व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते॥" अर्थात् 'सांसारिक, वैदिक तथा धार्मिक आदि सभी कार्यों में गणित उपयोगी है। पुनः उन्होंने उद्घोषणा की है - 'बहुभिर्विप्रलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे। यक्तिंचिग्दस्तु तत्सर्वं गणितेन विना न हि॥' __ अर्थात् जो कुछ इन तीनों लोकों में चराचर (गतिशील एवं स्थिर) वस्तुएं हैं, उनका अस्तित्व गणित से विलग नहीं।' वस्तुतः संख्या का ज्ञान जीवन के हर पहलू के लिए आवश्यक है। सृष्टि के आरम्भ से ही इसकी उपयोगिता सिद्ध हुई। विश्व के प्राचीन सभ्य देशों बेबिलोनिया, मिश्र, यूनान, भारत आदि में इसका विकास समान रूप से होता रहा। भारत में गणित-ज्ञान की झाँकी यहाँ के प्राचीन ग्रंथों-वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण आदि में मिलती है। भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन एवं संरक्षण में जैनाचार्यों का महान् योगदान है। गणित भी उनके चिंतन एवं मनन का विषय रहा है। गणितीय सिद्धान्तों द्वारा सृष्टि-संरचना को स्पष्ट करना तथा कर्म सिद्धान्त की व्याख्या करना जैनाचार्यों का प्रमुख दृष्टिकोण है। फलस्वरूप जैन आगम ग्रंथों में गणितीय सामग्री प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में विपुल परिमाण में विद्यमान है। यह तो अब निर्विवाद रूप से प्रमाणित हो चुका है कि भारतीय गणित के अंध युग (५०० ई.पू.-५०० ई.) में भी यहाँ गणित का विकास होता रहा जिसमें जैनाचार्यों का अमूल्य योगदान है। सचमुच जैन आगम ग्रंथ भारतीय गणित ज्योतिष की श्रृंखला की टूटी हुई कड़ी को जोड़ने का कार्य करते हैं। इन ग्रंथों के अवलोकन से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि जिन सिद्धान्तों के आविष्कार का श्रेय पाश्चात्य गणितज्ञों को दिया जाता है उनमें से बहुत सारे सिद्धान्तों को कई शताब्दियाँ पूर्व ही जैनाचार्यों ने लिपिबद्ध कर रखा है। परवर्ती विद्वानों ने पूर्णतः गणितीय ग्रन्थों का भी क्षेत्रमिति आदि शाखाओं से सम्बन्धित मौलिक एवं महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों-सूत्रों का विवेचन मिलता है। वर्तमान संदर्भ में इन गणितीय सिद्धान्तों की प्रासंगिकता एवं उपादेयता का विश्लेषण करना ही इस निबंध का अभीष्ट है। ___ इस सिलसिले में सर्वप्रथम जैनाचार्यों की गणिती उपलब्धियों का सिंहावलोकन करना आवश्यक प्रतीत होता है। जैन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ स्थानांग सूत्र (३२४ ई.पू.) के निम्न सूत्र में गणित विज्ञान के दश विषयों की चर्चा है : (१४८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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