Book Title: Utsarg Aur Apwad Dono Hi Marg
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf

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Page 22
________________ फिर भी यथा मति, यथा गति कुछ लिखा गया है, और वह जिज्ञासु की ज्ञान-पिपासा के लिए एक जल कण ही सही, किन्तु कुछ है तो सही। प्रस्तुत निबन्ध का अक्षर-शरीर कुछ पुरानी और कुछ नयी विचार सामग्री के आधार पर निर्मित हुआ है, और वह भी चिन्तन के एक आसन पर नहीं। बीच-बीच में विक्षेपपर-विक्षेप आते रहे, शरीर-सम्बन्धी और समाज-सम्बन्धी भी। अतः लखन में यत्र-तत्र पुनरुक्ति की झलक आती है। परन्तु, वह जहाँ दूषण है, वहाँ भूषण भी है। उत्सर्ग और अपवाद जैसे गहनातिगहन विषय की स्पष्ट प्रतिपत्ति के लिए पुनरुक्तता का भी अपने में एक उपयोग है, और वह कभी-कभी आवश्यक हो जाता है। 248 पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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