Book Title: Vandana Aavashyak Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 1
________________ 15.17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 198 'वन्दना' आवश्यक उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज - 'वन्दना' तृतीय आवश्यक है । इसमें 'इच्छामि खमासमणो' का पाठ गुरुदेव के वन्दन हेतु दो बार बोला जाता है। उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म.सा. ने 'श्रमण सूत्र' नामक अपनी कृति में श्रमण-प्रतिक्रमण एवं षडावश्यकों का सुन्दर विवेचन किया है । यहाँ पर उसी अमरकृति से 'वन्दना आवश्यक' से सम्बद्ध सामग्री संकलित की गई है। 'इच्छामि खमासमणो' पाठ से सम्बद्ध कुछ शब्दों यथा क्षमाश्रमण', 'अहोकायं काय-संफासं', 'आशातना', 'बाहर आवर्त' एवं वन्दन विधि' पर भी विवेचन यहाँ संगृहीत है। यथाजात मुद्रा, यापनीया आदि शब्दों पर प्रकाश इस विशेषांक के विशिष्ट प्रश्नोत्तरों में उपलब्ध है। -सम्पादक गुरुदेव को वन्दन करने का अर्थ है- गुरुदेव का स्तवन और अभिवादन ।' मन, वचन और शरीर का वह प्रशस्त व्यापार, जिसके द्वारा गुरुदेव के प्रति भक्ति और बहुमान प्रकट किया जाता है, वन्दन कहलाता है। वन्दन आवश्यक की शुद्धि के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि वन्दनीय कैसे होने चाहिए? वे कितने प्रकार के हैं? अवन्दनीय कौन हैं? अवन्दनीय लोगों को वन्दन करने से क्या दोष होता है? वन्दन करते समय किन-किन दोषों का परिहार करना जरूरी है? जब तक साधक उपर्युक्त विषयों को जानकारी न कर लेगा, तब तक वह कथमपि वन्दनावश्यक के फल का अधिकारी नहीं हो सकता। __ जैनधर्म गुणों का पूजक है। वह पूज्य व्यक्ति के सद्गुण देखकर ही उसके आगे सिर झुकाता है। आध्यात्मिक क्षेत्र की तो बात ही और है। यहाँ जैन इतिहास में तो गुणहीन साधारण सांसारिक व्यक्ति को वन्दन करना भी हेय समझा जाता है। असंयमी को, पतित को वन्दन करने का अर्थ है- पतन को और अधिक उत्तेजन देना। जो समाज इस दिशा में अपना विवेक खो देता है, वह पापाचार, दुराचार को निमंत्रण देता है। आचार्य भद्रबाहु आवश्यक नियुक्ति में कहते हैं कि- 'जो मनुष्य गुणहीन अवंद्य व्यक्ति को वन्दन करता है, न तो उसके कर्मो की निर्जरा होती है और न कीर्ति ही। प्रत्युत असंयम का, दुराचार का अनुमोदन करने से कर्मों का बंध होता है। वह वन्दन व्यर्थ का कायक्लेश है' पासत्थाई वंदमाणस्स, नेव कित्ती न निज्जरा होई। काय-किलंसं एमेय, कुणई तह कम्मबंधं च ।। अवन्द्य को वन्दन करने से वन्दन करने वाले को ही दोष होता है और वन्दन कराने वाले को कुछ भी दोष नहीं होता, यह बात नहीं है। आचार्य भद्रबाहु स्वामी आवश्यक नियुक्ति में कहते हैं कि यदि अवन्दनीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8