Book Title: Updhan Pratishtha Panchashak Prakaranam Author(s): Pradyumnavijay Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229429/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य-श्रीहरिभद्रसूरि-विरचितम् ।। उपधान-प्रतिष्ठा-पञ्चाशक-प्रकरणम् ॥ - संपा. पं. प्रद्युम्नविजयजी गणी याकिनी-महत्तरा-सूनु आचार्य श्री हरिभद्रसूरिश्वरजी विरचित 'पंचाशक' ग्रंथ, स्थान जैन परंपराना प्रकरणग्रंथोमा आगली हरोळमां छे. आ 'पंचाशक' ग्रंथना ओगणीस प्रकरणो ज मळ्या हता. अने एटलां प्रकरणो उपर नवांगी टीकाकार आचार्य श्री अभयदेवसूरि विवरण पण मळे छे. बन्ने प्रसिद्ध थयेलां छे. आजे पण ओगणीस प्रकरण वाळी 'पंचाशक-प्रकरण'नी ताडपत्रनी तथा कागळनी पोथीओ मळे छे. आम पाटणना भंडारमा एक अने खंभातना भंडारमा एक एम बे ज ताडपत्रनी पोथीमां आ वीसमा प्रकरण सहितनी ‘पंचाशक-प्रकरण'नी पोथी मळे छे. ए बन्ने पोथीना आधारे यथामति संपादित-संशोधित करीने आ वीसमुं 'उपधान-प्रतिष्ठा' पंचाशक प्रकरण अहीं आप्युं छे. आ प्रकरण पहेली ज वार प्रकाशित थाय छे.आमां नवानवा विचारणीय मुद्दा समाया छे. मोक्षदंड तप आजे जे प्रचलित छे ते निजमति-कल्पित छे ते वात अहीं ज मळे छे. नवकार अंगे जे ज्ञानाचाररूप उपधान-तप छे तेनो 'आवश्यकसूत्र'नी अन्तर्गत समावेश थतो नथी एवं कथन आमां मळे छे. ___ तो साधु-साध्वीने पण आ उपधान करवा जरुरी गणाय एवं आनाथी फलित थाय छे. जो के ए अंगे विचारणा करवी जरुरी छे. अत्यारे तो आ प्रकरण मूळमाथी आप्युं छे. पछी तेनी छाया, संदर्भग्रन्थनी साक्षी, अनुवाद साथे प्रकाशित करवानी भावना छे. ___ आ प्रकरणना पाठशुद्धि अने पाठनिर्णयमा विद्यापुरुष मुनिराजश्री जंबूविजयजी महाराजनो आत्मीयताभर्यो सहयोग सांपड्यो छे. तेनुं अहीं सानंद स्मरण थाय छे. (पाठनो आधार खंभात ताडपत्र नं. १२९/पाटण ताडपत्र नं. १५३/२) [34] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ ॥२॥ ॥३३॥ ॥४|| ॥६॥ ॥७॥ नमिउण महावीरं वोच्छं नवकारमाइ उवहाणे । किंपि पइट्टाणमहं विमूढ संमोह महणत्थं जं सुत्ते निद्दिटुं पमाणमिह तं सुओवयाराइ । आयाराइणं जह जहुत्तमुवहाण निम्महणं वुत्तं च सुए नवकार-इरिय पडिकमण सक्कथयविसयं । चेइय चउवासस्थय सुयत्थएखं च उवहाणं किं पुण सुत्तं तं इह जत्थ नमोक्कारमाइ उवहाणं । उवइ8 आह गुरु महानिसीहक्ख सुयरवंधे एसो वि कह पमाणं नंदीए हंदि कित्तणाउ त्ति । जं तत्थेव निसीहं महानिसीहं च संलत्तं अह तं न होइ एयं एवं आयारमाइ वि तयन्नं । तुल्ले वि नंदिपाढे को हेऊ विसरिसत्तम्मि अह दुब्बलिसूरीणं पराभवत्थं कयं सबुद्धीए । गोटेणं ति मयं नो इमं पि वयणं अविन्नृणं पुट्ठमबद्धं कम्मं अप्परिमाणे च संवरणमुत्तं । जं तेण दुगं एवं तं चिय अपमाणमक्खायं सेसं तु पमाणत्तेण कित्तियं गोट्ठमाहि सुत्तं पि । इग दुग मयभेयच्चिय जं सुत्ते निण्हवा वुत्ता अह भूरिमयविरोहा पमाणया नो महानिसीहस्स । लोइय सत्थाणंपि व तहाहि तंमी अणुचियाई सत्तमनरयगमाईणि इत्थियाणं पि वनियाई ति । तं न लिहणाइ दोसा संति विरोहा सुए वि जओ आभिणिबोहिनाणे अट्ठावीसं हवंति पयडीओ । आवस्सयम्मि वुत्तं इममनह कप्पभासम्मि नाणमवाय धीईओ दंसण सिटुं च उग्गहेहाओ । एवं कह न विरोहो विवरीयत्तेण भणणाओ किं च गइ इंदियाइसु दारेसु न सम्म-सासणं इटुं । इगिंदीणं विगलाण मइसुए तं चणुन्नायं ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ |१४|| [35] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयगे पुण विगलाणं एगिंदीणं च सासणं इटुं । न पुणो मइसुयनाणे तहेवमावस्सए वृत्तं सीहो तिविट्टजीवो जाओ सत्तम महीउ उव्वट्टो | जीवाभिगममएणं मीणत्तं चैव तो लहइ नायासुं पुव्वण्हे दिक्खा नाणं च भणियमवर । आवस्सयंमि नाणं बीयम्मि मल्लिस्स