Book Title: Updhan Pratishtha Panchashak Prakaranam Author(s): Pradyumnavijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ सयगे पुण विगलाणं एगिंदीणं च सासणं इटुं । न पुणो मइसुयनाणे तहेवमावस्सए वृत्तं सीहो तिविट्टजीवो जाओ सत्तम महीउ उव्वट्टो | जीवाभिगममएणं मीणत्तं चैव तो लहइ नायासुं पुव्वण्हे दिक्खा नाणं च भणियमवर । आवस्सयंमि नाणं बीयम्मि मल्लिस्स छउमत्थे परिआओ सद्धछम्मासबारससमाओ । मग्गसिरकिण्हदसमी दिखाए वीरनाहस्स वइसाहसुद्धदसमी केवललाभम्मि संभविज्ज कहं । इय सत्थेसुं बहवो दीसंति परोप्परविरोहा तस्संभवे वि आवस्सायाइ सत्थाई जह पमाणं । तह किं महानिसीहं धिप्पइ न पमाणबुद्धीए अहो पंचनमोक्काराइयाणमुवहाणभुणुचियं भिन्नं । आवस्सयस्स अंतो पाढाहि तहाहि सामइयं नवकारपुव्वयं चिय कीरइ जं ता तयंगमेसो त्ति । अन्नं च इत्थ अत्थे पयडं चिय कित्तियं एयं नंदिमणुओगदारं विहिवदुवग्धाइयं च नाउण । काऊण पंचमंगलमारंभो होइ सुत्तस्स इय सामाइअनित्तिमज्झमज्झासिओ इमो ताव | पडिकमणे य पविट्ठो इरियावहियाए पाढो वि अरहंतचेइयाण य वंदणदंडो सुयत्थओ य तहा । काउस्सग्गज्झयणे पंचमए अणुपविट्ठोत्ति बीयज्झयणसरू वे चडवीसत्थओ वि जं विणिद्दिट्ठो । आवस्सयाउ न पिहो जुज्जइ ता तेसिमुवहाणं आवस्य वहाणे ताण उवहाणं कयं समवसेयं । कयवहाणे य पिहो तक्करणे होइ अणवत्था भन्नइ उत्तरमिहई नवकारो आइमंगलत्तेण । वुच्चइ जया तयच्चिय सामाईए अणुष्पवेसो से Jain Education International [36] For Private & Personal Use Only ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०१. ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ ।।२५।। ॥२६॥ ॥२७॥ ||२८|| www.jainelibrary.orgPage Navigation
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