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वक्ता त्यों ह्यां मदार्चाया प्रकटित पुष्टिमार्गके प्रकाश कर्ता ते पुरुषोत्तम यातें गुर्जर भाषामें कहैं । पूर्ण ब्रह्म श्रीलक्ष्मणसुत पुरुषोत्तम श्रीविठ्ठलनाथजी इति श्वेतवाराह कल्पीय श्रीकृष्णावत्तार गीताके वक्ता हैं इनमें गीताके वक्ता जा समें है ता समेंई पुरुषोत्तमाविर्भाव हैं और बेर तो मोक्षके दाता हैं सो वासुदेव कार्य “कल्पेस्मिन्सर्वमुक्त्यर्थमवतीर्णस्तु सर्वतः।” इति । और ह्यां तो सदा श्रीकृष्णाविर्भाव हैं तातें उपदेष्टा पुष्टि मार्गके सदा हैं गीतावक्ताको सर्वदा आविर्भाव नहीं। अत एव निबन्धे-“सर्व तत्त्वं सर्वगूढू प्रसंगादाह पाण्डवे ।” सबकों तत्त्व और गूढ़ है सो पूर्णके योगते अर्जुनसो कहे 'पाण्डवे अर्जुने प्रसंगात् पूर्णयोगात् आह किंचित् ।' भारतमें युधिष्ठिरको राज्यप्राप्ति पीछे अर्जुन प्रभुसों विज्ञप्ति किये-पूर्वमुपदिष्टं ज्ञानं मम विस्मृतं तद्वद तदा भगवानाह तत्तु योगयुक्तेन मयोपक्रम्याधुना प्रकारांतरेण कथयिष्यते इति । निबन्धे जैसे श्रीगुसांईजी विषेहू ये दोऊ भाव पूर्ण हैं भाव किंच नौमी दिन प्राकट्य हैं। ताहूतें दोऊ भाव पूर्णकोउ द्योतक नवमी हैं नौमीको अङ्क पूर्ण हैं अंक नौई हैं। आगें तो फेर पहलेई अंक हैं। और नौ बढ़े तोहू नौही रहैं नौ और नौ १८ होंय एक और आठ नौ फिर अठारह नौ सताईश सो देइ और सात नौ ऐसो ९० ताँई नौई रहे याको आशय यह जो जैसें नौके अंककों ऐसो पक्षपात ९० ताँई बढे तोहू नौ ही रहैं तैसे ह्यांऊ भक्तके उद्धारको पक्षपात सजातीय वा विजातीयको दुःसंग होय तोहू निवेदनांतर त्याग नहीं । श्रीपादुकाजी विषं साधन भक्तिरूप चरणारविन्दको दर्शन करि फलरूप श्रीमुखभक्ति ताहीको भाव विचारनों। ताते भोग धरनों । तथा तिलक करनो और बागा पाग न पहरें।