छउमत्थे परिआओ सद्धछम्मासबारससमाओ । मग्गसिरकिण्हदसमी दिखाए वीरनाहस्स वइसाहसुद्धदसमी केवललाभम्मि संभविज्ज कहं । इय सत्थेसुं बहवो दीसंति परोप्परविरोहा तस्संभवे वि आवस्सायाइ सत्थाई जह पमाणं । तह किं महानिसीहं धिप्पइ न पमाणबुद्धीए अहो पंचनमोक्काराइयाणमुवहाणभुणुचियं भिन्नं । आवस्सयस्स अंतो पाढाहि तहाहि सामइयं नवकारपुव्वयं चिय कीरइ जं ता तयंगमेसो त्ति । अन्नं च इत्थ अत्थे पयडं चिय कित्तियं एयं नंदिमणुओगदारं विहिवदुवग्धाइयं च नाउण । काऊण पंचमंगलमारंभो होइ सुत्तस्स इय सामाइअनित्तिमज्झमज्झासिओ इमो ताव | पडिकमणे य पविट्ठो इरियावहियाए पाढो वि अरहंतचेइयाण य वंदणदंडो सुयत्थओ य तहा । काउस्सग्गज्झयणे पंचमए अणुपविट्ठोत्ति बीयज्झयणसरू वे चडवीसत्थओ वि जं विणिद्दिट्ठो । आवस्सयाउ न पिहो जुज्जइ ता तेसिमुवहाणं आवस्य वहाणे ताण उवहाणं कयं समवसेयं । कयवहाणे य पिहो तक्करणे होइ अणवत्था भन्नइ उत्तरमिहई नवकारो आइमंगलत्तेण । वुच्चइ जया तयच्चिय सामाईए अणुष्पवेसो से [36] ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०१. ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ ।।२५।। ॥२६॥ ॥२७॥ ||२८|| Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1॥२९॥ ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ |.३५॥ जइया य समण-भोयण निज्जरहेउं पढिज्जए एसो । तइया सतत एव हि गिज्झइ अन्नो सुयक्खंधो इह-परलोयत्थीणं सामाइयविरहिओ अ वावारो ।। दीसई नवकारगओ तदत्थसत्थाणि य बहूणि नवकारपडल नवपंजिया सिद्धचक्कमाइणि । सामाइयंगभावो इमस्स गंतिओ तम्हा पढमुच्चारणमेत्ते वि णुप्पवेसो हवेज्ज सामइए । एयस्स सव्वहा जइ ता नंदीणुयोगदाराणं तयणुप्पवेसओ च्चिय तवचरणं नेय जुज्जइ विभिन्नं । दीसइ य कीरमाणे जोगविहीए य भिन्नत्तं किंचाभिन्नत्ते सव्वहा वि सामाइयाउ एयस्स । काउण पंचमंगलमिच्चाइ अणुचियं वयणं इय भेयपक्खमणुसरिय जइ तवो कीरइ नमोकारे । तो को दोसो नंदणुओगद्दारेसु वि हविज्जा इरियावहियाईयं सुयं पि आवस्सयस्स करणंमि । अणुपविसइ तंमि तयन्नापाय भिन्नंहि तेणेव भत्ते पाणे सयणासणाइ सुत्तं पि जायइ कयत्थं । तिन्नि वि कड्डइ ति सिलीइय थुइ त्ति इच्चाइ सुत्तपि आवस्सए पवेसो जइ एसो सव्वहा वि य हवेज्जा । तो पि हु पढणं एसि सव्वेसि कह घडिज्ज त्ति जं च इयरेयरासयदसणमेवं च वच्चइ इमाण । पाढेण विणा न तवो तवं विणा नेव पाढो त्ति तं पि हु अदूसणं जह पव्वइडमुवट्ठियस्स णुत्रायं । सामाइयाइयाणं आलावगदाणमतवे वि एवं जइ पढिएसु वि नवकाराईसुताणमुवहाणं । सविसेस गुणनिमित्तं कारिज्जइ को णु ता दोसो नियगमइविगप्पियं पि हु कारिज्जइ मोक्खदंड्याइ तवं । सत्थुत्तं पि निसिज्झइ उवहाणं ही महामोहो ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ [37] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // मंतंमि पुव्वसेवा जइ तुच्छफले वि वुच्चइ इहं ता / मोक्खफले वि उवहाणलक्खणा किं न कीरई सा एइए परमसिद्धी जायइ जं ता दढं तओ अहिगा / जत्तम्मि वि अहिगत्तं मव्वस्सेयाणुसारेण अह सक्कविरयणाओ सक्कत्थय नोवहाणमुववन्नं / एवं पि केण सिटुं जमेस सक्केण रइउ त्ति सक्कस्स अविरइत्ता जिणथुई जइ अणेण णुनाया / ता तक्कओ त्ति सो वुत्तुमेवमुचियं कहं तम्हा केवलिणा दट्टणं उवइट्ठाणं च विरइयाणं च / नवकारमाझ्याणं महप्पभावुत्तियाणं तिक्कालियमहवा सत्तकालियसुमरणे निउत्ताणं / जुत्तं चिय उवहाणं महानिसीहे निबद्धाणं उवहाणविहीणाण वि मरुदेवाईण सिवगमो दिट्ठो / एवं च वुच्चमाणे तवदिक्खाईण वि निसेहो इय भूरिहेउजुत्तीजुयंमि बहुकुसलसलहिए मग्गे / कुग्गहविरहेणुज्जमह महह जइ मुक्खसुहमणहं // 47|| / // 48 // // 49 // // 50 // 5 // उवहाण-पंचासयं सम्मत्तं // // इति विंशतितमं प्रकरणं सम्मत्तं // [38]