Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani
Publisher: Harshchandra Bhurabhai Shah
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लीक माला पामो ॥ अयं विशेषकरणीयकृतामुपदेशः ५॥ ___ लज्जातो भयतो वितर्कवशतो मात्सर्यंतः स्नेहतो लोभादेव हठाभिमानविनयशृङ्गारकीादितः । दुःखात् कौतुकविस्मयव्यवहृतेर्भावात् कुलाचारतो वैराग्याच भजन्ति धर्ममसमं तेपाममेयं फलम् ॥१॥ ___ लज्जायाम् , अर्धमण्डितनागिलामुक्तभवदेवभ्रातृभवदत्तवत् ॥ भये-मेतार्यहन्तृसुवर्णकारवत् , देवकृतभयप्रवर्जितमेतार्यवद् वा ॥ वितर्के, चण्डरुद्राचार्यशिप्यवद् द्वयोरपि केवलज्ञानम्--
केइ सुसीला सुहमा य सज्जना गुरुजणस्स वि सुसीसा । विउलं जणंति सुद्धिं जह सीसो चण्डरुदस्स॥२॥ भार्याहसितधन्यवद्, वेश्याप्रोक्त--" अद्य दशमा यूयम्" इति वचसा प्रबुद्धनन्दिपेणवद् वा--
दस दस दिवसे दिवसे धम्मे बोहइ अह व अहिइरे। इय नन्दिसेणसत्ती तहविय से संजमविवर्ती॥३॥ मात्सर्ये, स्थूलभद्रोपरि मत्सरिसिंहगुहासाधुवत् । स्नेहे, अर्हन्नकयतिमातृवत् , श्रीस्थूलभद्रानुजमंसिरीआवद् वा ॥ लोभे, श्रीसुहस्तिप्रतिबोधितद्रम्मकवत्
कोसंबीए जेणंदमग्गो पव्वाविओ जो जाओ। उजेणीए संपइराया सो नंदउ सुहत्थी ॥ ४ ॥ त्रिखण्डाधिपत्याऽऽप्तिसपादलक्षजैनप्रासादसपादकोटीजिनबिम्बनिर्मापणाद्यवदातसुभगं श्रीसंप्रतिनृपचरित्रं
(२६४)
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